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अमृतकाल में भारत का सांस्कृतिक पुनर्जागरण

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संजय द्विवेदी

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सनातन संस्कृति का यह स्वर्णिम दौर चल रहा है और भारत के माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सनातन संस्कृति के महत्वपूर्ण विचारों 'वसुधैव कुटुम्बकम्' अर्थात् पूरा विश्व एक परिवार है तथा 'सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः' सभी प्रसन्न एवं सुखी रहे, के इन्हीं मूलमंत्रों के साथ सनातन संस्कृति के संवाहक के रूप में हम सभी के मार्गदर्शक बन रहे हैं और समस्त विश्व को सनातन के विचारों से अवगत करवा रहे हैं। एक आधुनिक राष्ट्र के रूप में हमारा इतिहास करीब साढ़े सात दशक पुराना है, लेकिन हमारी सभ्यता 5,000 वर्ष से भी अधिक प्राचीन है। कहने की आवश्यकता नहीं कि भारत के खाते में अनगिनत उपलब्धियां हैं। उनके स्मरण के लिए इससे बेहतर और क्या अवसर हो सकता है कि जब हम अपनी आजादी के अमृतकाल में हैं, तो केवल इस दिशा में ठोस और एकजुट प्रयास किए जाने की आवश्यकता है।

हम सब इस बात से भलिभांति परिचित हैं कि भारतीय संस्कृति का विश्वकोष कहा जाने वाला 'रामचरितमानस' दर्शन, आचारशास्त्र, शिक्षा, समाज सुधार, साहित्यिक, आदि कई दृष्टियों से महत्वपूर्ण है, जो व्यक्ति को जीवन मूल्यों का दर्शन एवं गुणों के बारे में बहुत कुछ सिखाता है। लेकिन एक शब्द जो अक्सर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने संबोधन में कहते रहते हैं 'सबका साथ' इसकी प्रेरणा भी हमें प्रभु श्री राम से मिलती है, जिन्होंने रावण का मुकाबला करने के लिए सबको साथ लेकर अपनी एक अलग सेना बनाई। ये वो लोग थे जिनके पास ना कोई सैन्य क्षमता थी और ना ही कोई युद्ध लड़ने का अनुभव था, लेकिन ये सभी संगठित अवश्य थे और साथ एवं विश्वास से लड़कर रावण पर विजय भी पाई। संगठित कार्य ही उत्तम परिणाम के आधार को प्रस्तुत करता है। सदियों से भारत अपनी सांस्कृतिक आध्यात्मिकता के लिए विख्यात है। यह देश आध्यात्मिक ज्ञान का केंद्र रहा है। यहां बहने वाले आस्था के सैलाब को सारी दुनिया देखने आती रही है। अनेक विदेशी यात्रियों ने भी अपने संस्मरणों में इनका उल्लेख किया है।

हजारों साल के इतिहास में हमारे श्रद्धा केंद्रों को विधर्मियों द्वारा ध्वस्त किये जाने के बावजूद ये पवित्र स्थल अपने पुण्य प्रवाह के साथ वर्षों से टिके हुए हैं। अपनी उत्कृष्टता का दंभ भरने वाले मिस्र, रोम जैसी सभ्यताओं के चिन्ह आज नहीं के बराबर हैं, उनका एक भी सांस्कृतिक अंश अपने मूल स्वरूप में उपस्थित नहीं है। परन्तु भारत एकमात्र ऐसा देश है, जो यह दावा कर सकता है कि उसने लाखों विपत्तियों के बावजूद अपनी आध्यात्मिकता और आस्था केंद्रों की प्राण शक्ति से अपने सनातन चरित्र को जीवंत रखा है। बहरहाल, आजादी का सूरज निकलने के बाद उम्मीद थी कि स्वाधीन भारत की सरकारें इस पर ध्यान देंगी और हमारे आस्था के केंद्र अपनी प्राचीन अवस्था में पुर्नस्थापित होंगे, परन्तु एक खास तरह के तुष्टिकरण की राजनीति ने अपनी जगह बना ली और भारत के अनेक श्रद्धा केंद्र विकास की राह ताकते रहे।
 
