Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

भारत का उपद्रवी युवा : fool या intelligent

हमें फॉलो करें भारत का उपद्रवी युवा : fool या intelligent

अनिरुद्ध जोशी

, शुक्रवार, 20 दिसंबर 2019 (11:11 IST)
विचार हमारा शत्रु है यह विचार करते हुए अराजक विचारों के बक्से से कुछ बिखरा हुआ यहां प्रस्तुत है... हेडिंग में जब यह लिखा जा रहा है कि भारत का उपद्रवी युवा तो इसका मतलब यह कि यहां सिर्फ उपद्रवी युवाओं की ही बात की जा रही है।  इस लेख में गुमराह शब्द साइलेंट है।
 
किशोरावस्था सबसे खतरनाक अवस्था होती है। सामान्यत: यह 12 से 19 के बीच की मानी गई है। किसी किसी में यह 22 तक चलती रहती है। इसके बाद और भी खरतनाक उम्र प्रारंभ होती है जिसे हम युवा कहते हैं। यह 22 से 32 तक मानी जा सकती है। किसी किसी में यह 40 तक चलती रहती है। 40 के बाद कोई व्यक्ति खुद को युवा मानना चाहे तो भले ही मानें।
 
 
अब यदि हम स्कूल से कॉलेज में प्रवेश की बात करें तो यह किशोरावस्था में ही होता है। किशोरावस्था किसी भी मनुष्य के जीवन का बसंतकाल माना गया है। यदि इस अवस्था में अच्छी शिक्षा और संस्कार नहीं मिले हैं तो अराजकता और विद्रोह ही उसके संस्कार होंगे। यही उसकी जीवन शैली होगी जो बाबा, बाजारवाद, दक्षिणपंथ या वामपंथी से प्रभावित होगी।

अक्सर यह अवस्था माता-पिता और बच्चों के बीच कई संघर्ष उत्पन्न करती है। इस अवस्था में व्यक्ति को अपनों से ज्यादा पराए पसंद आते हैं और यदि पराए भटकाने वाले हैं तो फिर और ज्यादा पसंद आते हैं। अब यदि कोई माता-पिता कहे कि बेटा या बेटी तुम गलत रास्ते पर हो तो ऐसे में ये लोग फिर जानबूझकर उसी रास्ते पर चलेंगे।
 
 
इसी अवस्था पर ही विचारधाराओं के मठाधीश कब्जा करना चाहते हैं। क्योंकि इस अवस्था में मन ज्यादा से ज्यादा ग्रहण करने की क्षमता रखता है। वह इसलिए कि वह बुद्धिमत्ता और विवेक से खाली होता है और नया-नया विचार करना सीख रहा होता है। ऐसे में वह दूसरों से बहुत जल्दी प्रभावित होता है। इसी उम्र में विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण बढ़ता है और उस आकर्षण को नजरअंदाज करने के लिए प्रेम कहा जाता है। को एजुकेशन है तो जिंदगी में रोमांच ज्यादा महसूस होगा। यह सही है कि यह उम्र रोमांच और रोमांस ढूंढना चाहती है। बस इसी का फायदा उठाया जाता रहा है।
 
 
स्कूल, कॉलेज और विश्‍वविद्यालयों में इन छात्रों को विचारांतरित करने के लिए पहले से ही सक्रिय रहते हैं वामपंथी, दक्षिणपंथ या पोंगापंथी लोग। कोई भी छात्र जब कॉलेज में प्रवेश करता है तो वह सोच-समझकर या पढ़कर किसी विचारधारा से नहीं जुड़ता है बल्कि वह जिसके भी प्रोपेगेंडा से सबसे पहले आकर्षित या प्रभावित होता आ रहा है उससे जुड़ जाता है। अब यदि आप एक बार जुड़ गए तो‍ फिर धीरे-धीरे आपको उसी विचारधारा की प्रत्येक बात सत्य लगने लगेगी। उसी विचारधरा के नेताओं की हर बात आपको सही लगेगी। भले ही वह कितनी ही गलत हो। यह संत्संग का असर होता है।
 
 
व्यक्ति जब अपने जीवन के प्रारंभ में किसी एक विचारधारा से जुड़ जाता है तो उसे लगता है कि बाकी की विराधारा से जुड़े लोग मूर्ख और देशद्रोही हैं। यह भी मान सकते हैं कि यदि आप दक्षिणपंथी विरोधी हैं तो आपको धर्म और देश एक पुराना विचार लगेगा। यह ऐसा ही है कि यदि आप एक हिन्दू घर में पैदा हुए हैं तो आपके लिए हिन्दू धर्म महान है और मुस्लिम के घर में पैदा हुए हैं तो मुस्लिम धर्म महान है। आपने खुद से धर्म का चयन नहीं किया है। आपको जो जनम घुट्टी पिला दी गई है बस आपके लिए हर मर्ज की वही सही दवा है। बहुत कम लोग हैं जो कुवे से बाहर निकलकर सोचते हैं।
 
