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चक्रव्यूह क्या था, इसे कैसे तोड़ा जाता है?

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अनिरुद्ध जोशी

भगवान श्रीकृष्ण की नीति के चलते अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु को चक्रव्यूह को भेदने का आदेश दिया गया। यह जानते हुए भी कि अभिमन्यु चक्रव्यूह भेदना तो जानते हैं, लेकिन उससे बाहर निकलना नहीं जानते। दरअसल, अभिमन्यु जब सुभद्रा के गर्भ में थे तभी चक्रव्यूह को भेदना सीख गए थे लेकिन बाद में उन्होंने चक्रव्यूह से बाहर निकलने की शिक्षा कभी नहीं ली। अभिमन्यु श्रीकृष्ण के भानजे थे। श्रीकृष्ण ने अपने भानजे को दांव पर लगा दिया था।
 
 
अभिमन्यु के चक्रव्यूह में जाने के बाद उन्हें चारों ओर से घेर लिया गया। घेरकर उनकी जयद्रथ सहित 7 योद्धाओं द्वारा निर्मम तरीके से हत्या कर दी गई, जो कि युद्ध के नियमों के विरुद्ध था। कहते हैं कि श्रीकृष्ण यही चाहते थे। जब नियम एक बार एक पक्ष तोड़ देता है, तो दूसरे पक्ष को भी इसे तोड़ने का मौका मिलता है।
 
 
चक्रव्यूह क्या होता है?
युद्ध को लड़ने के लिए पक्ष या विपक्ष अपने हिसाब से व्यूह रचना करता था। व्यूहरचना का अर्थ है कि किस तरह सैनिकों को सामने खड़ा किया जाए। आसमान से देखने पर यह व्यूह रचना दिखाई देती है। जैसे क्रौंच व्यूह है, तो आसमान से देखने पर क्रौंच पक्षी की तरह सैनिक खड़े हुए दिखाई देंगे। इसी तरह चक्रव्यूह को आसमान से देखने पर एक घूमते हुए चक्र के समान सैन्य रचना दिखाई देती है।
 
 
इस चक्रव्यूह को देखने पर इसमें अंदर जाने का रास्ता तो नजर आता है, लेकिन बाहर निकलने का रास्ता नजर नहीं आता। यह तो कोई बहुत ध्यान से देखें तो ही संभव होगा लेकिन इसके लिए आपको आकाश से देखना होगा। यदि देख भी लें तो यह चक्रव्यूह तो घूमता ही रहता है।
 
 
कहते हैं कि चक्रव्यूह की रचना द्रोण ने की थी। इस व्यूह को एक घूमते हुए चक्के की शक्ल में बनाया जाता था, जैसे आपने स्पाइरल को घूमते हुए देखा होगा। कोई भी नया योद्धा इस व्यूह के खुले हुए हिस्से में घुसकर वार करता है या किसी एक सैनिक को मारकर अंदर घुस जाता है। यह समय क्षणभर का होता है, क्योंकि मारे गए सैनिक की जगह तुरंत ही दूसरा सैनिक ले लेता है अर्थात योद्धा के मरने पर चक्रव्यूह में उसके बगल वाला योद्धा उसका स्थान ले लेगा, क्योंकि सैनिकों की पहली कतार घूमती रहती है। जब कोई अभिमन्यु जैसा योद्धा व्यूह की तीसरी कतार में पहुंच जाता है तब उसके बाहर निकलने के रास्ते बंद हो जाते हैं। यदि वह पीछे मुड़कर देखेगा तो पता चलेगा कि पीछे तो सैनिकों की कतारबद्ध फौज खड़ी है। व्यूह के घुस जाने के बाद अब योद्धा चौथे स्तर के बलिष्ठ योद्धाओं के सामने खुद को खड़ा पाता है।
 
 
इस चक्रव्यूह में योद्धा लगातार लड़ते हुए अंदर की ओर बढ़ता जाएगा और थकता भी जाएगा। लेकिन जैसे-जैसे वो अंदर जाता जाएगा, अंदर के जिन योद्धाओं से उसका सामना होगा वो थके हुए नहीं होंगे। ऊपर से वे पहले वाले योद्धाओं से ज्यादा शक्तिशाली व ज्यादा अभ्यस्त भी होंगे। शारीरिक और मानसिक रूप से थके हुए योद्धा के लिए एक बार अंदर फंस जाने पर जीतना या बाहर निकलना कठिन हो जाता है। अभिमन्यु के साथ यही हुआ होगा।
 
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कैसे फंसे अभिमन्यु चक्रव्यूह में?
कोई भी योद्धा व्यूह की दीवार तोड़कर अंदर जाने के लिए सामने वाले योद्धा को मारकर अंदर जाने का प्रयास करेगा, लेकिन वह तभी अंदर जा पाएगा जबकि मारे गए योद्धा की जगह कोई दूसरा योद्धा न आ पाया हो। इसका मतलब यह कि उसे सामने खड़े योद्धा को मारकर तुरंत ही अंदर घुसना होगा, क्योंकि मारे गए योद्धा की जगह तुरंत ही दूसरा योद्धा लड़ने के लिए आ जाता है। इस तरह यह दीवार कभी टूटती नहीं है। दीवार को तोड़ने के लिए ठीक सामने वाले योद्धा को मारकर अंदर के योद्धा को भी मारते हुए अंदर घुसना होता है। लेकिन नया या अनभिज्ञ योद्धा अगल-बगल के योद्धाओं से ही लड़ने लग जाता है।
 
