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एससी एसटी मोर्चा ने किया चुनाव में सवर्ण उम्मीदवारों के बहिष्कार का ऐलान

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विशेष प्रतिनिधि

, रविवार, 23 सितम्बर 2018 (23:06 IST)
भोपाल। मध्यप्रदेश में चुनाव से पहले अचानक से जातिगत राजनीति अपने उफान पर पहुंच गई है। अब तक चुनावी सियासत में जातिगत राजनीति के मॉडल के तौर पर उत्तर भारत में उत्तरप्रदेश और बिहार की पहचान होती थी।
 
 
लेकिन अब अगर मध्यप्रदेश के मौजूदा सियासी परिदृश्य की बात करें तो अनुमान लगाना कठिन नहीं है कि इस बार विधानसभा चुनाव में जाति एक अहम रोल निभाने जा रही है। एससी-एसटी एक्ट को लेकर जो आंदोलन मध्यप्रदेश में शुरू हुआ था, वो खत्म होने की जगह अब बढ़ता ही जा रहा है।
 
जातिगत राजनीति से जुड़े संगठन अब भोपाल में अपना शक्ति प्रदर्शन कर सियासी दलों को चेतावनी दे रहे हैं। प्रदेश में एससी-एसटी एक्ट को लेकर जिस आंदोलन की शुरुआत ग्वालियर-चंबल इलाके से शुरू हुई थी, अब उसकी आंच भोपाल तक पहुंच गई है। पहले जहां एट्रोसिटी एक्ट को लेकर सामान्य वर्ग के संगठन सपाक्स ने अपनी ताकत दिखाते हुए राजनीतिक दल के नेताओं का विरोध किया, वहीं अब एट्रोसिटी एक्ट के समर्थन में एससी-एसटी वर्ग के संगठन अजाक्स और एससी-एसटी से जुड़े अन्य संगठनों ने अपनी ताकत दिखाई है।
 
भोपाल में एससी-एसटी से जुड़े प्रदेशभर से जुटे हजारों लोगों ने अपना शक्ति प्रदर्शन किया, वहीं सभा में एससी-एसटी मोर्चा ने बड़ा ऐलान करते हुए कहा कि चुनाव में सवर्ण उम्मीदवारों का एससी-एसटी वर्ग से जुड़े संगठन और लोग बहिष्कार करने के साथ ही सवर्ण उम्मीदवारों को वोट भी नहीं देंगे। मोर्चे के नेताओं ने एक सुर में साफ कर दिया कि एट्रोसिटी सिटी एक्ट में अब किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ बर्दाश्त नहीं की जाएगी। इसके साथ ही संगठन ने रिजर्वेशन के नियमों में किसी भी प्रकार के फेरबदल या संशोधन को लेकर भी सरकार को चेतावनी दी है।
 
अजाक्स ने अपना शक्ति प्रदर्शन ऐसे समय किया है, जब प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि एससी-एसटी एक्ट के तहत प्रदेश में बिना जांच के गिरफ्तारी नहीं होगी। मोदी सरकार के 2 केंद्रीय मंत्री थावरचंद गहलोत और नरेंद्र सिंह तोमर ने खुलकर एट्रोसिटी सिटी एक्ट का समर्थन किया है।
 
इसके बाद अजाक्स का रैली कर अपनी ताकत दिखाना इस बात के साफ संकेत हैं कि आने वाले समय में अगर एक्ट को लेकर अगर कोई भी परिवर्तन किया गया तो टकराव देखने को मिल सकता है। चुनाव में सवर्ण उम्मीदवारों को वोट नहीं देने के फैसले ने इतना तो साफ कर दिया है कि इस विधानसभा चुनाव कहीं-न-कहीं लोगों से जुड़े मुद्दों पर न केंद्रित होकर जातिगत राजनीति की भेंट चढ़ेगा।

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