Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

लोकसभा चुनाव की कैसी बन रही है तस्वीर

हमें फॉलो करें Election Commission
webdunia

अवधेश कुमार

, गुरुवार, 18 अप्रैल 2024 (16:57 IST)
इस समय लोकसभा चुनाव को लेकर कई तरह के मत हमारे सामने आ रहे हैं। सबसे प्रबल मत यह है कि भाजपा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में अपने सहयोगी दलों के साथ तीसरी बार भारी बहुमत से सरकार में लौट रही है। कुछ लोग प्रधानमंत्री के 370 भाजपा के और सहयोगी दलों के साथ 400 सीटें मिलने तक की भी भविष्यवाणी करने लगे हैं। दूसरी और विपक्ष इसे खारिज करते हुए कहता है कि भाजपा चुनाव हार रही है और वह 200 सीटों से नीचे चली पाएगी। 
 
विपक्ष भाजपा की आलोचना करती है, नरेंद्र मोदी पर सीधे प्रहार भी करती है, पर अपने समर्थकों और भाजपा विरोधियों के अंदर भी विश्वास नहीं दिला पाती कि वाकई वह भाजपा से सत्ता छीनने की स्थिति में चुनाव लड़ रहे हैं। आईएनडीआईए की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस से नेताओं के छोड़कर जाने का कायम सिलसिला इस बात का प्रमाण है कि पार्टी के अंदर कैसी निराशा और हताशा का सामूहिक मनोविज्ञान व्याप्त है। इसमें आम मतदाता और विश्लेषक स्वीकार नहीं कर सकते कि वाकई विपक्षी दल भाजपा और राजग को सशक्त चुनौती देने की स्थिति में है। तो फिर इस चुनाव का सच क्या हो सकता है? आखिर 4 जून का परिणाम क्या तस्वीर पेश कर सकता है?
 
इस चुनाव की एक विडंबना और है। भाजपा के नेताओं, कार्यकर्ताओं और समर्थकों का एक वर्ग स्वयं निराशाजनक बातें करता है। व्यक्तिगत स्तर पर मेरी ऐसे अनेक लोगों से बातें हो रही हैं जो चुनाव में जमीन पर हैं या वहां होकर लौट रहे हैं। इनमें ऐसे लोगों की संख्या बड़ी है जिनमें उत्साह या आशावाद का भाव न के बराबर मिलता है। 

वे बताते हैं कि जैसी दिल्ली में या बाहर हवा दिखती है धरातल पर वैसी स्थिति नहीं है। जब उनसे प्रश्न करिए कि धरातल की स्थिति क्या है तो सबके उत्तर में कुछ सामान बातें समाहित होती हैं, गलत उम्मीदवार के कारण लोगों के अंदर गुस्सा या निराशा है, गठबंधन को सीट देने के कारण अपने लोगों के अंदर निराशा है, गठबंधन ने ऐसे उम्मीदवार खड़े किए हैं जिनका बचाव करना या जिनके लिए काम करना भाजपा के कार्यकर्ताओं के लिए कठिन हो गया है आदि। 
 
कुछ लोग अनेक क्षेत्रों में जातीय समीकरण की समस्या का उल्लेख भी करते हैं। एक समूह यह कहता है कि आम कार्यकर्ताओं और नेताओं की सरकार में उपेक्षा हुई है, उनके काम नहीं हुए हैं, उनको महत्व नहीं मिला है और अब लोगों का धैर्य चूक रहा है। यहां तक कि जिस तरह के लोगों को पुरस्कार, पद, प्रतिष्ठा या टिकट दिया गया है उनसे भी लोग असहमति व्यक्त करते हैं। भाजपा कार्यकर्ताओं समर्थकों के साथ विपक्ष की बातों को मिला दिया जाए तो निष्कर्ष यही आएगा कि भले भाजपा 400 पर का नारा दे लेकिन यह हवा हवाई ही है। किंतु क्या यही 2024 लोकसभा चुनाव की वास्तविक स्थिति है? 
 
