Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

नीतीश कुमार के यू-टर्न के क्या हैं मायने

हमें फॉलो करें नीतीश कुमार के यू-टर्न के क्या हैं मायने

DW

, गुरुवार, 20 अप्रैल 2023 (08:47 IST)
Bihar hooch tragedy : बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जहरीली शराब पीने से मौत पर मुआवजे की घोषणा कर चौंका दिया है। उम्रकैद की सजा काट रहे कैदियों की रिहाई से जुड़े कानून में भी अहम संशोधन किया गया है। इन बदलावों के अपने सियासी मतलब हैं।
 
महज चार महीने पहले ही नीतीश कुमार ने विधानसभा में विपक्ष के भारी हंगामे के बाद जवाब में कहा था, ‘‘जो नकली शराब पियेगा, वह तो मरेगा ही। हम जहरीली शराब से मरने वाले के परिवार को एक रुपया नहीं देने वाले। लोग गंदी आदतों की वजह से जान दे रहे हैं। यह सबूत है कि जो गलत काम करेगा, वह मरेगा। उसको हम लोग मदद करेंगे, सवाल ही पैदा नहीं होता।''
 
राज्य में जब-जब जहरीली शराब पीने से मौत की घटनाएं हुईं, तब-तब मुआवजे की मांग को मुख्यमंत्री ने इसी तरह खारिज किया और कड़ी प्रतिक्रिया दी। बिहार में अप्रैल, 2016 से शराबबंदी लागू है। इन सब के बीच शराब का अवैध धंधा सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद जारी रहा। लोग नकली और जहरीली शराब की चपेट में आकर अपनी जान गंवाने लगे। बिहार में  पूर्ण शराबबंदी लागू होने के बाद से अब तक जहरीली शराब से मौत की 32 घटनाएं हुई हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार इन घटनाओं में 200 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है।
 
आश्रितों को मिलेगा मुआवजा
इस महीने पूर्वी चंपारण जिले में करीब 38 लोग जहरीली शराब पीने से अपनी जान गंवा चुके हैं। कई दूसरे बीमार हैं। इस घटना के बाद बिहार सरकार ने जहरीली शराब पीकर मरने वाले लोगों के आश्रित को मुख्यमंत्री राहत कोष से चार-चार लाख रुपये की सहायता देने का फैसला किया।
 
कहा गया है कि शराब पीने से कानून तो टूटता है, किन्तु किसी की मौत से उसके पूरे परिवार पर आर्थिक असर पड़ता है। मरने वाले अधिकतर लोग गरीब परिवार के हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा, ‘‘इधर जो घटनाएं हुई हैं, उससे काफी दुख हुआ है। भीतर से तकलीफ हो रही है कि कैसे कोई पी लेता है और मर भी जाता है। बुरा तो पहले भी लगता था। शराबबंदी के लिए इतना सब कुछ किया जा रहा है, फिर भी यह सब हो रहा है।"
 
बीजेपी के वरिष्ठ नेता और सांसद सुशील कुमार मोदी इसे बीजेपी के दबाव में लिया गया फैसला बताते हुए कहते हैं, ‘‘मुख्यमंत्री को अपने पूर्व के बयान ‘जो पियेगा, वह मरेगा' के लिए माफी मांगनी चाहिए। शराबबंदी के बाद करीब 3।61 लाख एफआईआर हुई और पांच लाख 17 हजार लोगों की गिरफ्तारी हुई। 25 हजार से अधिक लोग अभी भी जेल में बंद हैं।''
 
बताना होगा, कहां से खरीदी गई थी शराब
इस संबंध में मद्य निषेध, उत्पाद एवं निबंधन विभाग के अपर मुख्य सचिव के।के।पाठक की ओर से सभी जिलों के जिलाधिकारियों एवं पुलिस अधीक्षकों को पत्र भेजा गया है। इसमें कहा गया है कि सहायता राशि के लिए जहरीली शराब पीने से मरने वाले व्यक्ति के परिजन को जिलाधिकारी को लिखित आवेदन देना होगा। जिसमें उन्हें यह लिखना होगा कि वे शराबबंदी के पक्ष में हैं और शराब नहीं पीने के लिए अन्य लोगों को भी प्रेरित करेंगे। उन्हें यह भी बताना होगा कि जान गंवाने वाले व्यक्ति ने कहां से शराब खरीद कर पी थी।
 
यह राशि उन लोगों के परिजन को भी मिलेगी जिनकी मौत एक अप्रैल, 2016 के बाद जहरीली शराब से हुई है। 17 अप्रैल, 2023 के बाद के मृतकों का पोस्टमार्टम रिपोर्ट प्रस्तुत करना अनिवार्य होगा, किंतु इसके पहले के मामले में अगर पोस्टमार्टम रिपोर्ट नहीं है तो भी जिला प्रशासन मुआवजे के लिए सिफारिश कर सकेगा।
 