यह दैवीय संयोग ही है कि 2014 से भारत के आध्यात्मिक जगत में सांस्कृतिक उत्थान के एक नए युग की शुरुआत हुई। 500 वर्षों से विवादित श्रीराम मंदिर का मार्ग प्रशस्त हुआ और आज मोदी सरकार के नेतृत्व में तेजी से मंदिर का निर्माण कार्य चल रहा है। भारी प्राकृतिक आपदा झेल चुके हमारे चार धाम में एक केदारनाथ धाम का कायाकल्प भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इच्छा शक्ति से सम्पन्न हो चुका है। उत्तराखंड में चारधाम यात्रा नामक परियोजना परवान चढ़ चुकी है और लगभग सभी दुर्गम आस्था केंद्रों पर अब 12 महीने आसानी से पहुंचा जा सकता है। ऋषिकेश और कर्ण प्रयाग को रेलवे मार्ग से भी जोड़ा जा रहा है, जो 2025 तक पूरा होगा। कश्मीर में धारा 370 की समाप्ति के बाद मंदिरों के पुनरुद्धार का काम शुरू हुआ है। श्रीनगर स्थित रघुनाथ मंदिर हो या माता हिंगलाज का मंदिर, सभी प्रमुख मंदिरों के स्वरूप को नवजीवन दिया जा रहा है।

पिछले साल भारत की आध्यात्मिक राजधानी काशी का पुनरुद्धार नरेंद्र मोदी जी के कर कमलों से ही संभव हुआ है। वह उनका संसदीय क्षेत्र है इसलिए काशी का विकास हुआ, ऐसा नहीं है। क्योंकि पहले भी अनेक बड़े नेता वहां का संसदीय नेतृत्व कर चुके हैं, लेकिन किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि काशी की सकरी गलियों में विश्वनाथ भगवान के लिए कॉरीडोर बन सकता है। परन्तु यह संभव हुआ है और बहुत तेज गति से हुआ है। आज काशी अपने नए रंगरूप में अपनी आध्यात्मिक पहचान के साथ चमचमा रही है। काशी न्यारी हो गई है। जहां दुनिया भर के लोग आकर वास्तविक भारत और उसकी आध्यात्मिक राजधानी को निहार रहे हैं। प्रधानमंत्री ने जितना ध्यान देश के मंदिरों के पुनरुद्धार पर दिया है, उतना ही ध्यान विदेशों में भी जीर्ण शीर्ण हालत में पड़े पुराने मंदिरों की योजनाओं पर भी लगाया है। इस दिशा में सबसे पहले बहरीन स्थित 200 साल पुराने श्रीनाथ जी के मंदिर के लिए 4.2 मिलियन डॉलर खर्च किये जाने की योजना है।

इसके अलावा प्रधानमंत्री द्वारा अबूधाबी में भी यहां के पहले मंदिर की 2018 में आधारशिला रखी गई। संयुक्त अरब अमीरात में विशाल हिन्दू मंदिर का लोकार्पण आधिकारिक रूप से वहां की सरकार ने किया। जेबेली अली अमीरात के कॉरीडोर ऑफ चॉलरेस में स्थित इस विशाल मंदिर के बनने से वहां के हिन्दुओं का दशकों पुराना सपना पूरा हुआ है, जिसके पीछे भारत की मोदी सरकार का अथक प्रयास है।
 
