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बरसात की रुमानियत बढ़ाते, फिल्मी गाने...

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प्रीति सोनी

प्रेम अदृश्य है, इसे देखा नहीं जा सकता। इसे केवल महसूस किया जा सकता है।लेकिन इसे महसूस करने के बावजूद जताने का तरीका हमें खुद कभी नहीं आया। लेकिन जिंदगी में कोई बात, कोई वक्त या मौसम ऐसा होता है, जो खुद ब खुद प्रेम के होने का आभास करा देता है। बरसात का मौसम भी इनमें शुमार है, जब ठंडी फुहारें, मन को भिगोकर प्रेम की ठंडक पैदा करती हैं और ये एहसास दिलाती हैं, कि ये मौसम प्रेम और सौंदर्य का है...

शायद इसीलिए प्रेम की अभिव्यक्ति को नए नए स्वरूप में पेश करने वाला सिनेमा जगत भी कहीं इससे अछूता नहीं है। बल्कि फिल्मों के जरिए ही रोमांस को बरसात के मौसम से जोड़कर देखा जाता रहा है। यही कारण है कि फिल्मी दुनिया के प्यार भरे तराने आज भी हमारे जहन में उसी एहसास के साथ जिंदा है। फिर चाहे वह, अमिताभ बच्चन और स्मिता का आज रपट जाए, तो हमें न बुलैयो हो,

या फिर अनिल कपूर का भरी बारिश में मनीषा के साथ रिमझिम-रिमझिम, रूमझुम-रूमझुम...भीगी भीगी रूत में तुम-हम, हम-तुम गाना.. 

बरसात के मौसम में प्यार की रूमानियत से नायिकाएं भी अछूती नहीं रही, जयाप्रदा की फिल्म का यह गाना - बरसात में जब आएगा सावन का महीना, साजन को बना लूंगी अंगूठी का नगीना ..तो कुछ यही दर्शाता है। 
 
वहीं नायकों का आकर्षण भी भीगी रातों से होकर गुजरता है- एक लड़की भीगी भागी-सी, सोती रातों में जागी सी का जिक्र कर नायक अपनी फिक्र जाहिर कर ही देता है। 

यह तो रही नायक, नायिका की बात। लेकिन जब इस बरसते मौसम में दोनों के मिलने का सिलसिला शुरू हुआ, तो दोनों एक दूसरे से यह पूछे बगैर नहीं रह पाते कि - भीगी भीगी रतों में मीठी मीठी बातों में ऐसी बरसातों में कैसा लगता है... 
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नायिका भी बातों को बढ़ाने के लिए उस पर छेड़छाड़ का प्यार भरा इल्जाम लगाकर प्रेम रस से परिपूर्ण करती है-  ऐसा लगता है तुम बनके बादल, मेरे बदन को भिगो के मुझे छेड़ रहे हो ...
 
हमेशा नायक नायिका के बीच प्रेम प्रसंग जारी रहे, यह जरूरी नहीं है। इसीलिए कई बार परिस्थितियां ऐसी भी हो जाती हैं, जब या तो नायक बिल्कुल अकेला रह जाता है या फिर नायिका दूरी के एहसाह को अकेले जीती है। प्रेम के इर्द गिर्द घूमती हर कहानी के लिए सिनेमा ने गाने दिए, जिससे प्रेम को कोई भी एहसास अनकहा या अनसुना न रह जाए।
 
 
इसी कड़ी में अभी जिंदा हूं तो जी लेने दो, भरी बरसात में पी लेने दो, नायक के भावों को अभिव्यक्त करता है, तो नायिका अपने प्रेम विरह को मजबूरी करार देते हुए, बरसात के मौसम को लाखों रूपए की मिल्कीयत बताते हुए कहती है - हाय हाय ये मजबूरी, ये मौसम और ये दूरी....मुझे पल-पल है तड़पाए ....तेरी दो टकयादी नौकरी रे मेरा लाखों का सावन जाए .....

और जब आखिरकार नायक-नायिका मिलकर प्रेमी प्रेमिका बन जाते हैं, तब भी वे डरते-डरते ही सही अपने प्यार के मुश्किल रास्ते पर बरसात में ही निकल पड़ते हैं। फिर भले ही उन्हें मंजिल पता हो या न पता हो - प्यार हुआ इकरार हुआ है, प्यार से फिर क्यूं डरता है दिल.... कहता है दिल, रस्ता मुश्किल, मालूम नहीं है कहां मंजिल .....

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