Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

निजी अस्पतालों में भरते नहीं गरीबों के लिए आरक्षित बिस्तर

हमें फॉलो करें निजी अस्पतालों में भरते नहीं गरीबों के लिए आरक्षित बिस्तर
, मंगलवार, 14 अगस्त 2018 (11:26 IST)
भारत में सरकारी अस्पताल भरे पड़े हैं और गरीब जानकारी के अभाव में प्राइवेट अस्पताल नहीं जाते। हालांकि सरकार समर्थिक प्राइवेट अस्पतालों में दस प्रतिशत सीटें गीरब मरीजों के लिए आरक्षित हैं।
 
 
बिहार की राजधानी पटना में राशन की दुकान में काम करने वाले 27 वर्षीय रामबाबू को जब बताया गया कि उन्हें ब्रेन ट्यूमर है तो उनको लगा जैसे उनके ऊपर विपत्ति का आसमान टूट पड़ा है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में इलाज करवाने के लिए वह घर से एक हजार किलोमीटर दूर दिल्ली आए। लेकिन यहां आकर उनकी तकलीफ और बढ़ गई, क्योंकि एम्स में इलाज के लिए उनका नंबर छह महीने बाद ही आने वाला था। निजी अस्पताल में इलाज करवाना उनके बस की बात नहीं थी और एम्स में इलाज के लिए छह महीने का इंतजार, मगर मर्ज ऐसा कि इंतजार करने वाला नहीं था।
 
 
निराशा की इस घड़ी में उम्मीद की किरण बनकर उनकी जिंदगी बचाने आया एक वकील। वकील अशोक अग्रवाल ने रामबाबू को बताया कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के लोगों का निजी अस्पतालों में भी मुफ्त इलाज हो सकता है। सरकारी जमीन पर बने निजी अस्पतालों में गरीबों का मुफ्त इलाज करने की नीति बनाई गई है। अग्रवाल रामबाबू को लेकर दिल्ली के पटपड़गंज स्थित मैक्स हॉस्पिटल गए और उन्होंने वहां उनको भर्ती करवाया। रामबाबू का मैक्स हॉस्पिटल में इलाज चल रहा है।
 
 
गरीब मरीजों के लिए बिस्तर
अग्रवाल ने आईएएनएस को बताया कि रामबाबू जैसे हजारों मरीजों को ईडब्ल्यूएस श्रेणी के लिए निजी अस्पतालों में आरक्षित 10 फीसदी बिस्तर के प्रावधान का लाभ मिला है। चार साल पहले अग्रवाल को पता चला कि दक्षिण-पश्चिम दिल्ली में एक घर में सिलिंडर फटने से लगी आग में पूरा परिवार प्रभावित हुआ। छोटी-छोटी तीन बच्चियां बुरी तरह झुलस गई थीं और उनके पिता की टांगों में पट्टियां बंधी थीं। अग्रवाल ने उनको गंगाराम अस्पताल भेजा, जहां उनकी प्लास्टिक सर्जरी हुई। उनके पिता की टांग इस कदर प्रभावित हो गई थी कि उसे काटने के सिवा कोई दूसरा उपाय नहीं था।
 
 
अग्रवाल ने बताया, "कोई दर्जन भर ऐसे मामले मुझे देखने को मिले, जिनमें पीड़ित व्यक्ति इलाज का खर्च वहन करने से असमर्थ थे। उनको ऐसे निजी अस्पतालों में भेजा गया, जहां सरकार की नीति के अनुसार चैरिटी बेड (खैराती विस्तर) की व्यवस्था की गई है।" अग्रवाल अपने तीस हजारी अदालत परिसर स्थित चैंबर में हर शनिवार इलाज के लिए मदद चाहने वाले गरीबों से मिलते हैं। वह उनसे एक इकरारनामा करवाते हैं कि मरीज ईडब्ल्यूएस श्रेणी से आते हैं और महंगा इलाज का खर्च वहन करने से लाचार हैं।
 
