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बारिश की बूंदों में भीगी स्कूल की यादें

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प्रीति सोनी

बारिश की हल्की फुहारों से मौसम का आगाज़। बारिश का मौसम कभी रोमांस, प्रेमी युगल की दूरियों के एहसास से जुड़ा होता है, तो कभी बच्चों, युवाओं की मस्ती और हरे-भरे पिकनिक स्पॉट की याद दिलाता है। लेकिन बारिश के मौसम की शुरूआत से जुड़ी कुछ ऐसी यादें भी है, जो हर व्यक्ति को अपने में डूबो कर ही छोड़ती हैं। ऐसी यादें जिनसे आज कोई भी इंसान अछूता नहीं होगा ... जी हां, आप समझ ही गए होंगे, कि हम किन यादों की बात कर रहें हैं...



 


वही यादें, जब आप इन दिनों बचपन में हर साल नई किताब-कॉपियों और नई यूनिफार्म को खरीदने के लिए रोमांचित हुआ करते थे। वही यादें जब किताब कॉपियों की दुकानों पर उपलब्ध पानी की बॉटल, कंपॉक्स, लंचबॉक्स और नए बस्ते भी आपका मन लुभाया करते थे..। और वही यादें, जब आप बड़ी लगन के साथ किताबों पर कवर चढ़ाकर, नाम लिखी हुई पर्चियां चिपकाया करते थे। 

उन दिनों दो महीने की गर्मियों की छुटटी के बाद स्कूल के शुरूआती दिनों का रोमांच अपने चरम पर होता था। नया साल, नए विषयों को पढ़ने के लिए मन उत्सुक होता था। फिर भले ही बाद में कुछ विषय हमें बोरिंग या कठिन लगने लगते थे, लेकिन शुरूआत हम पूरी ईमानदारी और मेहनत के साथ करते थे। कोरी कॉपियों को भरने का जो उत्साह मन में हुआ करता था, वह अब देखने को नहीं मिलता। नए बस्ते और किताबों के साथ नई यूनिफार्म में जब एक हाथ में पानी की बॉटल ओर छाता लेकर स्कूल के लिए निकलते थे, तो पल-पलट कर मुस्कुराते हुए विदा करती मां को देखना हमें अपने आप में किसी राजकुमार या राजकुमारी से कम महसूस नहीं होता था। और जब स्कूल से लौटकर हम घर जाते तो लगता था कि कोई जंग जीतकर आए हों। इन दिनों में तो लंचबॉक्स में मां के हाथ के मीठे या नमकीन पराठों का मजा ही दुगुना होता था। सभी साथि‍यों के साथ मिल बांटकर खाना, स्कूल में ही तो सीखा था हमने। और किसी के साथ कोई भेद न करना भी स्कूल की छत के नीचे ही सीखा, जब खुद के घर से ज्यादा, साथी के घर का अचार पसंद आता था। यही परंपरा आज भी हमारे अंदर कायम है।

अनुशासन के पाठ का पहला अध्याय, बारिश का शुरूआती मौसम ही तो लेकर आया था हमारे जीवन में, जिसे पढ़ते-पढ़ते हम आज यहां तक पहुंच गए। गर्मियों में भले ही खेलकूद और मस्ती में अनुशासन के कितने नियम हमने तोड़े होंगे, लेकिन इन्हीं दिनों में सुबह जल्दी उठकर, व्यवस्थि‍त तैयार होकर स्कूल जाना और पहुंचकर प्रार्थना, व्यायाम कर क्लास  में बैठकर पढ़ाई करना। ये सभी नियम कब हमारे जीवन का हिस्सा बन गए थे, ये हम भी नहीं जान पाए। लेकिन स्कूल खत्म होते ही यही जीवन हमने बेहद याद किया।

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स्कूल खत्म होते ही हमारी दिशाएं जरूर बदल गईं, लेकिन स्कूल के साथियों से व्यवहार और अपनापन आज तक नहीं बदला। वक्त बदला, लेकिन स्कूल के रिश्ते नहीं बदले। शायद यही कारण है, कि हम न चाह कर भी उन लोगों की छवि नकारात्मक बना लेते हैं जिन्होंने हमें भला बुरा कह हो या तकलीफ पहुंचाई हो। लेकिन हर रोज स्कूल में डांटने वाले टीचर भी हमारी प्यार भरी यादों में शामिल हैं। उस वक्त के बारे में सोचकर आज हमारे चेहरे पर मुस्कान आए बगैर नहीं रहती, जिससे कभी हम डरते थे या बुरा मानते थे।
 
बारिश का मौसम हर साल आता है। लेकिन हर बार एक सी बारिश लाने वाला ये मौसम उन दिनों की यादों को न तो धुंधला कर पाया, ना ही धो पाया। बल्कि ये यादें, मिट्टी की सौंधी खुशबू की तरह आज भी हमें लुभाती हैं। 

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