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मप्र में किसान व परेशान डुबो देंगे भाजपा सरकार को...

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अनिल शर्मा

मप्र में किसकी सरकार बनेगी? ये नतीजा बस कुछ ही दिनों में खुल जाएगा। वैसे तो संभावना इस बात की है कि इस बार भी भाजपा ही सरकार बनाएगी, लेकिन इसका जनाधार यानी वोट प्रतिशत कम हो जाएगा। कांग्रेस एकजुट होकर ही चुनाव जीत सकती है। लेकिन कुछ जगहों पर सेबोटेज जैसी स्थिति भी है।
 
वैसे देखा जाए तो मप्र के कई इलाकों में कांग्रेस ने भी निगेटिव पोजिशन वालों को टिकट दे दिया है और जहां कि इन निगेटिव छवि वाले प्रत्याशियों की जीत में संदेह है। भाजपा के कुछ प्रत्याशियों ने जमीनी कार्य कर अपनी प्रतिष्ठा बनाए रखी है। फिर भी ग्रामीण क्षेत्रों में जहां किसानों को भाजपा सरकार ने रुलाया है, वहीं शहरी क्षेत्रों में भी छोटे-मोटे रोजगार करने वालों को रुलाया है। इसके अलावा लोगों के बरसों से बसे आशियाने एक ही झटके में तोड़ दिए गए। मप्र के गरीबों की हालत यह है कि भाजपा के नुमाइंदों ने सरकारी योजनाओं का लाभ खुद उठाया और अपने वालों को भी खूब मजे कराए हैं।
 
किसान और भाजपा 
 
मप्र में गत 15 वर्षों से चल रही भाजपा सरकार की अनेक योजनाओं का मीडियाई ढिंढोरा तो काफी बजा है और बज रहा है, फिर किसान क्यों रो रहा है? कर्जमाफी, फसल बीमा, सहकारी सहायता आदि-इत्यादि केवल मीडिया में ही किसानों को खुश दिखा रहे हैं, जबकि मप्र के लगभग 60 से 78 प्रतिशत किसान फसल बीमा के बारे में संबंधित विभागों में जाते हैं तो उन्हें जवाब मिलता है, 'कार्रवाई चल रही है।' अप्रत्यक्ष रूप से अधिकारी कहीं ये तो नहीं कहते कि इस बार फिर भाजपा की सरकार बनाओ, तब फसल बीमा के पैसे मिलेंगे। ये तो साधारण-सी बात है।
 
गत दिनों किसानों ने अपनी समस्याओं को लेकर आंदोलन किया था जिसमें किसानों पर पुलिस फायरिंग हुई और 6 लोग इसमें मारे गए। ये आंदोलन कर्जमाफी को लेकर किया गया था। मध्यप्रदेश के मंदसौर में चल रहे किसान आंदोलन के दौरान हिंसा भड़क उठी थी। हिंसा पर नियंत्रण के लिए पुलिस द्वारा की गई फायरिंग में 6 लोगों की मौत हो गई थी।
 
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने न्यायिक जांच का आदेश दिया है और मृतकों के परिजनों को 10-10 लाख का मुआवजा देने की घोषणा की है। मगर आज तक बताया जाता है कि न कोई मुआवजा मिला और न ही न्याय। सबसे बड़ा मजाक तो यह कि प्रशासन ही नहीं जानता कि गोली कैसी चली? मध्यप्रदेश के गृहमंत्री भूपेंद्र सिंह ने भी बयान दिया कि पुलिस या सीआरपीएफ की तरफ से कोई फायरिंग नहीं हुई। फिर क्या आसमान से गोलियां चलीं?
 
