Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

Mahavir Jayanti 2024 : महावीर स्वामी का जन्म कल्याणक महोत्सव, जानें उनके सिद्धांत

Lord Mahavir : भगवान महावीर की जयंती पर जानिए पंचशील सिद्धांत

हमें फॉलो करें Mahavir Jayanti 2024 : महावीर स्वामी का जन्म कल्याणक महोत्सव, जानें उनके सिद्धांत

WD Feature Desk

, शनिवार, 20 अप्रैल 2024 (14:18 IST)
HIGHLIGHTS
•  भगवान महावीर का जन्म कल्याणक दिवस कब मनाया जाता है। 
• महावीर स्वामी कौन थे। 
• भगवान महावीर के पंचशील सिद्धांत क्या है। 
 
- राजश्री कासलीवाल 

ALSO READ: Mahavir jayanti 2024: भगवान महावीर स्वामी के 10 शुभ संदेश
 
Mahavir Jayanti Information : महावीर कल्याणक जैन धर्म का प्रमुख त्योहर है। जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर के जन्मदिवस को आज महावीर जयंती के नाम से जाना जाता है। पूरे भारत में जैन समाज द्वारा भगवान महावीर के जन्म उत्सव के रूप में 'महावीर जयंती' मनाई जाती है।

वर्धमान महावीर ने दुनिया को अहिंसा का पाठ पढ़ाया। महावीर जयंती के साथ-साथ इस दिन को महावीर जन्मकल्याणक नाम से के भी जाना जाता है। चैत्र माह के 13वें दिन यानी चैत्र शुक्ल त्रयोदशी को जैन दिगंबर और श्वेतांबर एकसाथ मिलकर इस उत्सव को मनाते हैं। महावीर को 'वर्द्धमान', 'वीर', 'अतिवीर' और 'सन्मति' भी कहा जाता है। 
 
ईसा से 599 वर्ष पहले वैशाली गणतंत्र के क्षत्रिय कुंडलपुर में पिता सिद्धार्थ और माता त्रिशला के यहां तीसरी संतान के रूप में चैत्र शुक्ल तेरस/ त्रयोदशी के दिन वर्धमान का जन्म हुआ। उनके माता-पिता जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ (पार्श्वनाथ महावीर से 250 वर्ष पूर्व हुए थे) के अनुयायी थे। यही वर्धमान बाद में महावीर स्वामी बने। बिहार के मुजफ्फरपुर जिले का आज का जो बसाढ़गांव है, वही उस समय वैशाली के नाम से जाना जाता था। महावीर जब शिशु अवस्था में थे, तब इन्द्रों और देवों ने उन्हें सुमेरू पर्वत पर ले जाकर प्रभु का जन्मकल्याणक मनाया। महावीर स्वामी का बचपन राजमहल में बीता। 
 
महावीर स्वामी अहिंसा के मूर्तिमान प्रतीक थे। उनका जीवन त्याग और तपस्या से ओत-प्रोत था। उन्होंने एक लंगोटी तक का परिग्रह नहीं रखा। हिंसा, पशुबलि, जाति-पाति के भेदभाव जिस युग में बढ़ गए, उसी युग में ही भगवान महावीर ने जन्म लिया। 
 
युवावस्था में यशोदा नामक राजकन्या से महावीर का विवाह हुआ तथा प्रियदर्शना नामक उन्हें एक पुत्री भी हुई। जब वे 28 वर्ष के थे, तभी उनके माता-पिता का देहांत हो गया था। बड़े भाई नंदीवर्द्धन के आग्रह पर महावीर 2 वर्षों तक घर में रहे। आखिर 30 वर्ष की उम्र में उन्होंने मार्गशीर्ष कृष्ण दशमी के दिन दीक्षा ग्रहण की। 
 
महावीर ने इस अवधि में तप, संयम और साम्य भाव की साधना की और पंच महाव्रतरूपी धर्म चलाया। उन्हें इस बात का अनुभव हो गया था कि इन्द्रियों, विषय-वासनाओं के सुख दूसरों को दुख पहुंचा करके ही पाए जा सकते हैं। अत: उन्होंने सबसे प्रेम का व्यवहार करते हुए दुनियाभर को सत्य, अहिंसा का पाठ पढ़ाया। पूरी दुनिया को उपदेश दिए। त्याग और संयम, प्रेम और करुणा, शील और सदाचार ही उनके प्रवचनों का सार था। 
 
भगवान महावीर ने अपने प्रवचनों में धर्म, सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह, क्षमा पर सबसे अधिक जोर दिया। भगवान महावीर ने चतुर्विध संघ की स्थापना की। देश के भिन्न-भिन्न भागों में घूमकर भगवान महावीर ने अपना पवित्र संदेश फैलाया। महावीर स्वामी कहते हैं कि धर्म सबसे उत्तम मंगल है। अहिंसा, संयम और तप ही धर्म है। वे कहते हैं- 'जो धर्मात्मा है, जिसके मन में सदा धर्म रहता है, उसे देवता भी नमस्कार करते हैं।' 
 