 
आजकल बुद्धिमान कहलाने के लिए आपको ज्यादा मेहनत या पढ़ाई करने की जरूरत नहीं होगी। आपको छात्र राजनीति के अलावा मीडिया को हेंडल करते याद आना चाहिए, चार कविता लिखना सीख जाएं, दो-चार महान साहित्यकारों के नाम रट लें, उनके कोटेशन याद कर लें और हां, झूठ का प्रचार कर सत्य बनाना सीख गए हैं तो बड़े नेताओं की नजरों में आप ऊंचे उठ जाएंगे। आपके पास दूसरे की बातों को अच्‍छे से काटने के लिए तर्क होना चाहिए। बस तर्कबाज व्यक्ति को ही सबसे ज्यादा बुद्धिमान माना जाता है, भले ही कुतर्क कर रहे हों या आपमें दो-कोड़ी की अक्कल हो।
 
 
आपकी पार्टी सत्ता में हो या नहीं हो लेकिन आपको हरदम व्यवस्था के खिलाफ सोचना, लिखना और कहते रहना चाहिए। किसी के खिलाफ होना ही बुद्धिमानी है। आपको यदि महान नेता बनना है, व्यस्था बदलना है, कानून बदलवाना है तो आपको देश के सबसे विवादित विश्‍वविद्यालय में प्रवेश करना चाहिए। उपद्रवी रहना, विवादित रहना ही बुद्धिमानी और विवेकी होना है। खैर...
 
 
किशोरावस्था में विद्रोही भावना प्रबल होती है, इसलिए एक किशोर विद्रोह की और आकर्षित होता है। किशोर और युवाओं को साथ लेकर विद्रोह भड़काना आसान है। दुनियाभर में यह हो भी रहा है और होता रहेगा। कोई भी छात्र/छात्रा वामपंथी या दक्षिणपंथी विचारधारा का प्रवेश ले यह आवश्यक नहीं, लेकिन किशोरावस्था के कारण विद्रोही भावना में बहकर किसी का वामपंथी या दक्षिणपंथी हो जाना आसान है।
 
 
भारत में युवाओं की आबादी सबसे ज्यादा है। चीन से भी ज्यादा है। ऐसे में इस आबादी का बाजारवादियों और वामपंथियों द्वारा दोहन किया जाना लाजमी है। अब यदि मैं कहूं कि भारत का अधिकतर युवा, युवा है ही नहीं तो आप मुझ पर भड़क जाएंगे। दूसरा यह कि वह मूर्ख है तो भी आप मेरे खिलाफ होंगे क्योंकि मेरी बातों को गलत सिद्ध करने के लिए आपने भी अपने कॉलेज से तर्क उधार ले ही लिए होंगे।
 
 
कुछ लोग जन्म से ही बुढ़े पैदा होते हैं और कुछ लोग बुढ़े होकर भी जवान सोच में जीने के आदि रहते हैं। कई ऐसे जवान लोग हैं जिनकी सोच अभी भी बचकानी है अर्थात बचपन में जैसी थी वैसी ही। और ऐसे भी कई जवान हैं जिनकी सोच बुढ़ों जैसी है। इस देश को बुढ़ापे की सोच से बचाने वाले भी अब नजर नहीं आते। हमारी राजनीति बुढ़ी हो चली है। हमारा समाज तो पूरी तरह से सड़-गल गया है। थोड़ी बहुत आशा हैं उद्योग जगत से और थोड़ी बहुत आशा है नई पीढ़ी से लेकिन सोचना होगा की कहीं इस आशा को कट्टरपंथियों की नजर न लग जाए। इसीलिए जरूरी है कि युवा सोच को युद्ध स्तर पर जाग्रत किया जाए, लेकिन कैसे? जब तक जिंदा हैं विचारधाराएं तब तक इंसान इंसान नहीं बनेगा और इंसानियत की बात करना तो छोड़ ही दो।
 
 
नशा, सेक्स, हिंसा, अधैर्य, विद्रोह, झूठ, चालाकी, चोरी, मक्कारी, जोड़तोड़, जुगाड़, ईर्ष्‍या, लिव इन रिलेशनशिप और तमाम तरह की बुराइयों में लिप्त भारत के अधिकतर युवाओं को आप क्या बुद्धिमान मानेंगे? शिक्षण संस्थानों को सुधारने के लिए हमें सोचना होगा कुछ नई दिशा में। हमें सोचना होगा कि क्या हम एक अच्छी सोच का निर्माण कर सकते हैं? एक ऐसी सोच जो मुद्दों का पूर्णत: विश्लेषण करने के बाद ही उस पर अपनी राय रखें।
 
 
जे. कृष्णमूर्ति ने कहा था कि सच्ची शिक्षा का अर्थ है बुद्धिमत्ता को जगाना और सुगठित जीवन को प्रोत्साहित करना- सिर्फ ऐसी शिक्षा ही किसी नई संस्कृति की और शांतिमय संसार की सृष्टि कर सकती है, किन्तु इस नई तरह की शिक्षा की स्थापना के लिए हमें एक नितांत भिन्न आधार पर एकदम नई शुरुआत करना पड़ेगी। हमारे चारों तरफ फैली हुई इस कबाड़ दुनिया के संबंध में हम निरर्थक राजनीतिक सिद्धांतों और सवालों पर बहस करते हुए सतही सुधारों को फड़फड़ाते हैं। क्या यह हमारी विचार शून्यता की निशानी नहीं है?
 


Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

मोदीजी आप ही बताइए, इस 'आग' में कैसे चढ़ेगा मेरी बेटी को खून...