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टैक्स के बोझ तले कराहतीं आईटी कंपनियां

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, शुक्रवार, 1 दिसंबर 2017 (12:04 IST)
अमेरिकी कानूनों में बदलाव, ऑटोमेशन और मंदी की वजह से पहले ही मुश्किल दौर से गुजर रही सूचना तकनीक कंपनियों को केंद्र सरकार के टैक्स वाले फैसले से करारा झटका लगा है।
 
कर विभाग ने आईटी कंपनियों कंपनियों से 10 हजार करोड़ का सर्विस टैक्स यानी सेवा कर मांगा है। इससे इस क्षेत्र में संकट पैदा हो गया है। लगभग दो सौ कंपनियों को भेजी गई इस आशय की नोटिस में सेवा कर विभाग ने 2012 से 2016 के दौरान देश से बाहर के ग्राहकों को मुहैया कराए गए सॉफ्टवेयरों पर निर्यात के मद में लिए गए फायदों को भी लौटाने का कहा है। इन कंपनियों से जुर्माने के अलावा ब्याज के साथ 15 फीसदी सेवा कर भी वसूला जाना है।
 
टैक्स नोटिस
केंद्र सरकार के सेवा कर विभाग ने अब तक लगभग दो सौ आईटी कंपनियों को नोटिस भेजी है। विभाग की दलील है कि आईटी कंपनियों के लिए भारत से बाहर सॉफ्टवेयरों की सप्लाई निर्यात के दायरे में नहीं आती। नोटिस में कहा गया है कि विदेशी ग्राहक भारतीय कंपनियों को ईमेल के जरिए अपनी खास जरूरतों की जानकारी देते हैं। उन जरूरतों के लिहाज से ही यहां कंपनियां साफ्टवेयर बना कर संबंधित ग्राहक को भेजती हैं। विभाग की दलील है कि ईमेल में जिस तरह सॉफ्टवेयरों की जरूरतों का ब्योरा भेजा जाता है वह भारतीय कंपनियों को सामान उपलब्ध करने जैसा है। 
 
उसी आधार पर यह कंपनियां विदेशी ग्राहकों को सेवा उपलब्ध कराती हैं। इससे साफ है कि यह एक सेवा है और इस पर सेवा कर लगेगा। केंद्र का कहना है कि सॉफ्टवेयर के निर्यात के नाम पर स्थानीय आईटी कंपनियों ने बीते पांच वर्षों के दौरान जो फायदे लिए हैं उनको तो लौटाना ही होगा, इस दौरान निर्यात टर्नओवनर पर ब्याज व जुर्माने के साथ 15 फीसदी की दर से सेवा कर का भुगतान करना होगा। एक बहुराष्ट्रीय कंपनी की भारतीय सहायक फर्म से इस मद में 50 करोड़ का कर चुकाने को कहा गया है।
 
दोहरा झटका
सूचना तकनीक से जुड़े लोगों का कहना है कि केंद्र की यह मांग इस क्षेत्र की कंपनियो के लिए दोहरा झटका है। केपीएमजी इंडिया में राष्ट्रीय प्रमुख (अप्रत्यक्ष कर) सचिन मेनन कहते हैं, "अगर निर्यातक कंपनियां टैक्स अपीलीय प्राधिकरण के समक्ष इस मामले को चुनौती देना चाहती हैं तो उस स्थिति में भी उनको 10 फीसदी कर जमा करना होगा। इसके साथ ही उनको अपनी बैलेंस शीट में भी इसके लिए प्रावधान करना होगा।" केंद्र की इस नोटिस से आईटी कंपनियों में हड़कंप का माहौल है और कुछ कंपनियों तो यहां से बोरिया-बिस्तर समेट कर दूसरे देश में जाने के विकल्प पर विचार कर रही हैं।
 
एक बहुराष्ट्रीय आईटी कंपनी के भारतीय प्रमुख नाम नहीं बताने की शर्त पर कहते हैं, "हम बेहद कम मुनाफे पर काम करते हैं। अब अचानक ऐसी आफत सिर पर आ खड़ी होने की वजह से हमारे लिए भारी मुसीबत पैदा हो गई है। उनकी कंपनी को 175 करोड़ रुपए का कर चुकाने की नोटिस मिली है।" मुंबई स्थित इस कंपनी ने अमेरिका स्थित एक विदेशी बैंक को सॉफ्टवेयर के निर्यात पर करों में छूट का दावा किया था। कंपनी अब अगले छह महीने के भीतर मुंबई से अपना दफ्तर फिलीपींस ले जाने पर विचार कर रही है।
 
केपीएमजी के मेनन सवाल करते हैं, "क्या भारतीय निर्यातक को विदेशी ग्राहकों की ओर से भेजे गए मेल सामान की सप्लाई की श्रेणी में आते हैं? क्या निर्यात को स्थानीय सप्लाई मान कर इन पर टैक्स का दावा किया जा सकता है?'
 
पिछड़ने का डर
आईटी विशेषज्ञों का कहना है कि सेवा कर समेत ज्यादातर अप्रत्यक्ष करों की जगह जीएसटी लागू होने की वजह से आगे इस मामले में जटिलता और बढ़ेगी। मेनन कहते हैं कि जीएसटी के दौर में भी सप्लाई की जगह से संबंधित नियमों के जस का तस रहने की वजह से इस समस्या के जारी रहने का अंदेशा है। उनका कहना है कि भारतीय सूचना तकनीक कंपनियों को अगर निर्यात पर 18 फीसदी की दर से जीएसटी भरना पड़े तो वे अंतरराष्ट्रीय बाजारों में प्रतिद्वंद्विता में काफी पिछड़ जाएंगी।
 
कर विशेषज्ञ दिनेश सुरेका कहते हैं, "टैक्स कानूनों के तहत जहां सप्लाई की जाती है उसी जगह टैक्स चुकाया जाता है। सामानों की सप्लाई के मामले में तो जगह तय करना आसान है लेकिन सॉफ्टवेयरों के मामले में यह बेहद मुश्किल है। मिसाल के तौर पर मुंबई की कोई आर्किटेक्चर फर्म अगर दुबई में किसी भवन को डिजाइन करे तो सप्लाई की जगह दुबई होगी और उस पर यहां सेवा कर नहीं लगेगा।" विशेषज्ञों का कहना है कि इस मुद्दे पर कर विभाग और आईटी कंपनियों में लंबी कानूनी जंग के आसार हैं। अपीलीय प्राधिकरण में इस फैसले को चुनौती देने के बावजूद इसके निपटान में कई साल का समय लग सकता है।
 
रिपोर्टः प्रभाकर


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