उन्होंने दुनिया को पंचशील के सिद्धांत बताए। इसके अनुसार ये सिद्धांत सत्य, अपरिग्रह, अस्तेय, अहिंसा और क्षमा हैं। उन्होंने अपने कुछ खास उपदेशों के माध्यम से दुनिया को सही राह दिखाने की कोशिश की। अपने अनेक प्रवचनों से दुनिया का सही मार्गदर्शन किया।
 
जानें भगवान महावीर के पंचशील सिद्धांतों के बारे में-
 
सत्य : सत्य के बारे में भगवान महावीर स्वामी कहते हैं, हे पुरुष! तू सत्य को ही सच्चा तत्व समझ। जो बुद्धिमान सत्य की ही आज्ञा में रहता है, वह मृत्यु को तैरकर पार कर जाता है।
 
अहिंसा : इस लोक में जितने भी त्रस जीव (एक, दो, तीन, चार और पांच इंन्द्रिय वाले जीव) आदि की हिंसा मत कर, उनको उनके पथ पर जाने से न रोको। उनके प्रति अपने मन में दया का भाव रखो। उनकी रक्षा करो। यही अहिंसा का संदेश भगवान महावीर अपने उपदेशों से हमें देते हैं।
 
अपरिग्रह : अपरिग्रह पर भगवान महावीर कहते हैं कि जो आदमी खुद सजीव या निर्जीव चीजों का संग्रह करता है, दूसरों से ऐसा संग्रह कराता है या दूसरों को ऐसा संग्रह करने की सम्मति देता है, उसको दुखों से कभी छुटकारा नहीं मिल सकता। यही संदेश अपरिग्रह के माध्यम से भगवान महावीर दुनिया को देना चाहते हैं।
 
ब्रह्मचर्य : महावीर स्वामी ब्रह्मचर्य के बारे में अपने बहुत ही अमूल्य उपदेश देते हैं कि ब्रह्मचर्य उत्तम तपस्या, नियम, ज्ञान, दर्शन, चारित्र, संयम और विनय की जड़ है। तपस्या में ब्रह्मचर्य श्रेष्ठ तपस्या है। जो पुरुष, स्त्रियों से संबंध नहीं रखते, वे मोक्ष मार्ग की ओर बढ़ते हैं।
 
क्षमा : क्षमा के बारे में भगवान महावीर कहते हैं- 'मैं सब जीवों से क्षमा चाहता हूं। जगत के सभी जीवों के प्रति मेरा मैत्रीभाव है। मेरा किसी से वैर नहीं है। मैं सच्चे हृदय से धर्म में स्थिर हुआ हूं। सब जीवों से मैं सारे अपराधों की क्षमा मांगता हूं। सब जीवों ने मेरे प्रति जो अपराध किए हैं, उन्हें मैं क्षमा करता हूं।'
 
भगवान महावीर कहते हैं- 'मैंने अपने मन में जिन-जिन पाप की वृत्तियों का संकल्प किया हो, वचन से जो-जो पापवृत्तियां प्रकट की हों और शरीर से जो-जो पापवृत्तियां की हों, मेरी वे सभी पापवृत्तियां विफल हों। मेरे वे सारे पाप मिथ्या हों।'
 
उन्होंने अपने जीवनकाल में अहिंसा का भरपूर विकास किया। पूरे विश्व को अध्यात्म का पाठ पढ़ाने वाले भगवान महावीर ने 72 वर्ष की आयु में कार्तिक कृष्ण अमावस्या की रात्रि में पावापुरी नगरी में मोक्ष प्राप्त किया। भगवान महावीर के निर्वाण के समय उपस्थित 18 गणराजाओं ने रत्नों के प्रकाश से उस रात्रि को आलोकित करके भगवान महावीर का निर्वाणोत्सव मनाया। जैन परंपरा के अनुसार महावीर जयंती को ही महावीर जन्म कल्याणक दिवस भी कहा जाता है। 

अस्वीकरण (Disclaimer) : चिकित्सा, स्वास्थ्य संबंधी नुस्खे, योग, धर्म, ज्योतिष, इतिहास, पुराण आदि विषयों पर वेबदुनिया में प्रकाशित/प्रसारित वीडियो, आलेख एवं समाचार सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं, जो विभिन्न सोर्स से लिए जाते हैं। इनसे संबंधित सत्यता की पुष्टि वेबदुनिया नहीं करता है। सेहत या ज्योतिष संबंधी किसी भी प्रयोग से पहले विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें। इस कंटेंट को जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है जिसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।


Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

Mahavir jayanti 2024: भगवान महावीर स्वामी के 10 शुभ संदेश