 
अदालत का हस्तक्षेप
केंद्र सरकार ने लोगों को कम खर्च पर शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा मुहैया करवाने के मकसद से 1949 में ही निजी अस्पताल और स्कूल खोलने के लिए काफी रियायती दरों पर जमीन का आवंटन करने का फैसला किया। लेकिन निजी अस्पतालों में अत्यंत निर्धन वर्ग के लोगों का इलाज नहीं हो रहा था, इसलिए अग्रवाल ने 2002 में अदालत में एक याचिका दायर की। याचिका में उन्होंने कहा कि जिन अस्पतालों को जमीन आवंटन के पत्र में 70 फीसदी तक बिस्तर आरक्षित करने को कहा गया है, उन अस्पतालों में भी इसका अनुपालन नहीं हो रहा है।
 
 
दिल्ली उच्च न्यायालय ने 2007 में अपने एक आदेश में कहा कि गरीबों के लिए आरक्षित बिस्तरों से लाभ अर्जित करने पर अस्पतालों पर भारी जुर्माना लगाया जाएगा। दिल्ली सरकार ने 2012 में अस्पतालों को दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले का अनुपालन करने का आदेश दिया, जिसके तहत अस्पतालों को गरीबों के लिए 10 फीसदी बिस्तर आरक्षित रखने और उन बिस्तरों पर भर्ती मरीजों के लिए मुफ्त दवाई व जांच की सुविधा प्रदान करने के साथ-साथ ओपीडी (बहिरंग) मरीजों में से 25 फीसदी गरीब वर्ग मरीजों को मुफ्त सलाह की सुविधा देने का प्रावधान किया गया है।
 
 
जानकारी का अभाव
लेकिन जागरूकता के अभाव में गरीब वर्ग के मरीज अपने अधिकार के बारे में नहीं जानते हैं और वे निजी अस्पताल नहीं पहुंच पाते हैं। कई अस्पतालों में उनके लिए आरक्षित बिस्तर खाली पड़े रहते हैं। समाज के गरीब वर्ग के लोगों में जागरूकता लाने के लिए अग्रवाल का साथ दे रहे ओबराय होटल समूह के अध्यक्ष कपिल चोपड़ा ने उनके लिए किए गए प्रावधानों की एक ऑडियो रिकॉर्डिग करवाई है, जिसे व्हाट्सएप संदेशों के माध्यम से प्रचारित किया जा रहा है।
 
 
ओबरॉय अपने वेब पोर्टल के माध्यम से भी निजी अस्पतालों में गरीबों के इलाज के लिए किए गए प्रावधानों को लेकर जागरूकता फैला रहे हैं। उन्होंने चैरिटीबेड्स डॉट कॉम नामक एक वेबसाइट शुरू की है, जिसपर दिल्ली-एनसीआर में रोजाना गरीब मरीजों के लिए निजी अस्पतालों में उपलब्ध 650 बिस्तरों की जानकारी दी जाती है। चोपड़ा ने कहा, "हमें जब कोई कॉल करता है तो हम मरीजों की मदद करते हैं। हम सरकारी अस्पताल जाते हैं और गरीब मरीजों को वहां से उठाकर उन्हें सीधे निजी अस्पतालों में पहुंचाते हैं।" अग्रवाल बताते हैं, "आखिरकार, मैं कह सकता हूं कि तकरीबन 85 से 90 फीसदी चैरिटी बेड का उपयोग अब होने लगा है।"
 
 
(यह साप्ताहिक फीचर श्रंखला आईएएनएस और फ्रैंक इस्लाम फाउंडेशन की सकारात्मक पत्रकारिता परियोजना का हिस्सा है)
 
रिपोर्ट: मुदिता गिरोत्रा (आईएएनएस)
 
 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

पाकिस्तानी जेल से भागने वाले भारतीय पायलटों की कहानी