 
अभिमन्यु चक्रव्यूह में घुसना जानता था। उसने सामने वाले योद्धा को मारा और बहुत ही थोड़ी-सी देर के लिए मिली खाली जगह से वह अंदर घुस गया। घुसते ही यह जगह फिर से बंद हो गई, क्योंकि मारे गए योद्धा की जगह किसी अन्य योद्धा ने ले ली। अभिमन्यु दीवार तोड़ते हुए अंदर तो घुस गया लेकिन वह पीछे यह भी देख पाया कि दीवार पुन: बन गई है। अब इससे बाहर निकलना मुश्किल होगा। वह दीवार पहले की अपेक्षा और मजबूत होती है।
 
 
प्रारंभ में यही सोचा गया था कि अभिमन्यु व्यूह को तोड़ेगा और उसके साथ अन्य योद्धा भी उसके पीछे से चक्रव्यूह में अंदर घुस जाएंगे। लेकिन जैसे ही अभिमन्यु घुसा और व्यूह फिर से बदला और पहली कतार पहले से ज्यादा मजबूत हो गई तो पीछे के योद्धा, भीम, सात्यकी, नकुल-सहदेव कोई भी अंदर घुस ही नहीं पाए। जैसा कि महाभारत में द्रोणाचार्य भी कहते हैं कि लगभग एक ही साथ दो योद्धाओं को मार गिराने के लिए बहुत कुशल धनुर्धर चाहिए। युद्ध में शामिल योद्धाओं में अभिमन्यु के स्तर के धनुर्धर दो-चार ही थे यानी थोड़े ही समय में अभिमन्यु चक्रव्यूह के और अंदर घुसता तो चला गया, लेकिन अकेला, नितांत अकेला। उसके पीछे कोई नहीं आया।
 
 
जैसे-जैसे अभिमन्यु चक्रव्यूह के सेंटर में पहुंचते गए, वैसे-वैसे वहां खड़े योद्धाओं का घनत्व और योद्धाओं का कौशल उन्हें बढ़ा हुआ मिला, क्योंकि वे सभी योद्धा युद्ध नहीं कर रहे थे बस खड़े थे जबकि अभिमन्यु युद्ध करता हुआ सेंटर में पहुंचता है। वे जहां युद्ध और व्यूहरचना तोड़ने के कारण मानसिक और शारीरिक रूप से थके हुए थे, वहीं कौरव पक्ष के योद्धा तरोताजा थे। ऐसे में अभिमन्यु के पास चक्रव्यूह से निकलने का ज्ञान होता, तो वे बच जाते या उनके पीछे अन्य योद्धा भी उनका साथ देने के लिए आते तो भी वे बच जाते।
 
 
दरअसल, अर्जुन-पुत्र अभिमन्यु चक्रव्यूह भेदने के लिए उसमें घुस गया। चक्रव्यूह में प्रवेश करने के बाद अभिमन्यु ने कुशलतापूर्वक चक्रव्यूह के 6 चरण भेद लिए। इस दौरान अभिमन्यु द्वारा दुर्योधन के पुत्र लक्ष्मण का वध किया गया। अपने पुत्र को मृत देख दुर्योधन के क्रोध की कोई सीमा न रही। तब कौरवों ने युद्ध के सारे नियम ताक में रख दिए।
 
 
6 चरण पार करने के बाद अभिमन्यु जैसे ही 7वें और आखिरी चरण पर पहुंचे, तो उसे दुर्योधन, जयद्रथ आदि 7 महारथियों ने घेर लिया। अभिमन्यु फिर भी साहसपूर्वक उनसे लड़ते रहे। सातों ने मिलकर अभिमन्यु के रथ के घोड़ों को मार दिया। फिर भी अपनी रक्षा करने के लिए अभिमन्यु ने अपने रथ के पहिए को अपने ऊपर रक्षा कवच बनाते हुए रख लिया और दाएं हाथ से तलवारबाजी करता रहा। कुछ देर बाद अभिमन्यु की तलवार टूट गई और रथ का पहिया भी चकनाचूर हो गया।


अब अभिमन्यु निहत्था था। युद्ध के नियम के तहत निहत्‍थे पर वार नहीं करना था। किंतु तभी जयद्रथ ने पीछे से निहत्थे अभिमन्यु पर जोरदार तलवार का प्रहार किया। इसके बाद एक के बाद एक सातों योद्धाओं ने उस पर वार पर वार कर दिए। अभिमन्यु वहां वीरगति को प्राप्त हो गया। अभिमन्यु की मृत्यु का समाचार जब अर्जुन को मिला तो वे बेहद क्रोधित हो उठे और अपने पुत्र की मृत्यु के लिए शत्रुओं का सर्वनाश करने का फैसला किया। सबसे पहले उन्होंने कल की संध्या का सूर्य ढलने के पूर्व जयद्रथ को मारने की शपथ ली।
 
 
कैसे तोड़ते हैं चक्रव्यूह को?
कुशल योद्धा देखता है कि बाहर की ओर योद्धाओं का घनत्व कम है जबकि अंदर के योद्धाओं का घनत्व ज्यादा। घनत्व को बराबर या कम करने के लिए ये जरूरी होगा कि बाहर की ओर खड़े अधिक से अधिक योद्धाओं को मारा जाए। इससे व्यूह को घुमाते-चलाते रखने के लिए अधिक से अधिक योद्धाओं को अंदर से बाहर धकेलना होगा। इससे अंदर की तरफ योद्धाओं का घनत्व कम हो जाएगा।
 
पहेलीनुमा इस व्यूह रचना में योद्धाओं के स्थान परिवर्तन से ये पूरा घूम जाता है। निश्‍चित ही एक कुशल योद्धा को यह भी मालूम होता है कि घूमते हुए चक्रव्यूह में एक खाली स्थान भी आता है, जहां से निकला जा सकता है। यह भी कि वह अपने बल से हर कतार के एक-एक योद्धाओं को मारते हुए बाहर निकल आए।
 

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