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हास्य-व्यंग्य कथा : मेरा पहला प्यार

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राकेशधर द्विवेदी

एक व्यंग्य, हास्य कथा
 

 
मेरा नाम विकास है। मैं खंडवा में रहता हूं। मैंने कक्षा 12वीं की परीक्षा पास कर बीए में विश्वविद्यालय में दाखिला लिया था। अभी तक कक्षा में सहपाठी केवल लड़के ही थे, लेकिन जबसे विश्वविद्यालय ‍में दाखिला लिया, लड़कियों का सत्संग भी प्राप्त होने लगा था। जाहिर है कि मैं लड़कियों के एजुकेशन के सारे फायदे उठा रहा था। बातें अब यार-दोस्तों के बीच प्यार-वार की होने लगी थी। जिन मित्रों से बात से बात करता, सबकी कोई न कोई गर्लफ्रेंड थी। सबके उन गर्लफ्रेंड के साथ अपने-अपने संस्मरण भी थे जिनमें से कुछ वेज थे, कुछ नॉनवेज थे अर्थात कुछ ने केवल शाकाहार ही किया था और कुछ ने मांसाहार का भी सुख प्राप्त किया था। 
 
इधर जब से विश्वविद्यालय में प्रवेश किया, पिताजी ने कहा कि तुम अब डिजिटल इंडिया के जमाने के हो गए हो और तुम्हारे पास एक एन्ड्रॉयड फोन होना चाहिए और उन्होंने एक एन्ड्रॉयड फोन उपहारस्वरूप दे दिया। मैं इस एन्ड्रॉयड फोन से फेसबुक, वॉट्सएप के माध्यम से तमाम मित्रों से जुड़ गया और मैं अपनी कविता भी फेसबुक पर पोस्ट करने लगा जिसका लेखन मेरा बहुत पुराना शौक था।
 
एक दिन मैंने फेसबुक पर अपनी एक कविता पोस्ट की- 'तुम्हारे प्यार की बातें अब भी रुलाती हैं। तुम्हारे साथ की यादें सपने में सताती हैं।' ऊपर पोस्ट अभी लगी ही थी कि कमेंट बॉक्स में एक बहुत ही सुंदर कमेंट आ गया। विकासजी, बहुत ही सुंदर कविता आपने लिखी है। मन करता है कि जिन हाथों के द्वारा इस कविता को लिखा गया है, मैं उन हाथों को चूम लूं। 
 
मेरा ध्यान कमेंट पर गया, फिर कविता करने वाली शख्सियत पर गया। अरे ये तो कोई नवयौवना है। मेरा आतुर मन फेसबुक पर उसका सारा डिटेल निकालने लगा। यह तो 16 वर्ष की सुंदरी है। मुंबई निवासिनी है। एक्टिंग इसका शौक है। हेमा इसका नाम है और देखने में हेमामालिनी से कम नहीं। 
 
मैंने तुरंत ही जवाब दिया- तहेदिल से शुक्रिया आपका। और फेसबुक पर मित्रता का निवेदन भी भेज दिया और ये देखिए, उधर से मेरा निवेदन स्वीकार कर लिया गया। मैं और हेमा अब फेसबुक के फ्रेंड हो गए। फेसबुक ही क्यों, मैं वॉट्सएप पर भी उनके साथ जुड़ गया और रात में बड़ी देर तक उनके साथ चैटिंग शुरू कर दी। हेमा 16 वर्ष की एक कुशल प्रेयसी की तरह मेरे साथ प्रेम के प्रसंग को बढ़ाने लगी और जब देखो तब बड़ी देर रात हंसती, शेरो-शायरी करती है। 
 
मैंने अपनी खुशनसीबी का जिक्र नजदीकी मित्रों से किया। उन्होंने कहा- गुरु, लड़की हंसी, समझो फंसी। और ये तो तुमसे वॉट्सएप मैसेज पर कामसूत्र जैसे ‍जटिल विषय पर भी बात करती है। मतलब लाइन क्लीयर है। तुम्हारे तो बल्ले-बल्ले हो गए यार। 
 
