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माँ कभी नहीं रूठती

सिर्फ माँ के लिए...

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अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

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मोजे रात में सुखाकर मेरे रूम के टेबल पर रख दिए गए थे। प्रेसबंद पेंट-शर्ट कबर्ड में टँग चुके थे। चाय उबलने की खुशबू आ रही थी। चाय की खुशबू में चावल के पकने की खुशबू कुकर की सिटी से निकल कर मेरे भीतर तक अजीब-सा घालमेल कर रही थी।

नींद खुलने के बाद भी तब तक पलंग पर सोता रहता हूँ जब तक कि माँ कह न दें की 7 बज गए हैं, चाय तैयार है।

सचमुच इन सबसे पहले मेरे कानों में 6 बजे से ही बाथरूम में बाल्टी और पानी ढुलने की आवाज सुनाई देती रहती है, फिर कुछ देर बाद गायत्री मंत्र की बुदबुदाहट और फिर अंतत: मेरे कानों में माँ आकर कहती है 7 बज गए है और चाय तैयार है।

कई सालों से यह क्रम जारी है। उस वक्त भी जब वह बीमार होती थी और उस वक्त भी जब मैं बीमार होता था। मैं बदलता रहा, लेकिन माँ कभी नहीं बदली। कितनी ही दफे कहा कि मत उठा करो इतनी सुबह मेरे लिए। मत चावल पकाया करो इतनी सुबह। कोई जरूरत नहीं है चाय बनाने की। तुमने मेरी आदतें बिगाड़ रखी है।

गाँव में पहले नाना के लिए उठती रही। खेतों में काम करती रही। फिर मेरे पिता के लिए सुबह-सुबह उठकर तमाम तरह के उपक्रम करती रही और अब मेरे लिए। क्या यही है तुम्हारा जीवन। कभी दुनिया नहीं देखी। तीरथ जाने की आस आज तक मन में है। पड़ोस के मंदिर में भागवत सुनने से क्या भला होगा?

क्या तुमने कभी सोचा कि मैं शादी करके अपना घर बसा लूगाँ तो कितना ध्यान रख पाऊँगा तुम्हारा? क्या शादी के बाद आज तक कभी किसी ने अपनी माँ का उसी तरह ध्यान रखा जिस तरह की माँ रखती आई। क्या कोई बेटी ससुराल जाने के बाद पलटकर देखती है उसी तरह जैसे कि बचपन में ठोकर लगने पर वह माँ को पलटकर देखती थी?

मुझे बहुत गुस्सा आता था जब माँ कानों में कहती थी, 7 बज गए हैं चाय तैयार है, और जब मैं फिर भी नहीं उठता था तो डाँट कर कहती थी क्या स्कूल नहीं जाना है? कई साल बाद आज भी कहती हैं क्या ऑफिस नहीं जाना है? चलो उठो, चाय तैयार है। समय पर ऑफिस पहुँचा करो।....लेकिन सच मानो तो आज तक मैं कहीं भी समय पर कभी नहीं पहुँचा।

मैंने बचपन में एक कहानी पड़ी थी जो मुझे आज भी याद है। जब भी मुझे किसी बात को लेकर माँ पर गुस्सा आता है तो मुझे यह कहानी याद आ जाती है।

सैन्स फ्रांसिक्को का वह नागरिक था। नाम उसका डिसूजा था। जिनसे अपनी माँ को प्रेमिका के खातिर छोड़कर अलग घर बसा लिया था। उसकी बहुत तरक्की हुई वह शीप पर सेलर हो गया। कई दफे घर से कॉल आया कि तुम्हारी माँ बीमार है और वह तुम्हें बस एक बार देखभर लेना चाहती है, लेकिन वह कभी नहीं गया गाँव, जबकि पत्नी के एक कॉल पर वह छुट्टी की एप्लीकेशन दे देता था।

एक दिन जहाज पर वह था तो उसने दूर से देखा कि समुद्री तूफान उसके जहाज की ओर बढ़ रहा है। सतर्कता के लिए सुरक्षित जगह की तलाश करके के लिए वह दौड़ता है तभी शीप के एक गलियारे में देखता है कि उसकी माँ खड़ी हुई है। वह अचंभित रह जाता है- 'माँ तुम यहाँ कैसे?'

अरे वह सब बातें छोड़ों बेटा, वह तो बाद में भी कर लेंगे। मेरी सुनो, मुझे अभी पता चला ि सबसे नीचे के फ्लोर में पानी घुस गया है तुझे पीछे के रास्ते से निकलकर ऊपर रखी हुई मोटर बोट का उपयोग करना चाहिए, क्योंकि तूफान बढ़ने वाला है और जहाज के डूबने की पूर्ण संभावना है।

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'अच्छा, लेकिन तुम यहाँ कैसे आई यह तो बताओ?'

'मेरे प्यारे बेटे यह सब पूछने का वक्त नहीं है, पहले अपनी जान बचाओ फिर सब बता दूँगी।'

'तुम भी चलो मेरे साथ'

'ठीक है, तुम आगे-आगे चलो मैं पीछे से आती हूँ।'

डिसूजा दौड़ता हुआ ऊपरी हिस्से पर जाने लगता है तभी पीछे पलटकर देखता है कि माँ पता नहीं कहाँ चली गई। वह कुछ सोच पाता इसके पहले ही जहाज को जोर से एक झटका लगता है और वह तूफान से घिर जाता है। डिसूजा माँ की चिंता किए बगैर लाइफ जैकेट पहनता है और मोटर बोट के लिए माँ द्वारा बताए स्थान पर दौड़ पड़ता है।

.....उस तूफानी हादसे में अधिकतर लोगों की जान चली गई, लेकिन डिसूजा बच गया। दूसरे दिन डिसूजा के हाथ में एक पत्र होता है जिसमें लिखा होता है...

''जब तक तुम्हारे पास यह पत्र पहुँचेगा तब तक तुम्हारी माँ को दफना दिया जाएगा यदि तुम उसकी शांति के पाठ में आना चाहो तो आ जाना....तुम्हारा पिता।'

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