Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

जनता कर्फ्यू : ताली, थाली और शंख के साथ अद्भुत, अकल्पनीय

हमें फॉलो करें जनता कर्फ्यू : ताली, थाली और शंख के साथ अद्भुत, अकल्पनीय
webdunia

गरिमा संजय दुबे

सुना करते थे, पढ़ा करते थे कि गांधी जी के पीछे पूरा देश चला, नेहरू जी के पीछे एक आज़ाद भारत चला, शास्त्री जी के कहने पर व्रत किया पूरे भारत ने, लोकनायक के पीछे युवा चल पड़े थे तो मन सोचता था कि कैसे किया होगा उस युग में जब प्रचार साधन भी इतने नहीं थे, ऐसा क्या तत्व होता है किसी में जो उसे मानव से नायक बना देता है, लोकनायक, जननायक बना देता है। 
 
क्या करिश्मा होता है व्यक्तित्त्व  का कि एक समूचा राष्ट्र उससे संचालित होता है। जन्म के बाद से 42 वर्ष की उमर बीत जाने के बीच किसी नेता में नायक के दर्शन नहीं हुए थे। अटल जी जरूर उम्मीद जगाते थे किंतु अपनी साधक वृत्ति के चलते उनमें नायक होने की महत्वाकांक्षा कभी नहीं थी, यद्यपि वे फिर भी मननायक तो थे ही। और किसी में वह करिश्मा नज़र आया नहीं जो लोक के मन को बहुत छोटी छोटी सी बातों से छू ले। 
 
ताली और थाली आयोजन के अभूतपूर्व प्रसंग को देख मन बहुत भावुक है, बहुत  उम्मीद से भरा है कि अंततः भारत को वह नायक मिल गया जिसकी उसे तलाश थी। आप चाहे जितनी खिल्ली उड़ाएं आज निर्विवाद रूप से यह तय हुआ कि भारत ने उन्हें अपना नायक मान लिया है,तमाम विरोधों के बावजूद, ऐसा नायक जो भारत की आत्मा को समझता है। 
 
बौद्धिक आतंकवाद ने उसकी संवेदनाओं को बोथरा नहीं किया है। वह बहुत तेजी से एक विश्व नायक होने जा रहा है, उसमें इसकी महत्वाकांक्षा भी है  और योग्यता भी कि वह विश्व का नेतृत्व भी करे। योग्यता को महत्वाकांक्षा का साथ मिले तभी इतिहास रचे जाते हैं,अन्यथा योग्य व्यक्ति अयोग्य लोगों द्वारा शाषित होता है। बहुत जरूरी है योग्य का महत्वाकांक्षी होना ताकि विश्व को समाज को बेहतर नायक मिल सके। 
 
प्राकृतिक आपदा के समय साहस एक बड़ी पूंजी होती है। विश्व के बड़े विकसित देश जिनकी स्वास्थ्य सुविधाएं उत्तम दर्जे की हैं, जनसंख्या (चीन को छोड़ दे) तो भारत के किसी छोटे प्रदेश  जितनी वे भी इस विभीषिका से बुरी तरह पीड़ित हैं, तो भारत जैसा देश घनी आबादी, जागरूकता का अभाव, जिम्मेदारी का अभाव, कर्तव्य से अधिक अधिकार की बात करता भारत, उन सबसे ऊपर, जाति, मजहब, ऊंच नीच, क्षुद्र राजनीतिक अवसरवादिता, स्वार्थ और भ्रष्टाचार से संचालित होता भारत जब आपके सामने हो और देश के प्रधान सेवक के सामने इतने विरोधाभासों से भरा भारत हो तो उसे क्या करना चाहिए था। 
 
देश की भयावह वास्तविकता सामने रख, कमियां उघाड कर, अपने सीमित प्रयास बता, रोगियों के मुकाबले संसाधनों की कमी का रोना रो, जल्द इंतज़ाम के झूठे भरोसे का सहारा लेना चाहिए था,जनमानस को नकारात्मकता और भय से भर देना चाहिए था, या जनमानस में इस वायरस से लड़ने की क्षमता  हिम्मत विश्वास पैदा करना चाहिए था । मुझे खुशी है कि प्रधान सेवक ने बाद वाला रास्ता चुना, जब साधन सीमित हों तो घर के लोगों से उम्मीद की जाती है। 
 
घर में भोजन कम हो और आगंतुक  आ जाए तो घर के लोग अपनी जिम्मेदारी से कम में तृप्त हो अपना कर्तव्य निभाते हैं। वही उम्मीद तो की उन्होंने हम सबसे। 
 
दरअसल भारतीय जनमानस को, गण को हम यह बात सिखाना भूल ही गए थे कि तंत्र के प्रति उसकी भी कोई जिम्मेदारी है। हमने सदा तंत्र से अपेक्षा की। अपेक्षा गलत भी नहीं है किंतु जन गण मन जब मिलते हैं तभी राष्ट्र आगे बढ़ता है। गण का जिम्मेदार और जागरूक होना तंत्र की 
 
उत्पादकता और क्षमता बढ़ा देता है। भारत धीरे धीरे यह सीखने लगा है। सबके प्रति कृतज्ञता का भाव जन्म ले रहा है। हम आभारी हैं उन सबके जो लगे हुए है अपने कर्तव्य में। संवेदनाएं हैं उनके साथ जो काल के गाल मे समा गए, उनके परिजनों के साथ भी। हम एक जुट होकर इस विपत्ति से निपट लेंगें। हमें हमारे कर्तव्य के प्रति जागरूक करने के लिए शुक्रिया प्रधान सेवक जी। 
 
इस विपदा से जब बड़े सुविधासंपन्न राष्ट्र नहीं बच सके तो भारत इससे केवल जागरूकता के साथ लड़ सकता है और इससे लड़ने की उनकी कोशिश में साथ देना हमारा कर्तव्य। 
 
समझ नहीं आता मानवता की दुहाई देने वाले लोग उनके इस मानवीय कदम से भी असहमत हो गए। आश्चर्य कम दुख अधिक हुआ। प्रतिकात्मक रूप से देश को एक  करने की उनकी कोशिश ने जो समा बांधा वह कईयों की उम्मीद से परे था। वे आहत हुए  हैं ऐसी जन स्वीकार्यता देख, उसमें बुराई ढूंढने और अपनी कुंठा का प्रदर्शन करने में उन्होंने कोई देर नहीं लगाई किंतु अब उनके इस बौद्धिक आतंकवाद का कोई समर्थन नहीं करता। 
 
और जिन्हें लगता है कि इटली जैसा अभिजात्य होना चाहिए था यह उत्सव, तो वे जानते हैं कि भारत हर विदेशी चीज में देसी तड़का डाल उसका उपयोग करता है। चायनीज़ मंचूरियन हो या इटालियन पितज़ा टॉपिंग तो हमारी देसी ही रहेगी क्योंकि यह भारत है अपने आप में अनूठा...... इंक्रेडिबल इंडिया अनप्रेडिक्टबल इंडिया....


Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव का शहीद दिवस : हंसते-हंसते चढ़ गए जो फांसी पर