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समय-पालन गुण है, अवगुण नहीं

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प्रज्ञा पाठक

कुछ दिनों पूर्व इंदौर में एक गरिमामय चिंतन केंद्रित कार्यक्रम में जाने का सुअवसर प्राप्त हुआ। धार्मिक, राजनीतिक, साहित्यिक और समाज-सेवा से जुड़े तबके के प्रतिनिधिगण वहां मौजूद थे।कार्यक्रम स्तरीय था और शामिल हस्तियां अपने-अपने क्षेत्र में बहुत नामचीन। 
 
सुबह से शाम तक के विविध सत्रों में काफी कुछ सीखने को मिला। विभिन्न दृष्टिकोण से अपनी बात रखना और नई विचारधाराओं से परिचय हुआ। एक ही मुद्दे पर मत-वैभिन्न्य और परस्पर बहस का उच्च स्तरीय रूप भी देखा।
 
सब कुछ अच्छा,ज्ञानवर्धक, लेकिन एक चीज़ पूरे कार्यक्रम के दौरान खटकती रही और वो थी समय-सीमा का पालन नहीं होना।
 
संचालक महोदय ने कार्यक्रम के प्रारम्भ में ही इसे तय करते हुए निवेदन कर दिया था कि अतिथिगण इसका ख्याल रखें ताकि सभी को अपनी विचाराभिव्यक्ति के लिए पर्याप्त अवसर मिले और कार्यक्रम ठीक समय पर विराम पा सके।
 
लेकिन बहुत कम वक्ताओं ने इस समय-सीमा का पालन किया।अधिकांश समय बहुसंख्य वक्ताओं के लिए घंटी बजती रही,जो उनके लिए अपना वक्तव्य समाप्त कर देने की प्रार्थनामय सूचक होती थी। खेद की बात रही कि उन सभी ने उस घंटी को भी अनसुना किया।
 
हालांकि हमारे देश में ऐसा होना बहुत ही आम है।यहाँ आयोजित लगभग कार्यक्रम दिए गए समय से काफी विलम्ब से आरम्भ होते हैं।वक्ता-श्रोता वाले आयोजनों में दोनों ही देर से पहुंचते हैं।वक्ता तय सीमा से अधिक ही नहीं काफी अधिक बोलते हैं, जो श्रोताओं के लिए ऊबा देने वाला और नीरस हो जाता है। इसलिए कई श्रोता बीच में ही उठकर चले जाते हैं। इससे कार्यक्रम का रस-भंग होता है और उसका मूल उद्देश्य प्रभावित होता है।
 
हमारी इसी समय-(अ)सूचकता के कारण अनेक महत् आयोजन अव्यवस्था के शिकार होते हैं और कई लोगों की असुविधा का कारण बनते हैं। वस्तुतः समय-पालन में दुर्बलता हम भारतीयों की पहचान बन गई है।यह दुर्गुण हममें इतनी गहराई तक रच-बस गया है कि अंग्रेजों के जमाने से इसके लिए हम उपहास के पात्र बनते आ रहे हैं।
 
अंग्रेज समय के बहुत पाबन्द होते हैं,जो एक अत्यंत सराहनीय गुण है।लेकिन हम अपने समूचे चरित्र में इतने निर्लज्ज हो गए हैं कि आज भी कोई समय का पालन करता हुआ दिखे,तो उसे 'अंग्रेजों की औलाद' का ताना मारने से नहीं चूकते गोया कि यह कोई अवगुण हो।
 
कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि कई लोग समय पर नहीं पहुंचने में अपनी शान समझते हैं।उन्हें लगता है कि ऐसा कर वे स्वयं को 'अति व्यस्त' बताते हुए 'विशिष्ट' होने का दर्जा पा लेंगे। तय समय से अधिक बोलने की पृष्ठभूमि में अनेक बार अहंकार से उपजी ढिठाई या निज ज्ञान के थोथे प्रदर्शन की भावना होती है।
 
लेकिन सच्चाई ये है कि दोनों ही मामलों में आप कोई सराहना नहीं पाते। पहले में लोग आपके विलम्ब से परेशान होते हैं और आयोजन अव्यवस्थित हो जाता है। दूसरे में कार्यक्रम की लय बिगड़ जाती है और आपकी छवि खराब होती है।
 
सच तो यह है कि निर्धारित समय पर पहुंचकर आप सभी संबंधितों की प्रशंसा के पात्र बनते हैं और विलम्ब से आने वालों को आपके उदाहरण से सीख दी जाती है।फ़िल्म जगत में अमिताभ बच्चन समय-पालन के लिये बहुत आदर पाते हैं।
 
जहां तक किसी आयोजन में बोलने का प्रश्न है, आप संक्षिप्त और सारगर्भित शब्दों में अपनी बात को प्रभावशाली ढंग से रख सकते हैं। समयानुकूल कम या अधिक शब्दों में विषय का प्रस्तुतिकरण एक सच्चे वक्ता की पहचान होती है।
 
दुनिया में जितने भी महान लोग हुए, सभी समय-पालन के अनुगामी थे। हमारे देश में गांधी जी इसका सबसे शानदार उदाहरण हैं।अपने समाज और राष्ट्र के लिए उनका अप्रतिम योगदान हम सभी जानते हैं।
 
ज़रा निगाह डालिये उनकी नित्य दिनचर्या पर।
 
प्रातः उठने से लेकर रात्रि सोने तक हर कार्य का समय बिल्कुल निश्चित-निर्धारित। न वे इसमें कोई चूक करते और न ही होने देते। सूत कातना,रोगियों की सेवा करना,हर पत्र का उत्तर लिखना,सभा-सम्मेलनों में जाना,आगंतुकों से भेंट करना,विविध आंदोलनों की रूपरेखा बनाने से लेकर उन्हें अंजाम तक पहुँचाने जैसे महान कर्मों को वे दृढ़ निश्चय के साथ समय को साधकर ही संभव कर पाये।
 
मेरा सीधे-सीधे यह कहना है कि जिस व्यक्ति को हम भारत की स्वतंत्रता का महानायक मानकर 'राष्ट्रपिता' की अतीव सम्मानजनक उपाधि से विभूषित करते हैं ,उसी की दी गई एक महत्वपूर्ण सीख को क्यों नहीं अपना सकते? यदि हम उसे सच्चा मार्गदर्शक मानते हैं, तो समय-पालन को अपने व्यक्तित्व का अंग बनाने में कोई गुरेज़ होना ही नहीं चाहिए।
 
यदि हम भारतीयों ने अपने समग्र चरित्र में समय-सूचकता को अपना लिया ,तो विकास और प्रगति के नए सोपानों तक पहुँचने में देर नहीं लगेगी।तब न कार्यालयों में वर्षों से धूल खा रही पेडिंग फाइल्स होंगी, न न्यायालयों में न्याय विलम्ब से होकर अपनी महत्ता खोएगा।
 
फिर न कोई मरीज इलाज के अभाव में दम तोड़ेगा, न परिवहन के साधन विलम्ब से गंतव्य तक किसी छात्र को पहुंचाकर उसका भविष्य बर्बाद करेंगे।
 
विश्वास कीजिये समय-पालन वो सद्गुण है,जिसे अपनाकर न केवल व्यक्तिगत बल्कि सामाजिक और राष्ट्रीय हित भी सधते हैं।आप अपनाकर तो देखिये,मेरा दावा है कि आपको इससे उपलब्ध लाभों को देखकर अन्य लोग भी इसे अपनाने के लिए प्रेरित होंगे। तब आप होंगे प्रकाशस्तंभ और शेष समाज होगा आपका अनुगामी।

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