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नई जमीं की तलाश

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रेखा भाटिया

जीवन के रंगमंच से....


भोर होते ही आंखों में बसा स्वप्न हर रोज की तरह विदा हो गया, सोचतीं हूं कितना अजीब है यह स्वप्न रात भर आंखों में बसा रहता है, कभी हंसाता है, कभी रुलाता है, कभी अपनों से जोड़ देता है,कभी परायों से,कभी चिंता में डाल देता है ,कभी चिंतन में,कभी बैचेन कर जाता है,कभी मुस्कराहट बिखेर जाता है।

 
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कभी मैं उसके संग रहता चाहती हूं और सोचती हूं नींद से कोई न जगाए,इसी स्वप्न के साथ जीने दो,कभी इतना डरा जाता है कि घबराकर मेरी आंखें खुल जाती हैं, और मुसीबत तब आती है जब यह निगोड़ा आधी रात में डराता है, फिर लाख कोशिशें करो कमबख्त नींद भी इससे डर कर भाग जाती है।

हर नारी की तरह मेरा भी स्वप्नों से गहरा नाता है,वह मीठे-मीठे प्यारे प्यारे मधुर स्वप्न जो अभी कच्ची अवस्था में जागते आंखों में बसते थे,अपने आने वाले सुनहरे,संतरंगी भावी जीवन के लिए। उम्र बढ़ने के साथ हकीकत के गहरे रंग के साये में स्वप्नों के कोमल रंग फीके पड़ जाते हैं जागते हुए, हमारा संघर्ष क्या कभी ख़त्म भी होगा?

सुबह होते ही आज स्वप्न ने मुस्कराकर विदा ली, सुबह की शुरुआत तो सुहानी थी। दैनिक कार्यों से निपटकर,बिटिया को स्कूल के लिए रवाना कर रोजमर्रा की तरह अपना कंप्यूटर खोल कर उसके सामने बैठ गई। आधुनिक जमाने में यह मशीनें वरदान की तरह है,खाली घर में भी आप अकेले नहीं है एक बटन दबाया और तुरंत आप घर बैठे-बैठे दुनिया से जुड़ जाते हैं।

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मैं भी सुबह अति उत्साहित अपनी जादूगर इस संगिनी (कंप्यूटर) के साथ बैठ जाती हूं,कभी किसी लेखक का लेखन पढ़ने,सारी दुनिया की खबरें,किसी नई खोज के बारे में,बिटिया के स्कूल का हालचाल,फेसबुक पर हमसे दूर रहकर भी भारत में बैठे अपने,उनकी तस्वीरें,रोज बदलते चहरे,नए जुड़ते रिश्ते, बड़े होते बच्चे,बाट जोहते जवाब की प्रतीक्षा में इमेल्स के ढेरों संदेश,सुबह यह सभी स्फूर्ति प्रदान करते हैं,कई प्रेरणादायक होते हैं, कई नए विचारों को जन्म देते है जहां से लिखने की प्रेरणा मिलती है और मैं सुबह सारे काम भूलकर लिखने बैठ जाती हूं।


भारत देश और नारियों के लिए लिखना मेरे पसंदीदा विषय हैं, उनके बारे में कुछ बुरा पढ़कर या सुनकर ह्रदय बड़ा ही विचलित हो जाता है, गंभीर विचारों में डूब जाता है। मैं मन से भारतीय हूं,भारतीय समाज का हिस्सा हूं, जिसका मुझे गर्व है।

अपनी पुत्रियों को भारतीय मूल्यों से,संस्कारों से अवगत कराना,उनका लालन-पालन, उनकी सोच,उनकी समझ, उनके विचार की उत्कृष्टता के लिए कड़ी मेहनत करते हैं। जिससे वह अपनी भारतीय जड़ों से जुड़ी रहे। पर सच कहूं तो मन घबराता भी है,क्या सचमुच जब हमारी लाड़लियां बड़ी हो जाएंगी,यह समाज उनके साथ न्याय कर पाएगा?