गुजरात के मेहसाणा जिले में चालुक्य शासन में बनाए गये मोढेरा के सूर्य मंदिर का भी पुनरुद्धार हुआ। वहां उड़ी प्रोजेक्शन लाइट एंड साउंड शो के उद्घाटन के दौरान नरेंद्र मोदी जब उसके अतीत का स्मरण करते हुए यह कह रहे थे कि इस स्थान पर अनगिनत आक्रमण किये गये, लेकिन अब मोढेरा अपनी प्राचीन चरित्र को बनाए रखते हुए आधुनिकता के साथ बढ़ रहा है, तब वह देश की जनता को यह संदेश दे रहे थे कि भारत के सभी प्राचीन आस्था स्थल अपनी गौरवशाली पहचान के साथ आधुनिक सुविधाओं से लैस हो सकते हैं, और हो रहे हैं। लगभग एक साल पहले ही सोमनाथ के मंदिर के पुनरुद्धार और अन्य सुविधाओं के लिए पीएम ने कई परियोजनाओं का शुभारंभ किया था। आने वाले समय में सोमनाथ भी आधुनिक सुविधाओं से लैस दिखेगा।
 
विगत जून महीने में पुणे के देहू में नये तुकाराम महाराज मंदिर और गुजरात के पावागढ़ मंदिर के ऊपर बने कालिका माता मंदिर के पुनर्निर्माण का उद्घाटन भी प्रधानमंत्री जी ने किया था। पावागढ़ में मां कालिका को नमन करते हुए उन्होंने कहा था कि हमारे श्रद्धास्थल हर भारतीय के प्रेरणा केंद्र हैं और ये स्थल आस्था के साथ-साथ नई संभावनाओं का स्रोत भी बन रहे हैं। प्रधानमंत्री की इस बात के बड़े गहरे अर्थ हैं, क्योंकि यह स्वाभाविक है कि जिन मंदिरों या आस्था केंद्रों का पुनरुद्धार हो रहा है, वहां केवल मंदिर परिसर का ही कायाकल्प नहीं होता, बल्कि उसके साथ उस क्षेत्र का समग्र विकास भी होता है।

काशी, सोमनाथ, केदारनाथ, देहू, पावागढ़ सहित सभी स्थलों पर पुनरुद्धार कार्य के साथ-साथ अनेक जरूरी, विकास और रोजगारपरक योजनाओं को भी अमलीजामा पहनाया जा रहा है। सभी स्थलों पर हजारों करोड़ों की परियोजनाओं को जमीन पर उतारा जा रहा है, जो नई संभावनाओं के द्वार खोलेंगे। निःसंदेह ऐसे सभी क्षेत्रों में आध्यात्म-संस्कृति का नया सवेरा हुआ है तो विकास की नई गंगा भी प्रवाहित हुई है। सबसे बड़े लोकतीर्थ अयोध्या में श्रीराम मंदिर के निर्माण के साथ-साथ लाखों करोड़ की परियोजनाओं पर काम हो रहा है। इंटरनेशनल एयरपोर्ट से लेकर एक्सप्रेस वे तक बन रहा है और अयोध्या को वैश्विक सुविधाओं वाला महानगर बनाने का कार्य तीव्र गति से चल रहा है। काशी, सोमनाथ, केदारनाथ सहित सभी स्थानों पर यही स्थिति है। इसलिए प्रधानमंत्री द्वारा उद्घाटित धार्मिक आस्था स्थलों को विकास के एक नये मॉडल के रूप में भी देखा जाना चाहिए। इन स्थलों पर यात्रियों की संख्या बढ़ेगी तो रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे और राजस्व में भी वृद्धि होगी। देश की अर्थव्यवस्था को भी इससे नई उड़ान मिलेगी।
 
उल्लेखनीय है कि नरेंद्र मोदी देश के किसी भी हिस्से में जाते हैं, तो वहां के प्रसिद्ध देवालयों में दर्शन-पूजन अवश्य करते हैं। अथवा उनका पुण्य स्मरण करते हैं। हाल ही में नवरात्रि में शक्ति पीठ अंबाजी मंदिर में उन्होंने दर्शन-पूजन करते हुए कई विकास परियोजनाओं का शिलान्यास किया। देश ने विगत 9 सलों में अनेक ऐसे अवसर देखे हैं। पिछले लोकसभा चुनाव के प्रचार अभियान से पहले मोदी जी ने माता वैष्णो देवी के दर्शन किये तो चुनाव समाप्त होते ही एक दिन के लिए केदारनाथ स्थित गुफा में ध्यान किया।
 
