Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

स्त्री के माथे पर सौभाग्य का टीका है मातृत्व

हमें फॉलो करें स्त्री के माथे पर सौभाग्य का टीका है मातृत्व
webdunia

प्रीति सोनी

दुनिया का सबसे खूबसूरत शब्द, पता है क्या है... सृजन। और इस खूबसूरत शब्द को खूबसूरत आकार देती है, दुनिया की सबसे खूबसूरत कृति, जिसे हम मां कहते हैं। मां ही है, जो इस दुनिया में जीवन का सृजन करती है, और खुद भी नए रूप में सृजित होती है। ईश्वर ने इस महान कार्य के लिए सिर्फ औरत को चुना है, जो सृजन के बाद उस ईश्वर का ही रूप होती है, जन्मदाता बनकर। 
 
कितनी अजीब बात है न, ईश्वर की बनाई यह व्यवस्था जरा भी नहीं बिगड़ती। बच्चे को खिलाने, पालने-पोसने या उसकी तमाम जिम्मेदारियों को जरूरत और परिस्थितियों के मुताबिक चाहे कोई भी निभा ले, पर नन्हें कदमों की धरती पर आहट तो, मां के पेट से ही होती है, उसके अंश के रूप में। क्योंकि ईश्वर चाहते हैं, कि धरती पर आने वाली हर दिव्य आत्मा एक स्त्री के अंदर पले, स्त्री के माध्यम से शुरुआती पोषण प्राप्त करे, और स्त्री से होकर ही वह इस संसार में प्रवेश करे। हर कण, स्त्री का अंश हो...। 
 
विज्ञान और तकनीक के युग में कितने ही आविष्कार कर लिए गए, कई एकाधिकार के क्षेत्र की चीजों, विषयों और परिस्थ‍ितियों के विकल्प तलाश लिए गए, कित्नु शिशु को जन्म देने का अधिकार और सौभाग्य आज भी सिर्फ स्त्री के पास है। जब किसी परिस्थिति विशेष में स्त्री सृजन न भी कर पाए, तो अब सरोगेसी के रूप में वह अधिकार प्राप्त है और यह व्यवस्था एक साथ दो स्त्र‍ियों को मातृत्व का सुख और सौभाग्य देती है। यानि विज्ञान भी ईश्वर की इस इच्छा को पार नहीं कर पाया। 
webdunia
सरोगेसी का पालन किसी भी महिला द्वारा किन परिस्थितियों में किया जाता है, वह अलग विषय है...लेकिन सबसे महत्वपूर्ण है उसका सृजनशील होना...नारी होना। दुनिया में भले ही पुरुषों और स्त्र‍ियों को समान स्तर पर आंका जाए या कहीं-कहीं सिर्फ पुरुष सत्ता को महत्व दिया जाए, पर ईश्वर की सत्ता में यह सौभाग्य सिर्फ नारी को दिया गया है, कि वह दर्द सहकर भी उसमें असीम आनंद का अनुभव करते हुए सृजन करती है। किन्हीं कारणों से एक नारी सृजन न भी कर पाए, तो अब वह दूसरी नारी की मदद से ही सही, जीवन सृजन करती है। है ना अदभुत! 
 
जहां अपनी देह पर किसी अजनबी की छुअन से भी वह अपवित्र महसूस करती है, वहां किसी के अंश को अपनी कोख में नौ महीने रखना और मातृत्व को महसूस करना भी उसे मलीन नहीं बल्कि महान बना देता है। उस नन्हीं जान को इस धरती पर लाने के लिए ममता का भाव झरने सा कैसा बहता होगा, जो किसी कारण विशेष से ही सही, पर एक स्त्री अपनी कोख भी देने के लिए तैयार है। किसी और की कोख के लिए सृजन करने के लिए तैयार है और पीड़ा सहने के लिए भी तैयार है। क्योंकि शायद मातृत्व एक ऐसा सोता है, जो एक दूसरे की सबसे बड़ी मित्र, प्रतिद्वंदी या शत्रु होने के लिए पहचानी जाने वाली दो स्त्रियों को एक साथ, एक जैसा, एक ही भाव में भिगोने की क्षमता रखता है।
 
मातृत्व वह भाव है, जो सिर्फ ममता की तरंगों से तरंगित होता है, और मोह के धागों में बंधकर आनंद के घुंघरुओं में खनकता है। यह ईश्वर द्वारा स्त्री के माथे पर लगाया जाने वाला सौभाग्य का वह टीका है, जो ताउम्र प्रेम के चंदन से महकता है। 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

मां, मुझे करुणा का अर्थ नहीं आता