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ईमेल खोलते ही पहला ईमेल एक परिचिता का था। उन्होंने एक कविता लिखी थी और मेरी राय मांग रही थी। कविता छपवाने को वे बहुत अधीर थीं पर नाम गुप्त रखने की शर्त पर। उनकी कविता में कई त्रुटियां थीं पर हुआ करे यह उनका पहला प्रयास है,कविता मन के भाव हैं, शब्द इधर-उधर कर उसे ठीक किया जा सकता है,वह एक अलग मसला है परंतु कविता क्या उन्होंने अपने दिल का दर्द,मन में दबाया हुआ बरसों का राज,टीस, पीड़ा,सभी उस कविता में उतार कर रख दिया।

मैं थोड़ा चौंक गई,बड़े असमंजस में पड़ गई,समाज में इनका ऊंचा ओहदा है,इनका परिवार सभी में अव्वल है,वे स्वयं पढ़ी-लिखी आत्मनिर्भर हैं,इन्हें भी दुःख हो सकता है,यह मेरी समझ से बाहर था।

उनकी कविता के बोल-

'जब सीने में दर्द का समंदर हो ,तो कलम से बढ़कर कोई सहारा नहीं,
जब कलेजा ज्वालामुखी सा फूट रहा हो, तो कलम से बढ़कर कोई सहारा नहीं,
न कोई सगा, न कोई पराया, परदेस में अपनों से परे,
मां की लाड़ली राजदुलारी,बन गई मुफ्त की नौकरानी,
कौन कहता है ससुराल स्वर्ग है, यहां तो खुदगर्जी लोगों का संगठन है,
खुद को मिटा कर दिन रात सेवा की जिनकी मैंने, उनके ही मन में छल है,
क्या यह जिंदगी का अस्तित्व है,
क्या इस दिन के लिए हम बेटियों को अपने से अलग दुर भेजते हैं,पढ़ा लिखा कर काबिल बनाते हैं,
मुझे नई धरती का इंतजार है,
जहां हमारी लाड़ली हमेशा सर आंखों पर बैठे,
कोइ उसकी खुशियों में आंच न लगाए,
मुझे उसके लिए ऐसी सुबह का इंतजार है।

वे अपने लिए नहीं अपनी बेटी के लिए एक नई धरती को तलाश रही थीं,जहां उनकी बेटी छली नहीं जाए,अपितु आदर -सम्मान के साथ खुशियों से भरा जीवन बिताए। हर मां का यही सपना होता है,हर पिता का यही सपना होता है। हर मां यही चाहती है जो पीड़ा वह स्वयं झेल रहीं हैं,जिस आग में खुद जल रही है उसका अंशमात्र भी बिटिया को नहीं झेलना पड़े, बिटिया को इस आग में नहीं जलना पड़े।

अब तिनका-तिनका जोड़ याद करने लगी मैं वो सारे वाकये (घटनाएं) जिन्हें जब से समझ आई है,जितना याद पड़ता है,मुझे महसूस हुआ बढ़ते-बढ़ते इन तिनकों का बोझ बहुत भारी हो गया है।

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एक घटना में मेरी सहेली की बहन को ससुरालवालों ने जला दिया, तब मैं बहुत छोटी थी। मोहल्ले में रहने वाली एक दीदी ने खुद को फांसी लगा ली ससुरालवालों से तंग आकर,मायके में वह रह रही थीं,ससुराल वालों ने वहां भी उन्हें चैन से रहने नहीं दिया। शादी से पहले तक चंद वर्षों में पांच और घटनाएं अपने आसपास ही देखी।

तीन महिलाएं मानसिक रोग का शिकार हो गई। शादी के बाद विदेश में रहने का मौका मिला, उस देश में अनेक भारतीय परिवार रहवासी थे,एक भारतीय फिल्म अभिनेत्री भी नजदीक ही रहती थीं, उनका परिवार,अन्य कई ऐसे परिवार,वही कहानी,इन सभी कहानियों में पीड़ा नारी के हिस्से में ही थी,नारी पीड़ा को भोगते हुए जीने को मजबूर है।


