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अब कृत्-कृत्य भयो मैं माता

हमें फॉलो करें अब कृत्-कृत्य भयो मैं माता
- विशाल मिश्र

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माता जिनको याद करे वो लोग निराले होते हैं
माता जिनका नाम पुकारे किस्मत वाले होते है

ईश्वर साकार रूप में नहीं आ सकता था इसलिए उसने घर-घर माँ बनाई। हरेक घर में ईश्वर द्वारा बनाए गए मंदिर की मूर्ति है माँ। क्योंकि आप दुनिया में हैं तो आपकी माँ होगी ही सही।

साल में एक दिन 'मदर्स डे' मनाकर, उसके लिए कुछ तोहफा लाकर या विश करके बताना। समाचार-पत्रों के पेज भरे देखकर माँ भी हौले से मुस्कुराती होगी। यह सब क्या है, क्यों‍ करते हैं ये सब। क्या दिखाना चाहते हैं। माँ का महत्व? जिस प्रकार एक गुरु के गुणों का बखान नहीं किया जा सकता। तो माँ को क्या इन शब्दों की सीमा में बाँधा जा सकता है?

उसका महत्व बताया जा सकता है कि मेरी माँ कैसी है। कतई नहीं। माँ शब्द अपने आप में ये सब विशेषण समेटे हुए है। आप उसकी निगाह के सामने हैं तो उसका रोज ही मदर्स डे है। आपको भोजन कराएगी, आपसे पूछेगी ऑफिस जा रहे हो गाड़ी की चाबी तो नहीं भूले, बैग तो नहीं भूले। यह मन गया उसका मदर्स डे।

शहर में आप नहीं भी हैं। बेटे के हाल पता चले कि कुशल है। यह हो गया मदर्स डे। इन सबके लिए कोई विशेष दिन की जरूरत नहीं। इसी प्रकार आप माँ के पास 2 मिनट बैठ जाएँ। क्या चल रहा है आजकल। सब राजी-खुशी तो है। उनसे पापा के बारे में पूछ लो। पापा की तबियत पूछ लो। आपकी तरफ से भी हो गया मदर्स डे। दिन में कितनी बार आप इसका सुखद अहसास महसूस कर सकते हैं।

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माँ किसी गिफ्ट या तोहफे की मोहताज नहीं। सबसे बड़ा तोहफा जो वह चाहती है बेटा जहाँ भी रहे मजे में रहे। फिर चाहे उसने अपने बीवी-बच्चों की खातिर बूढ़े माँ-बाप को अकेले ही क्यों न छोड़ रखा हो। यह तो आप अपना मन बहलाते हैं सोचकर या एक-दूसरे के मुँह से सुनकर कि बेटा घर का चिराग है। बुढ़ापे की लाठी है। माँ-बाप का सहारा है।

माता-पिता तो रिश्ता ही ऐसा है जो आपको चाहता है, आपके लिए जन्म से लेकर बड़े होने तक काफी कुछ करते हैं पूरी तरह नि:स्वार्थ भाव से।

यह सच है कोई हरजोई नहीं
माँ के जैसा दुनिया में कोई नहीं
एक बार नींद में चौंका था मैं
उसके बाद बरसों तलक मेरी माँ सोई नही

एक बार की बात है। मैं कॉलेज में पढ़ता था। मेरा उपवास टूट गया। भूल से कुछ खा लिया। मैंने पूछा मम्मी अब क्या होगा। तो बोलीं कुछ नहीं बच्चों को सब चलता है। ऐसा मुझे मेरे बचपन में अनेक बार बात-बात में कहकर बहला देती थीं। मैंने अनायास ही उनसे पूछा 'मम्मी मैं बच्चा कब तक रहूँगा।' धीरे से बोलीं- बेटा तेरी कमर लटक जाएगी और यदि मैं सामने रहूँगी तो भी तू बच्चा ही रहेगा।

माँ के इस जवाब को मैंने बड़ी गंभीरता से समझा और वाकई आज भी किसी बुजुर्ग से पता चलता है कि उनके माता-पिता या माता अभी जीवित हैं तो वैसे ही उनकी उम्र मुझे काफी कम नजर आने लग जाती है। काफी छोटे प्रतीत होते हैं वे।

रामायण में एक प्रसंग आता है। जब प्रभु श्रीरामजी की दी हुई निशानी लेकर हनुमानजी माता सीता से मिले। तो माँ ने उन्हें खूब आशीर्वाद दिया। उससे गद्‍गद्‍ होकर हनुमानजी बोले। अब कृत्य-कृत्य भयो मैं माता, आशीष तव अमोघ विख्याता। अर्थात् माता मैं धन्य हो गया यानी अब पाने के लिए कुछ शेष रहा ही नहीं। आपका आशीर्वाद मेरे लिए अमूल्य है। तो जो लोग अपनी माँ का सम्मान करना चाहते हों। उन्हें तो यह पंक्ति घर में लिखवाकर रखना चाहिए।

संत महात्मा भी कहते हैं माँ के आशीर्वाद में वो शक्ति होती है जो ईश्वर को भी उसकी संतान का भाग्य बदलने को मजबूर कर दे। यदि आपके साथ अपनी माँ का आशीर्वाद है तो समझिए सफलता आपके कदम चूमेगी और हर मंजिल आसान है आपके लिए। इसलिए कभी भी ऐसा काम न करें जिससे आपकी माँ का दिल ‍दुखे। पूरा साल ही आपके लिए होगा मदर्स डे की तरह।

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