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भारत से मेरा दिल का रिश्ता है-टोमोको किकुची

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इंदौर लिटरेचर फेस्टिवल के पहले दिन टोमोको किकुची के साथ नीलोत्पल मृणाल का सत्र खासा सराहा गया। विश्व शांति और साहित्य पर जापान मूल की लेखिका टोमोको ने कहा कि भारत से मेरा दिल का रिश्ता है। मैं यहां आना चाहती थी लेकिन यहां आने के लिए भाषा सीखना जरूरी है, इसलिए पहले मैंने हिन्दी सीखी और फिर भारत आई।
 
दो भाषाओं के बीच मेरे लेखन और अनुवाद का उद्देश्य यही था कि दोनों देशों की संस्कृति को कैसे जोड़ा जाए। जापानी होने के नाते मेरी जिम्मेदारी थी कि मुझे भारतीय पाठकों को क्या बताना चाहिए, उस पर गंभीरता से सोचूं फिर लिखूं। किताब 'हिरोशिमा का दर्द' को सचित्र लिखने के पीछे भी यही सोच थी कि अगर हम इस हादसे का दोहराव नहीं चाहते हैं तो अधिकांश लोगों तक यह सरल और संप्रेषणीय रूप में पहुंचे।
 
अपनी इस रचना में टोमोको ने बताया कि एक 7 साल की लड़की ने कैसे विभीषिका से बचकर अपनी जान बचाई। इस कॉमिक फॉर्म में आई रचना के चित्र तोशी मरुकी ने बनाए हैं, जिन्होंने खुद इस हादसे को करीब से देखा है। टोमोको ने कहा कि भारत में कॉमिक्स मनोरंजन के लिए होती है जबकि जापान में यह गंभीर विषयों पर तैयार की जाती है।
 
जापान में कॉमिक्स के विषय राजनीति, इतिहास, समाज, व्यवस्था, समस्या और संस्कृति जैसे होते हैं जिन्हें संभ्रांत और संपन्न वर्गों के लोग पढ़ते हैं। अपनी रचनाओं के माध्यम से मैं यह बताना चाहती हूं कि पीढ़ी दर पीढ़ी परमाणु का कितना और कैसा भयानक असर हो रहा है। किस तरह का दर्द वहां झेला जा रहा है।
 
हिरोशिमा की बात या घटना का जिक्र आज का युवा करना नहीं चाहता। ऐसे में मुझे लगा कि कॉमिक्स के रूप में उसे सामने रखा जाना चाहिए। टोमोको ने बताया कि उन्होंने महादेवी वर्मा की विश्व दृष्टि पर पीएचडी की है और महादेवी की रचनाएं उनके दिल के करीब हैं। बहुत ही मीठी आवाज और सधे हुए स्वर में टोमोको की हिन्दी ने सभी को आकर्षित किया।
 
हिरोशिमा त्रासदी पर उनकी कृति नीरव संध्या का शहर और साकुरा का देश उनकी लोकप्रिय रचना है। उनकी अन्य रचनाओं में पर्वत पिता, बारिश का प्रकोप झेलकर और वनस्पति का डॉक्टर शामिल है। नीलोत्पल मृणाल ने इस सत्र को मॉडरेट किया।
 
अंतिम सत्र में नामचीन व्यंग्यकारों ने ठहाके लगाने को मजबूर कर दिया। इस सत्र में ज्ञान चतुर्वेदी आने वाले थे, लेकिन किसी कारणवश वे नहीं आ सके। उनके स्थान पर जाने-माने व्यंग्यकार पिलकेन्द्र अरोरा और जवाहर चौधरी शामिल हुए इस सत्र को निधि हसीजा ने मॉडरेट किया। अंत में मैं भी कवि नामक खुला मंच था जिसमें नवोदित रचनाकारों ने अपनी कविताएं प्रस्तुत कीं।

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