यह नरेंद्र मोदी की ही प्रेरणा है कि राज्य सरकारों ने भी देवालयों पर विशेष ध्यान देना शुरू किया है। उत्तर प्रदेश का मथुरा, विन्ध्याचल, प्रयागराज हो या मध्यप्रदेश का उज्जैन हो, अनेक ऐसे उदाहरण हैं जहां आधुनिक सुविधाओं से लैस विकास कार्य हुए हैं। प्रधानमंत्री द्वारा उज्जैन की पावन धरा पर महाकाल लोक के नये कॉरीडोर तथा अन्य लोकमुखी सुविधाओं का उद्घाटन भी इस कड़ी में एक ऐतिहासिक पड़ाव है, जहां से भारत के आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, धार्मिक पुनरुत्थान का नया अध्याय प्रारंभ होगा। महाकाल की नगरी विश्व भर में विशेष धार्मिक महत्व रखती है, जहां प्रतिदिन लाखों श्रद्धालु आते हैं। उज्जैन में राज्य सरकार द्वारा किया नवनिर्माण और उसका नामकरण हमारी आध्यात्मिक यात्रा में नया अध्याय जोड़ेगा।

वस्तुतः भारतीय संस्कृति का आधार आदर्श आध्यात्मिकता है। यही वह धुरी है जिससे भारत में व्यक्तिगत जीवन, सामाजिक जीवन, राष्ट्रीय जीवन और आर्थिक जीवन के मध्य सदियों से सामंजस्य रहा है। हमारे शक्तिपीठों, मंदिरों, पुण्यस्थलों की सांस्कृतिक विरासत पर नरेंद्र मोदी की गहनदृष्टि से विगत 70 साल से जमी धूल हट रही है और भारत को उसकी प्राणशक्ति की ओर ले जा रही है। इस शक्ति की जागृति से भारत की सांस्कृतिक अस्मिता का पुनर्जागरण संभव हो रहा है और विश्व कल्याण मैं आध्यात्मिक अभ्युदय का नया दौर शुरु हुआ। इस दौर का जब भी इतिहास लिखा जाएगा, तब नरेंद्र मोदी द्वारा भारत के आध्यात्मिक पुनरुत्थान का योगदान स्वर्ण अक्षरों में दर्ज होगा।
 
हमारे ऋषियों ने उपनिषदों में 'तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योर्मामृतं गमय' की प्रार्थना की है। यानी, हम अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ें। परेशानियों से अमृत की ओर बढ़ें। अमृत और अमरत्व का रास्ता बिना ज्ञान के प्रकाशित नहीं होता। इसलिए, अमृतकाल का ये समय हमारे ज्ञान, शोध और इनोवेशन का समय है। हमें एक ऐसा भारत बनाना है जिसकी जड़ें प्राचीन परंपराओं और विरासत से जुड़ी होंगी और जिसका विस्तार आधुनिकता के आकाश में अनंत तक होगा। हमें अपनी संस्कृति, अपनी सभ्यता, अपने संस्कारों को जीवंत रखना है। अपनी आध्यात्मिकता को, अपनी विविधता को संरक्षित और संवर्धित करना है। और साथ ही, टेक्नोलॉजी, इंफ्रास्ट्रक्चर, एजुकेशन, हेल्थ की व्यवस्थाओं को निरंतर आधुनिक भी बनाना है। प्रख्यात कवि भीम भोई जी की कविता की एक पंक्ति है।
'मो जीवन पछे नर्के पड़ी थाउ,जगत उद्धार हेउ।'
 
अर्थात्, अपने जीवन के हित-अहित से बड़ा जगत कल्याण के लिए कार्य करना होता है। जगत कल्याण की इसी भावना के साथ हमारा कर्तव्य है कि हम सभी को पूरी निष्ठा व लगन के साथ काम करना होगा। हम सभी एकजुट होकर समर्पित भाव से कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ेंगे, तभी वैभवशाली और आत्मनिर्भर भारत का निर्माण होगा।

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