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क्यों न दिवाली कुछ ऐसे मनाएं...

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डॉ. नीलम महेंद्र

दिवाली यानी रोशनी, मिठाइयां, खरीदारी, खुशियां और वो सबकुछ जो एक बच्चे से लेकर बड़ों तक के चेहरे पर मुस्कान लेकर आती है। प्यार और त्याग की मिट्टी से गूंथे अपने अपने घरौंदों को सजाना, भांति-भांति के पकवान बनाना, नए कपड़ों और पटाखों की खरीदारी।
 
दीपकों की रोशनी और पटाखों का शोर,
बस यही दिखाई देता है चारों ओर।
 
हमारे देश और हमारी संस्कृति की यही खूबी है। त्योहार के रूप में मनाए जाने वाले जीवन के ये दिन न सिर्फ उन पलों को खूबसूरत बनाते हैं बल्कि हमारे जीवन को अपनी खुशबू से महका जाते हैं। हमारे सारे त्योहार न केवल एक-दूसरे को खुशियां बांटने का जरिया हैं बल्कि वे अपने भीतर बहुत से सामाजिक संदेश देने का भी जरिया हैं।
 
भारत में हर धर्म के लोगों के दिवाली मनाने के अपने-अपने कारण हैं। जैन लोग दिवाली मनाते हैं, क्योंकि इस दिन उनके गुरु श्री महावीर को निर्वाण प्राप्त हुआ था। सिख दिवाली अपने गुरु हरगोविंदजी के बाकी हिन्दू गुरुओं के साथ जहांगीर की जेल से वापस आने की खुशी में मनाते हैं। बौद्ध दिवाली मनाते हैं, क्योंकि इस दिन सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म स्वीकार किया था और हिन्दू दिवाली मनाते हैं अपने 14 वर्षों का वनवास काटकर प्रभु श्रीराम के अयोध्या वापस आने की खुशी में।
 
हम सभी हर्षोल्लास के साथ हर साल दिवाली मनाते हैं। लेकिन इस बार इस त्योहार के पीछे छिपे संदेशों को अपने जीवन में उतारकर कुछ नई-सी दिवाली मनाएं। एक ऐसी दिवाली जो खुशियां ही नहीं, खुशहाली लाए। आज हमारा समाज जिस मोड़ पर खड़ा है, उस मोड़ पर दिवाली के संदेशों को अपने जीवन में उतारना बेहद प्रासंगिक होगा।
 
तो इस बार दिवाली पर हम किसी रूठे हुए अपने को मनाकर या फिर किसी अपने से अपनी नाराजगी खुद ही भुलाकर खुशियों के साथ मनाएं। दिवाली हम मनाते हैं राम भगवान की रावण पर विजय की खुशी में यानी बुराई पर अच्छाई की जीत, तो इस बार हम भी अपने भीतर की किसी भी एक बुराई पर विजय पाएं, चाहे वो क्रोध हो या आलस्य या फिर कुछ भी।
 
दिवाली हम मनाते हैं गणेश और लक्ष्मी पूजन करके, तो हर बार की तरह इस बार भी इनके प्रतीकों की पूजा अवश्य करें लेकिन साथ ही किसी जरूरतमंद ऐसे नर की मदद करें जिसे स्वयं नारायण ने बनाया है। शायद इसीलिए कहा भी जाता है कि 'नर में ही नारायण हैं'।
 
और किसी शायर ने भी क्या खूब कहा है-
'घर से मस्जिद है बहुत दूर तो कुछ ऐसा किया जाए/
किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए।' 
 
तो इस बार किसी बच्चे को पटाखे या नए कपड़े दिलाकर उसकी मुस्कुराहट के साथ दिवाली की खुशियां मनाएं और इस दिवाली अपने दिल की आवाज को पटाखों के शोर में दबने न दें।
 
दिवाली हम मनाते हैं दीपक जलाकर। अमावस की काली अंधेरी रात भी जगमगा उठती है तो क्यों न इस बार अपने घरों को ही नहीं, अपने दिलों को भी रोशन करें और दिवाली दिलवाली मनाएं जिसकी यादें हमारे जीवनभर को महकाए।
 
दिवाली का त्योहार हम मनाते हैं अपने परिवार और दोस्तों के साथ। ये हमें सिखाते हैं कि अकेले में हमारे चेहरे पर आने वाली मुस्कुराहट अपनों का साथ पाकर कैसे ठहाकों में बदल जाती है। यह हमें सिखाती है कि जीवन का हर दिन कैसे जीना चाहिए, एक-दूसरे के साथ मिल-जुलकर मौज-मस्ती करते हुए एक-दूसरे को खुशियां बांटते हुए। और आज हम सालभर त्योहार का इंतजार करते हैं जीवन जीने के लिए, एक-दूसरे से मिलने के लिए, खुशियां बांटने के लिए।
 
लेकिन इस बार ऐसी दिवाली मनाएं कि यह एक दिन हमारे पूरे साल को महका जाए और रोशनी का यह त्योहार केवल हमारे घरों को नहीं, बल्कि हमारे और हमारे अपनों के जीवन को भी रोशन कर जाए।
 
हमारी छोटी सी पहल से अगर हमारे आसपास कोई न हो निराश, तो समझो दिवाली है।
हमारे छोटे से प्रयास से जब दिल, दिल से मिलकर दिलों के दीप जलें और उसी रोशनी से 
हर घर में हो प्रकाश तो समझो दिवाली है।

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