मन में लड्डू फूटने लगे। रात में देर तक वॉट्सएप पर चैटिंग करता रहता मैं हेमा के साथ। घर में ये चर्चा होने लगी क‍ि बीए में जाते ही विकास के ‍व्यक्तित्व में बड़ी गंभीरता आ गई है। काफी देर तक पढ़ता हैं। उम्र अपने साथ सब सिखा देती है। 
 
लेकिन मैं तो अपने लक्ष्य पर अर्जुन की तरह चिड़िया की आंख को देख रहा था और एक दिन मेरे कहने पर कि अब तुमसे मिले बिना दिल नहीं मानता, हेमा ने कहा तो आ जाओ ना फ्लैट नं. 902 में हिमालय अपार्टमेंट, अंधेरी वेस्ट, मुंबई में। और आजकल तो मैं घर में अकेली हूं। 
 

लो ये तो खुला आमंत्रण है मेरे लिए। मैंने अपने बालों को एक बड़े सैलून में सेट करवाया। उसमें कलर करवाया और बिलकुल आधुनिक ब्रांड के फैशनेबल पैंट-शर्ट पहनकर चल दिया मुंबई की और अपनी हेमा मालिनी से मिलने। पिता ने ‍पूछा कि कहा जा रहे हो, तो जवाब दिया कि प्रोजेक्ट के सिलसिले में मुंबई जा रहा हूं। 

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अंधेरी पहुंचकर मैं हिमालय अपार्टमेंट के सामने पान की दुकान पर खड़ा था। पान वाले से मैंने पान मांगकर खाया, फिर अपनत्व जोड़कर पूछा कि सामने हिमालय अपार्टमेंट में हेमा नाम की कोई लड़की रहती है? पान वाले ने जवाब दिया- अरे 902 में तो परम आदरणीया माताजी हैं, मां जी रहती हैं। मैंने पूछा कि क्या उम्र होगी? करीब 85 वर्ष की। उनके रोज तो कृष्ण-राधा पर प्रेम-व्याख्यान होते रहते हैं। सामने राधाकृष्ण आश्रम में अपने तमाम नाती-पोतों के साथ वे प्रेम पर उपदेश देंगी शाम को।
 
मेरे नीचे की जमीन खिसक गई थी। सपने मुंगेरीलाल के हसीन सपनों की तरह जमीन पर धराशायी हो गए थे। पिछले 6 महीनों से दिल में छिपा रखी हसरतें मरीचिका सिद्ध हो चुकी थीं। फिर भी अपनी अपनी आराध्य देवी मां को देखने की इच्छा शेष थी।
 
जब शाम को मैं प्रवचन को सुनने आदरणीय माताजी के सामने था। उनके दांत उड़ चुके थे। मां ने कहा कि प्रेम की कोई उम्र नहीं होती। प्रेम उम्र का बंधन नहीं देखता। यह राधा-कृष्ण के प्रेम की तरह अमर होता है। प्रेम विश्वविद्यालय में ‍दाखिला बड़ी मुश्किल से मिलता है और इसमें दाखिले की कोई उम्र नहीं होती है। आप भी विद्यार्थी हो सकते हैं, मैं भी हो सकती हूं। और अगर विश्वविद्यालय में ‍दाखिला मिला तो समझिए कि आप ईश्वर के नजदीक हो गए। ढाई अक्षर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय।
 
हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। तमाम लोग पैर छूकर सब 'हे मां' से आशीर्वाद मांगने लगे। मैं कतारबद्ध होकर आशीर्वाद मांगने पहुंचा और अपनी बारी आने पर उसे धीरे से कहा- मां जी प्रणाम। बताओ बेटा क्या आशीर्वाद चाहते हो? जी मेरा नाम विकास है। मैं पिछले छह महीने से आपके प्रेम विश्वविद्यालय में दाखिल रहा हूं। अब अपने कोर्स को पूर्ण करने में असमर्थ पा रहा हूं। कृपया मेरा दाखिला निरस्त कर दें।
 
हे मां ने मेरे सिर पर हाथ रखा और मुस्कराकर कहा- 'तथास्तु'।
 
मैं धीरे से बुदबुदाया- 'बाप राम न खाएन पाएन, खीस नीपोरे गए पराएन।'

 

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