Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

वैज्ञानिकों ने बनाया खुद खत्म होने वाला प्लास्टिक

हमें फॉलो करें plastic

DW

, शनिवार, 4 मई 2024 (08:07 IST)
विवेक कुमार
अमेरिका के वैज्ञानिकों ने एक नई तरह का प्लास्टिक विकसित किया है जो खुद ही खत्म हो जाता है। उन्होंने पॉलीयूरीथेन प्लास्टिक में एक बैक्टीरिया को मिलाया है। यह बैक्टीरिया प्लास्टिक खा जाता है और इस तरह प्लास्टिक खुद ही खत्म हो जाता है।
 
प्रतिष्ठित विज्ञान पत्रिका नेचर कम्यूनिकेशंस में छपे एक शोध में इस प्लास्टिक के बारे में बताया गया है। शोधकर्ताओं के मुताबिक इस प्लास्टिक में मिलाया गया बैक्टीरिया तब तक निष्क्रिय रहता है जब तक कि प्लास्टिक इस्तेमाल में रहता है। लेकिन जब वह कूड़ा-कर्कट में मौजूद तत्वों के संपर्क में आता है तो सक्रिय हो जाता है और प्लास्टिक को खाने लगता है।
 
प्रदूषण घटाने में मदद
सैन डिएगो स्थित कैलिफॉर्निया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक हान सोल किम कहते हैं कि उन्हें उम्मीद है कि यह खोज "प्रकृति में प्लास्टिक-प्रदूषण को कम करने में” मददगार साबित होगी। इसका एक लाभ यह भी हो सकता है कि बैक्टीरिया प्लास्टिक को ज्यादा मजबूत बनाए।
 
शोध में शामिल एक अन्य वैज्ञानिक जोन पोकोर्सकी ने बीबीसी को बताया, "हमारी प्रक्रिया पदार्थ को ज्यादा खुरदुरा बना देती है। इससे उसका जीवनकाल बढ़ जाता है। और जब यह पूरा हो जाता है तो हम इसे पर्यावरण से बाहर कर सकते हैं, फिर चाहे यह किसी भी तरह फेंका जाए।”
 
प्लास्टिक प्रदूषण दुनिया की एक बहुत गंभीर समस्या है। हर साल 35 करोड़ टन प्लास्टिक का कचरा धरती पर बढ़ रहा है। यह कचरा सिर्फ हवा में ही नहीं बल्कि खाने तक पहुंच चुका है और सेहत के लिए खतरा बन चुका है।
 
माइक्रोप्लास्टिक के रूप में यह पीने के पानी के जरिए भी शरीर के अंदर जा रहा है। साल 2021 में शोधकर्ताओं ने एक अजन्मे बच्चे के गर्भनाल में माइक्रोप्लास्टिक पाया था और भ्रूण के विकास पर संभावित परिणामों पर "बड़ी चिंता" व्यक्त की थी।
 
मुसीबत है प्लास्टिक
संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूएनईपी की रिपोर्ट के मुताबिक अच्छी योजना के साथ काम किया जाए तो प्लास्टिक से दूरी बनाने पर दुनिया 2040 के अंत तक 4500 अरब डॉलर बचा सकती है। इसमें सिंगल यूज प्लास्टिक का उत्पादन न करने से बचने वाली लागत भी शामिल है। वैसे फिलहाल सबसे ज्यादा पैसा प्लास्टिक के कारण सेहत और पर्यावरण को रहे नुकसान पर खर्च हो रहा है।
 
अमेरिकी वैज्ञानिकों ने जो नई तरह का प्लास्टिक विकसित किया है, फिलहाल वह प्रयोगशाला में ही है लेकिन कुछ ही साल में यह रोजमर्रा के इस्तेमाल के लिए तैयार हो सकता है।
 
इस प्लास्टिक में जो बैक्टीरिया मिलाया गया है उसे बैसिलस सबटिलिस कहा जाता है। यह बैक्टीरिया खाने में एक प्रोबायोटिक के रूप में खूब इस्तेमाल होता है। लेकिन अपने कुदरती रूप में यह बैक्टीरिया प्लास्टिक में नहीं मिलाया जा सकता। इसके लिए उसे जेनेटिक इंजीनियरिंग की मदद से तैयार करना पड़ता है ताकि वह प्लास्टिक बनाने के लिए जरूरी अत्यधिक तापमान को सहन कर सके।
 
वैकल्पिक प्लास्टिक
बायोडिग्रेडेबेल प्लास्टिक की चर्चा बीते कुछ सालों में काफी तेज हुई है। इस पर कई वैज्ञानिक काम कर रहे हैं। 2016 से ही इस पर काफी रिसर्च सामने आई है। 2021 में मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों की एक टीम ने जेनेटिक इंजीनियरिंग की मदद से बैक्टीरिया को प्लास्टिक बनाने की प्रक्रिया का तापमान सहन करने में कामयाबी पाई थी।
 
आमतौर पर उपलब्ध प्लास्टिक को खत्म करना मुश्किल होता है क्योंकि उसका रासायनिक स्वभाव बेहद जटिल होता है। वह बहुत सूक्ष्म मॉलीक्यूल्स से बना होता है, जिन्हें मोनोमर कहते हैं। ये मोनोमर आपस में जुड़कर बहुत मजबूत पॉलीमर बनाते हैं।
 
हालांकि बहुत से विशेषज्ञों का मानना है कि इसके बजाय प्लास्टिक का इस्तेमाल घटाने पर जोर दिया जाना चाहिए। लेकिन एक अनुमान के मुताबिक 2050 तक प्लास्टिक का इस्तेमाल तीन गुना हो जाने की संभावना है। इस कारण प्लास्टिक की रीसाइक्लिंग की कोशिशें बहुत कामयाब नहीं हो पाई हैं। इसलिए बहुत से वैज्ञानिक मानते हैं कि खुद ही खत्म हो जाने वाला प्लास्टिक प्रदूषण घटाने में ज्यादा कारगर साबित हो सकता है।


Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

सुप्रीम कोर्ट: सात फेरों के बिना वैध नहीं हिंदू विवाह