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गुलजार' होने के नाजुक मायने

दादा साहेब फालके अवॉर्ड मिलने पर...

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स्मृति आदित्य

चांद,चिड़‍िया, रंग, बादल, धुंआ, तितली, फूल, खुशबू, गुलमोहर और जुलाहा....बताने की जरूरत नहीं कि मैं अपने प्रिय कवि गुलजार की बात कर रही हूं। मैं मुझसे ही पूछती हूं कि कोमल लफ्जों के जादूगर गुलजार को दादा साहब फालके अवॉर्ड मिलना कैसा लगा? उन्हीं के शब्दों में कहूं तो लगा राजनीति की झंझावाती हवाओं के बीच जैसे रातरानी की महक में रची-बसी सुहानी बयार ने हौले से छू लिया हो।

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गुलजार जब लिखते हैं तो लिखते कहां है वह तो प्रकृति से शब्द फूल उठाकर कागज पर आहिस्ता से रख दे‍ते हैं। चुंकि वह 'फूल' गुलजार रखते हैं इसलिए उनमें खुशबू खुद चलकर आती है। गुलजार जिन बिंबों को लेखनी से हमारे लिए रचते हैं वे एक मधुर मीठी कल्पना के लिए हमें भी बाध्य कर देते हैं। जिंदगी की कठोर पथरीली राहों में गुलजार के शब्दों का हमारे साथ होना वैसा ही है जैसे तपती-चिलचिलाती गर्मी में केसरिया गुलमोहर की सघन छांव। जैसे मोटर-गाड़ी से दौड़ती सड़कों पर अचानक कोई हरा-भरा मोर दिख जाए। जैसे सुलगते हुए दिल पर सुकोमल रूई का गुलाबजल में भीगा फाहा। जैसे खुरदुरे कर्कश शोर मचाते संगीत के बीच अचानक सबकुछ थम जाए और दूर कहीं से सुरीली बांसुरी बज उठे । गुलजार के लिए लिखना इसलिए भी कठिन है कि जिसने इतनी अनूठी खिलती-मुस्कराती कल्पनाएं, शब्द उपमाएं हमें दी हैं उन्हें किन शब्दों में कैसे नवाजा जाए? उनके लिए कुछ ऐसा लिखने का मन होता है कि उनका विशिष्ट सम्मान और बढ़ जाए और उन तक हमारी अनुभूतियां भी पहुंच जाए।

जिंदगी में बहुत कम लोग ऐसे होते हैं जिनके लिए खूब टूट कर कुछ करने का मन हो.. शेष तो हमें सबके लिए करना होता है। कुछ ही लोग ऐसे होते हैं जिन्हें हम दुनिया में सबसे अलग कुछ देना चाहते हैं। यकीनन, लेखन के लिहाज से कहुं तो गुलजार एक ऐसी ही शख्सियत है। उनके लिए लिखने का मन बनाया तो मानस को कितनी तरह से एकाग्र किया और जब लिखने बैठी तो लेखनी बहती चली गई।

उनका कोई गीत ऐसा नहीं है जिसे आपने न सुना हो और जिस पर समीक्षकों ने कुछ कहा या लिखा न हो। गुलजार के गीत, कविताएं, नज्म, त्रिवेणियां सब अपने आप में अनोखी हैं। दिलकश, अनमोल और नायाब हैं। मेरे अधिकांश आलेखों में गुलजार की कविताओं का‍ जिक्र आता है लेकिन जब गुलजार पर लिखना हो तो कोई एक गीत, एक कविता या एक त्रिवेणी से काम नहीं चल सकता। इसलिए इस मुबारक मौके पर गुलजार साहब के तमाम खूबसूरत लफ्जों की एवज यह आलेख, जो लफ्ज वे अब तक दे चुके हैं और जो उन्हें अभी और-और देना है...

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