कितनी मासूमियत से कहा गया कि कलेक्टर ने बताया कि पुलिस को आंदोलन कर रहे किसानों पर किसी भी स्थिति में गोली नहीं चलाने के आदेश दिए गए थे। पुलिस ने न तो गोली चलाई और न ही गोली चलाने के आदेश दिए। फिर भी गोली चली तो क्या आसमान से चली थी? किसानों की आत्महत्या पर भी मप्र सरकार को कोई अफसोस नहीं हुआ।
 
किसानों के लिए अब खेती करना घाटे का सौदा बन गया है जबकि प्रचार-प्रसार में भाजपा सरकार किसानों को खुशहाल बता रही है। किसान जैसे-तैसे कर साहूकारों से कर्ज लेकर अपना खेत तैयार करता है। एक तो वास्तविक रूप से सरकारी सहायता नहीं मिलना या विलंब और दूसरा अवर्षा जैसी स्थिति या सिंचाई सुविधा डांवाडोल होने से साहूकार का ब्याज-दर-ब्याज बढ़ता जाता है। किसान मुसीबतें झेलते रहे और भाजपा सरकार प्रचार माध्यमों से किसानों को खुशहाल बनाती रही।
 
विकास बनाम विनाश : अतिक्रमण का बुलडोजर
 
सरकार से केवल किसान ही नाखुश रहे हों, ये बात नहीं है। किसानों के अलावा आम नागरिक भी परेशान रहे हैं। बरसों से बसे आशियाने ऐन त्योहारों के वक्त तोड़ दिए गए। अतिक्रमण विरोधी मुहिम के चलते सरकारी बुलडोजरों को भाजपा नेताओं और उनके वालों के अतिक्रमण बहुत कम दिखे और जो गैर थे उनके आशियाने तक उजाड़ दिए गए। यहीं नहीं, विकास और स्मार्टसिटी के नाम पर अनेक स्थानों पर दिहाड़ी धंधा करने वालों के खोमचे, ठेले, गुमटी तक हटाने की जुर्रत ही नहीं की बल्कि पूरी तरह रौंद दिए गए।
 
गायों का शाप
 
घरों में पहली रोटी गाय की निकलती थी (अब पता नहीं) लेकिन अब किसे रोटी दें, क्योंकि भाजपा सरकार ने गायों को तो जंगल में छोड़ दिया है। नगर महानगर बन रहे हैं, तो पशु-पक्षियों को मानव आबादी के लिए खाली करवाए जाने का मसला अमानवीय है। लोग बरसों से पशुधन जिनमें प्रमुख रूप से गाय और कुत्ता शामिल है, को रोटी देते रहे हैं। गायों को शहरों से जंगलों में भेज दिया गया। उनके लिए गोशालाएं बना दी गई हैं। गोशालाओं में जितनी गायें हैं, उनमें से लगभग 80 प्रतिशत गायों को जंगलों में मरने के लिए छोड़ दिया गया। जनता का ऐसा मानना है।
 
नोटबंदी का दानव
 
मोदी सरकार ने भ्रष्टाचार मिटाने और कालाधन बाहर लाने के नाम पर आम जनता को खुशफहमी का लालीपॉप पकड़ा दिया। बैंकों की लाइन में निम्न और मध्यमवर्गीय पेशे वाले ही लगे जिनमें से कई की मौत भी शायद इसी दौरान लिखी थी।
 
बैंक की हिटलरी
 
इसी दौरान बैंकों ने ग्रामीण स्तर से लेकर महानगर स्तर तक जमा-पूंजी की रकम बढ़ा दी। लोगों की जमा-पूंजी से बैंक निवेश कर लाखों-करोड़ों कमाते हैं। उसी जनता पर बैंक के हिटलरी आदेश लद गए।
 
बढ़ते अपराध
 
15 साल जनता ने मप्र सरकार को दिए, लेकिन इन सालों में भाजपा सरकार ने सुरक्षा के नाम पर केवल भानजा-भानजी की रिश्तेदारी ही जोड़ी। भानजियों के रेप में कमी नहीं आ सकी। ऐसा लगता है कि बहुत कम समय में ही जनता भाजपा सरकार से तंग आ गई लगती है। फिर भी इस बात में भी कोई संशय नहीं कि सरकार भाजपा की है, तो ईवीएम भी इन्हीं की होगी। इसलिए आधार कार्ड से लिंक नहीं कराया गया। और फिर अंतिम समय में 1,000-1,500 के लिफाफे भी नक्शा बदल सकते हैं।

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