यह बात सही है कि अनेक राज्यों, जिनमें उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार,झारखंड, राजस्थान, पश्चिम बंगाल आदि को शामिल किया जा सकता है वहां पार्टी के अंदर कई जगह उम्मीदवारों को लेकर विरोध है। कुछ उपयुक्त लोगों को टिकट न मिलना तथा ऐसे सांसदों को फिर से उतारना जिनको लेकर कार्यकर्ता नाराजगी प्रकट करते रहे हैं विरोध का एक बड़ा कारण है। साथी दलों ने भी भाजपा के लिए समस्याएं पैदा की है। इन सबमें विस्तार से जाना संभव नहीं, पर कुछ संकेत दिए जा सकते हैं। उदाहरण के लिए बिहार में लोजपा ने ऐसे उम्मीदवार उतारे जो परिवारवाद का साक्षात प्रमाण है और भाजपा के लोगों के लिए इनका बचाव करना कठिन है। 
 
कुछ साथी दलों ने प्रभाविता और साक्षमता की जगह व्यक्तिगत संबंध और परिवार को टिकट देने में प्रमुखता दिया। बिहार के जमुई में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं प्रचार के लिए गए और वहां भाजपा के लोगों ने पूरी ताकत लगाई। इसका असर भी हुआ। बावजूद यह प्रश्न किया जा रहा है कि किसी नेता के बहनोई या 26 साल की एक लड़की को, जिसके पिता साथी दल में नेता हैं उनको हम अपना नेता या प्रतिनिधि मानकर कैसे काम करें? 
 
स्वर्गीय रामविलास पासवान की राजनीति परिवार के इर्द-गिर्द सिमटी रही। जद-यू की ओर से भी ऐसे कई उम्मीदवार हैं जिन्हें भाजपा और राजग के परंपरागत कार्यकर्ता और समर्थक स्वीकार नहीं कर रहे। भाजपा के भी कुछ ऐसे उम्मीदवार हैं जिनके बारे में नेता कार्यकर्ता कह रहे हैं कि हम पर उन्हें थोप दिया गया है। झारखंड में भी बाहर से लाकर टिकट देने और ऐसे उम्मीदवार को खड़ा करने, जिनको भाजपा पहले नकार चुकी हो समस्या पैदा कर रही है। किंतु इसका यह अर्थ नहीं की 4 जून का परिणाम भी इसी के अनुरूप आएगा। 
 
यह सही है कि अगर भाजपा और राजग में उम्मीदवारों के चयन में ज्यादा सतर्कता बरती जाती, स्थानीय नेतृत्व के चॉइस की सही तरीके से जांच होती तो स्थिति पूरी तरह वैसी ही उत्साहप्रद होती जैसी  चाहिए। बावजूद देशव्यापी व्याप्त अंतर्धारा क्या है? 10 वर्षों की नरेंद्र मोदी सरकार का प्रदर्शन, प्रधानमंत्री की स्वयं की छवि, वर्षों तक संगठन परिवार द्वारा हिंदू समाज के बीच किए गए सकारात्मक कार्य, 22 जनवरी को रामलाल की प्राण प्रतिष्ठा, विरोधियों द्वारा हिंदुत्व को लेकर उपेक्षा या प्रहार का व्यवहार तथा अल्पसंख्यकों विशेषकर मुसलमानों का वोट लेने के लिए विपक्षी दलों की प्रतिस्पर्धा भाजपा के पक्ष में ऐसा आधार बनाती है जिसका कोई विकल्प नहीं।  
 