जेल मैनुअल में संशोधन
बिहार की महागठबंधन सरकार ने बिहार जेल मैनुअल, 2012 में संशोधन करते हुए उस अंश को हटा दिया है, जिसमें काम पर तैनात सरकारी सेवक की हत्या से संबंधित नियम का जिक्र था। इस संशोधन के बाद बिहार राज्य दंडादेश परिहार परिषद ऐसे मामले में किसी को स्थाई रूप से रिहा करने का निर्णय ले सकेगी। परिषद को अच्छे व्यवहार पर सजा में छूट देने (रेमिनेशन) के आधिकार है।
 
किन्तु, इस नियमावली में 2002 में किए गए बदलाव के अनुसार काम पर तैनात सरकारी सेवक की हत्या, जेल में रहते हुए किसी की हत्या, दहेज के लिए की गई हत्या या फिर 14 साल से कम उम्र के बच्चे की हत्या या फिर एक से अधिक हत्या के मामले में दोषी को नहीं छोडने या परिहार का लाभ नहीं देने का प्रावधान था। नए संशोधन में वाक्यांश ‘काम पर तैनात सरकारी सेवक की हत्या' को हटा दिया गया है।
 
सरकार के इस फैसले का विरोध करते हुए पूर्व आईपीएस अधिकारी अमिताभ कुमार दास ने इसे एक दलित अधिकारी का अपमान बताया है। उन्होंने इस संबंध में राज्यपाल राजेन्द्र विश्वनाथ आर्लेकर को लिखे अपने पत्र में कहा है कि राज्य सरकार ने जेल मैनुअल में यह संशोधन एक हत्यारे को मदद करने के उद्देश्य से किया है।
 
जेल मैनुअल में किए गए इस संशोधन से पूर्व सांसद आनंद मोहन की रिहाई का रास्ता साफ हो गया है। वे गोपालगंज के जिलाधिकारी (डीएम) जी. कृष्णैया की हत्या में सजा काट रहे हैं। काम पर तैनात सरकारी सेवक की हत्या का दोषी होने के कारण ही 14 साल से अधिक जेल में रहने के बावजूद उनकी रिहाई नहीं हो पा रही थी। पांच दिसंबर, 1994 को गोपालगंज से हाजीपुर जाने के दौरान आनंद मोहन के साथी नेता छोटन शुक्ला की शव यात्रा में चल रही भीड़ ने जी.कृष्णैया की हत्या कर दी थी।
 
नीतीश का चुनावी दांव
राजनीतिक समीक्षक डॉ. वीके सिंह दोनों ही मामले को सोचा-समझा फैसला बताते हुए नीतीश कुमार के चुनावी दांव की संज्ञा दे रहे हैं। वे कहते हैं, ‘‘दरअसल, जहरीली शराब के शिकार अधिकतर लोग दलित व पिछड़े वर्ग से रहे हैं। यहीं वर्ग जेडीयू व आरजेडी दोनों का ही कोर वोट बैंक है। जहरीली शराब के कारण लोगों की लगातार हो रही मौत से इस वर्ग का साथ खिसकने का खतरा मंडरा रहा था। इसलिए ही सरकार के सुर बदल गए।''
 
दूसरी ओर आनंद मोहन की रिहाई से विपक्ष को एकजुट करने की नीतीश कुमार की कवायद को बल मिलने की संभावना जताई जा रही है। आनंद मोहन का राजपूत समाज पर खासा प्रभाव माना जाता है। जेडीयू के एक नेता के अनुसार, ‘‘इससे दोनों ही पार्टियों को एक दबंग जाति को साथ लाने में मदद मिलेगी। अन्य सवर्ण जातियों की तरह राजपूत भी भाजपा के प्रति वफादार हैं। उम्मीद है, आनंद मोहन उन्हें महागठबंधन के साथ ला सकेंगे।''
 
वाकई, नीतीश कुमार 2024 के आम चुनाव तथा 2025 के विधानसभा चुनाव के मद्देनजर राजनीति की बिसात पर अपनी पकड़ मजबूत करने की जद्दोजहद कर रहे हैं। वे एक तरफ महागठबंधन को तुष्ट कर रहे हैं तो दूसरी तरफ विपक्षी दलों के हाथ से भी उनके बड़े मुद्दे छीनने की कोशिश में हैं।


Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

यूरोप के समुद्री रास्तों की टोह ले रहे हैं रूसी जहाज, क्या है इरादा?