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एक खत, बापू के नाम

गाँधी जयंती विशेष

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स्मृति आदित्य

ND
प्रिय बापू,
विनम्र चरण स्पर्श
आशा करते हैं आप खुश होंगे। आज आपका जन्मदिन है और सही मायनों में जन्मदिन है। यूँ तो हर साल ही आपका जन्मदिन आता है मगर यह जन्मदिन इस बार कुछ खास लग रहा है। बापू, आपके देश में पहली बार एक ऐतिहासिक फैसला हुआ। और पूरे देश में शांति, अमन, भाईचारा और अहिंसा के कोमल स्वर सुनाई दिए। एक फैसला, जिसके आने से पहले हम सब आशंकित थे कि कहीं फिज़ाओं में जहर तो नहीं घुल जाएगा? कहीं ऐसा तो नहीं होगा कि विश्व को शांति का पाठ पढ़ाने वाला हमारा भारत खुद यह सबक भूल जाएगा। और बापू, पता है ऐसा कुछ नहीं हुआ। यह हार-जीत का मसला नहीं था यह मसला दो मन के बँट जाने और बिखर जाने का था। पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। आज हम गर्व से कह सकते हैं कि हाँ, बापू हम तुम्हारे हैं।

आज कोई नहीं हारा, कोई नहीं जीता आज बस आपके आदर्श जीते। आपके सिद्धांतों की जीत हुई। आपके दर्शन और धैर्य की जीत हुई। इस मुल्क ने जीवन भर गाँधी 'को' माना लेकिन गाँधी 'की' मानने में अक्सर भूल करता रहा। आज पहली बार लगा कि हम गाँधी की भी सुनने लगे हैं चाहे कुछ वर्षों बाद ही सही मगर हम महसूस करने लगे हैं, शांति, अहिंसा और राष्ट्र की संपत्ति को सुरक्षित रखने का मधुर संदेश। हमें समझ में आने लगा है कि किसी भी मुद्दे पर तुरंत प्रतिक्रिया व्यक्त करने से कहीं बेहतर है दूरगामी सोच के साथ देश के विकास और रिश्तों की मजबूती को ध्यान में रखते हुए शब्द, विचार व भावना का प्रकटीकरण किया जाए।

बापू, अब हम परिपक्व हो रहे हैं। अब हमें अपने जीवन की प्राथमिकताएँ तय करना आ गई है। हमें अपने देश की सुरक्षा और व्यवस्था के लिए भी सोचना आ गया है। आज अगर आप होते तो कितना खुश होते हमें देखकर। वहाँ स्वर्ग से तो देखा होगा ना आपने कि राम, अयोध्या, फैसला, हिन्दू, मुस्लिम जैसे शब्द जो कल तक जुबान पर आने में काँप रहे थे आज एक शांतिप्रिय मुस्कान बनकर होंठों पर सजे हैं।

हम सुधर गए हैं, एकदम से यह कहना तो जल्दबाजी होगी लेकिन हम सुधार की राह पर चल पड़े हैं यह कहने का हक तो बनता है। हमने एक महत्वपूर्ण फैसले पर गहन, गंभीर और गरिमामयी होने का सबूत दिया है। हमने विश्व के समक्ष यह सिद्ध करने की कोशिश की है कि अपने देश के मसलों पर हम खुद जागरूक हैं। आपने देखा होगा ना बापू, जनता के मन की ताकत के सामने सियासी मंसूबे कैसे धाराशायी होते हैं। देश की न्यायिक प्रक्रिया पर हमारा भरोसा कितना अटूट है यह भी हमारे ही धैर्य से साबित हुआ है। हम थोड़े से ही सही मगर मानसिक रूप से मजबूत हुए हैं।

एकदम से अफवाहों पर ध्यान नहीं देते, मीडिया के जोर-जोर से चिल्लाने पर हम उत्तेजित नहीं होते बल्कि एक तटस्थता के साथ पर्दे के बाहर का सच खुली आँखों से देखते हैं। नेताओं और धर्मगुरुओं की बातें आँखें बंद करके नहीं सुनते। उनके प्रभाव में आने के बजाय हम खुद भी इतिहास का अध्ययन करने लगे हैं।

बापू, अपने जन्मदिन पर हम देशवासियों को आशीर्वाद दीजिएगा कि समझदारी की यह राह अब कभी कंटकमयी ना हो। मन की उदारताएँ कड़वाहट में तब्दिल ना हो। थोड़ी जगह चली भी जाए तो चलेगा लेकिन दिलों में एक-दूजे के लिए भरपूर जगह बनी रहे। मानवता के इस संदेश के साथ ही मन आज गुनगुना रहा है- सुन ले बापू यह पैगाम, मेरी चिट्ठी तेरे नाम, चिट्ठी में सबसे पहले लिखतहूँ तुझको मेरा सलाम....!

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