देश लौटने पर समाचार मिला मेरी प्रिय सखी, बचपन की मेरी साथी ने आत्महत्या कर ली,उनके बुजुर्ग पिता नीचे गली में से गुजरते हुए दिखे,मैं भागकर नीचे गई, उन्हें रोका, अपने बारे में याद दिलाया और अपनी सहेली के हाल-चाल पूछने लगी,तब कंप्यूटर ,फेसबुक ,इंटरनेट उपलब्ध नहीं होता था।


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वे बेचारे बुजुर्ग चश्मे के पीछे बूढी आंखों से झांकते हुए दर्द भरी आवाज में बोले,'बेटा,तुम नहीं जानती भारती अब इस दुनिया में नहीं है? वो आत्महत्या नहीं ,हत्या थी उसे मजबूर किया गया था मरने के लिए,उस पर बहुत ही जुल्म होते थे, उसके गम में तो उसके पति ने भी आत्महत्या कर ली...' एक और बलि!!

जीवन यात्रा और देश-विदेश की यात्रा में और कई घटनाएं सुनते रहे, ताजी एक घटना में भारत में पति ने पत्नी को गोली मार दी,यहां अमेरिका में एक दंपति हमारे साथ ग्रीन कार्ड की प्रोसेसिंग में बैठे थे,बड़े ही सज्जन। चार वर्ष बाद न्यूज़ पेपर में समाचार पढ़ा पति ने पत्नी को मार दिया।

फिर एक और ऐसी घटना का समाचार में पढ़ा। तीसरी घटना में पति की बेवफाई से पत्नी ने आत्महत्या की कोशिश की पर बचा ली गई। एक बार हम एक समूह में बैठे इसी विषय पर बात कर रहे थे, एक महिला बोली ,'मेरे ससुराल वाले मेरे साथ अच्छा सलूक नहीं करते हैं',वह ससुराल वालों के बारे में बहुत बुरा-भला कह रही थी,सभी उसका समर्थन कर रहे थे,ससुरालवालों के बुरे बर्ताव को लेकर उसे उसके माता-पिता और उसके भाई भी उसकी बात सुन उसके ससुरालवालों को बुरा भला कहते थे।

पास ही बैठी उसकी भाभी बीच में बोल पड़ी,'यह कोई बड़ी बात नहीं है ,ऐसा तो होता रहता है। अभी तुम्हें तुम्हारे भाई की बातें बताऊं तो तुम कल्पना भी नहीं कर सकती ,तुम्हारा भाई ऐसा हो सकता है,अब क्या बताऊं ?अपनी बहन का दर्द समझ में आता है,पर दूसरे की बहन को दर्द देने में मजा आता है।'


पिछले दिनों एक मनोचिकित्सक एक सम्मलेन में मिले,उम्र में कुछ बड़े हैं,उन्होंने बताया यहां अमेरिका में मैंने अपने जीवनकाल में ऐसे कई केस हाथ में लिए हैं।

कई परिवार अमेरिका में पढ़े-लिखे समाज का हिस्सा हैं फिर भी उनका बर्ताव ठेठ देसियों से भी बुरा है, दोगले हैं सब के सब। नकली चेहरा लगा कर घुमते हैं। औरत की इज्जत करना आती ही नहीं है। हम त्योहारों पर खूब नाच लेगें, शादियों पर खुशियां मनाएंगे,मंदिरों में मूर्तियों के लिए दान करेंगे परन्तु इन दुखी बच्चियों के लिए हमारा समाज कभी मिलकर पैसा इकठ्ठा कर उनकी मदद के लिए आगे नहीं आता है।

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इस देश में भी ऐसा होता है-,मैंने आश्चर्य में भरकर पूछा?

हां,बहुत होता है पर लोग रिपोर्ट नहीं करते है,ज्यादातर केस बिना रिपोर्ट के ही रह जाते है, कई बच्चियां निराश होकर वापस भारत लौट जाती हैं ,यहां का समाज उनके लिए कुछ भी नहीं करता?