भाजपा के समर्थकों में एक बड़ा वर्ग विचारधारा के कारण जुड़ाव रखता है और पिछले कुछ वर्षों के कार्यों के कारण हिंदुओं के अंदर हिंदुत्व एवं भारतीय राष्ट्रभाव की चेतना प्रबल हुई है। वह बहस करते हैं कि आखिर भाजपा नहीं होती तो क्या अयोध्या में राम मंदिर बनता और ऐसी प्राण प्रतिष्ठा होती? वे धारा 370 से लेकर समान नागरिक संहिता, तीन तलाक कानून, नागरिकता संशोधन कानून आदि की चर्चा करते हैं।

नागरिकता संशोधन कानून का तो आईएनडीआईए के ज्यादातर दलों ने विरोध किया है। उन्हें लगता है कि घातक अल्पसंख्यकवाद पर अगर किसी पार्टी की सरकार द्वारा नियंत्रण लगा है तो भाजपा ही है। उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ सरकार के प्रभावों के कारण जिन माफियाओं पर सरकारें उनके समुदाय के कारण हाथ डालने से बचतीं थी वे मटियामेट हुए हैं,सड़कों पर नमाज पढ़ना बंद हुआ है। देश के कई राज्यों ने बाद में इसका अनुसरण किया। 
 
स्वाभाविक ही उन्हें लगता है कि आने वाले समय में कोई पार्टी अगर इन सब पर काम कर सकती है तो वह भाजपा ही है। दूसरी ओर सामाजिक न्याय एवं विकास को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार ने जिस तरह से व्यावहारिक रूप दिया है उसका बड़ा आकर्षण समाज के हर वर्ग में है। पहले नेता बाबा साहब अंबेडकर का नाम लेते थे जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में उनसे जुड़े पांच प्रमुख स्थलों का ऐसा विकास किया गया जिसकी कल्पना नहीं थी और उन्हें एक बड़े तीर्थ और पर्यटन स्थल में बदलने की कोशिश हुई। दलित और आदिवासियों के बीच आप जाएंगे तो नरेंद्र मोदी का समर्थन का एक बड़ा वर्ग आपको खड़ा मिलेगा। 
 
प्रधानमंत्री ने 2047 तक भारत को विकसित देश बनाने और अगले 5 वर्षों में विश्व की तीसरी अर्थव्यवस्था बनने का जो नारा दिया है वह भी लोगों के दिलों को छू रहा है। विपक्ष की आलोचना के विपरीत नरेंद्र मोदी की विकास संबंधी नीति तथा समाज के हर वर्ग के आत्मनिर्भर और विकसित होने के लिए दिए गए कार्यक्रमों ने सामान्य गरीबों महिलाओं किसने उद्योगपतियों व्यापारियों छात्रों शिक्षकों कर्मचारियों के बड़े वर्ग के बीच सकारात्मक प्रभाव डाला है। इन सबको लगता है कि तुलनात्मक रूप में भाजपा और नरेंद्र मोदी सरकार ही सही है। 
 
यह पहली बार है जब भारत के बाहर भारत विरोधी आतंकवादी दनादन मारे जा रहे हैं और दुनिया के प्रमुख देशों के विरोध के बावजूद ऐसा हो रहा है। यद्यपि सरकार इसे नकारती है पर आम लोगों को लगता है कि यह सब नरेंद्र मोदी सरकार के कारण ही हो रहा है अन्यथा पूर्व की सरकारें उनके समक्ष किंकर्तव्यविमूढ़ रहती थी। स्वयं विपक्ष ने ही ऐसी स्थिति पैदा कर दी है जिनसे लोगों के सामने इसमें ही चयन करने का विकल्प है कि आपको प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी चाहिए या नहीं?

ऐसी स्थिति में मतदाता किस ओर जाएंगे इसकी कल्पना ज्यादा कठिन नहीं है। तमिलनाडु जैसे राज्य में प्रधानमंत्री की रोड शो में उमड़ी भीड़ बता रही है कि किस तरह पिछले 10 वर्षों में भारतीय जनमानस की सोच और व्यवहार में बदलाव आया है।

(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)
 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

कब है 2024 में गुरु तेग बहादुर जयंती, जानें 20 अनमोल कथन