एक और दहला देने घटना में महिला ने अपना जीवन बचाने और सम्मान के साथ जीने के लिए तीन धर्म एक के बाद एक अपनाए थे,क्योंकि वह महिला जीवन से भागने के बजाए जीवन जीना चाहती थी।


सभ्य,सुसंस्कृत,पारम्परिक,धर्मालु समाज में क्यों नहीं नारी को उसका उचित स्थान,आदर -सम्मान,जीने का पूर्ण अधिकार अब तक मिला है। नारी शक्ति है, जननी है,बेटी है, मां है, अन्नपूर्णा है,जीवन-संगिनी है,फिर क्यों अन्याय,अनुचित व्यवहार,शोषण,अनादर की शिकार है?

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युग बीत गए, काल बीत गए,सदियां बीत गई,सीता के वनवास से लेकर निर्भया की मौत तक,नारी और सिर्फ नारी ही शोषण का शिकार बनी है,कभी परंपराओं के नाम पर,कभी धर्म के नाम पर,कभी परिवार की भलाई के नाम पर,कभी समाज के हितों की रक्षा के बहाने। कई नारियां पुराने समय में जंग पर जाया करती थीं। बहादुरी की मिसाल कायम करती थी।

झांसी की रानी ने अंग्रेजों से लड़ अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए। कस्तूरबा गांधी, सरोजिनी नायडू,इंदिरा गांधी,कल्पना चावला, सुनीता विलियम्स,निक्की हायेली,सायना मिर्जा,प‍ीटी उषा,मेरिकॉम,लता मंगेशकर,ऐर्श्वर्या राय अनगिनत गितनी है इन सभी महान नारियों की जिन्होंने अपने बल पर हर क्षेत्र में अपना लोहा मनवा लिया। फिर भी समाज में आज भी नारी शक्ति पर शक किया जाता है? नारी की ही स्थिति इतनी दयनीय क्यों है?

समाज को शराबी-शबाबी पति स्वीकार्य है पर कोई नारी अन्याय के खिलाफ खड़ी हो जाए तो वह बदचलन मान ली जाएगी, घर से निकल दी जाएगी,उसे धमकाया जाता है,कभी बच्चों के नाम पर, कभी उसके माता-पिता की खातिर,कभी उसके स्वयं के जीवन की खातिर। भावनाओं के बल पर नारी का दमन समाज की पुरानी आदत है।

भावुक,कोमल नारी ,जननी,मां छली और सिर्फ छली जाती है अपनों के द्वारा, समाज के द्वारा। नारी के प्यार और समर्पण के गुण ही उसके अस्तित्व के सबसे बड़े शत्रु बन जाते हैं। ममतामयी मां दुर्गा महिषमर्दिनी रूपी नारी,जो अपना सारा जीवन इस समाज और अपनों का जीवन संवारने के लिए में समर्पित कर देती है,जब यह समाज और परिवार की महिषासुर का रूप धर लेते हैं तब भला नारी किस पर विश्वास जताए?

नारी शक्ति,नारी शिक्षा, नारी सम्मान, नारी अधिकार की बड़ी-बड़ी बातें छोड़ कब और आखिर कब यह भ्रष्ट पाखंडी,दोगला समाज नारी को सही मायनों में 'एक नई जमीन' पर सुकून,आनंद और पूरे सम्मान के साथ जीने का अधिकार देगा?

और जब यह अधिकार मिलेगा तब ही जाकर खत्म होगी हर नारी की,हर मां की,हर जननी की, हर अन्नपूर्णा की एक नई जमीन की तलाश?

आज नारी की सोच जरूर बदली है,तभी तो आज की नारी सफलता के स्वर्णिम दौर से गुजर रही है। लेकिन अकेले सिर्फ महिलाओं की सोच बदलने से परिस्थितियां नहीं बदलने वाली,समाज को भी जरूरत है सोच बदलने की। नारी की सम्पूर्ण शक्ति तब सिर्फ अपनी लड़ाई लड़ने में व्यर्थ नहीं जाएगी और वह शक्ति समाज,देश की तरक्की और उन्नति में ही उपयोग में आएगी,तभी एक नई ऊर्वर-उपजाऊ जमीन का निर्माण होगा।

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