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यहां प्राइवेट और सरकारी स्कूलों में कोई अंतर नहीं

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, बुधवार, 21 मार्च 2018 (12:55 IST)
पिछले साल आई इरफान खान की फिल्म "हिन्दी मीडियम" ने भारत में सरकारी और प्राइवेट स्कूलों के बीच के अंतर को बखूबी उजागर किया। लेकिन इस देश में सरकारी स्कूल प्राइवेट जितने ही अच्छे हैं।
 
 
भारत में सरकारी और प्राइवेट स्कूलों में बड़ा अंतर देखने को मिलता है। क्लासरूम के हालात हों या टीचर के पढ़ाने का तरीका, हर चीज में फर्क साफ पता चलता है। ऐसे में कम आमदनी होने के बाद भी लोग भारी फीसों वाले प्राइवेट स्कूलों में ही अपने बच्चों को भेजना पसंद करते हैं। लेकिन जर्मनी में ऐसा नहीं है। यहां मात्र 9 फीसदी बच्चे ही प्राइवेट स्कूलों में जाते हैं। जाहिर है सरकारी और प्राइवेट की फीस में यहां भी बड़ा अंतर है। जहां सरकारी स्कूलों में बच्चे लगभग मुफ्त में पढ़ते हैं, वहीं प्राइवेट स्कूलों में कम से कम लाख रुपये की फीस लगती है।
 
 
लेकिन बावजूद इसके दोनों स्कूलों के नतीजे एक जैसे हैं। एक ताजा शोध के अनुसार बच्चों के स्तर में कोई फर्क देखने को नहीं मिला है। फ्रीडरिष एबर्ट फाउंडेशन द्वारा किए गए इस शोध में 67,000 बच्चों का सर्वे किया गया। उनकी जर्मन और अंग्रेजी को परखा गया, गणित के सवाल दिए गए। नतीजा यह हुआ कि अंग्रेजी और जर्मन भाषा के टेक्स्ट को जितनी अच्छी तरह प्राइवेट स्कूल के बच्चे पढ़ और समझ सके, उतने ही अच्छे से सरकारी स्कूल के बच्चों ने भी पढ़ा। 9वीं क्लास में भी यही नतीजा मिला और चौथी में भी।
 
 
हालांकि जहां तक भाषा को सुन कर समझने का सवाल है, तो इसमें प्राइवेट स्कूल के बच्चे बेहतर निकले। लेकिन शोधकर्ताओं का मानना है कि इसमें स्कूल से ज्यादा परिवारों की भूमिका है। जो बच्चे महंगे स्कूलों में पढ़ने जाते हैं, उनके माता पिता आर्थिक रूप से सशक्त हैं और उनके घर में बेहतर भाषा का इस्तेमाल होता है। इसके अलावा प्राइवेट स्कूल बच्चों को विदेश में एक्सचेंज प्रोग्राम के लिए ले जाते हैं, जहां बच्चों को अपनी भाषा को सुधारने का मौका मिलता है। लेकिन क्लासरूम में मिले ज्ञान में कोई बड़ा फर्क देखने को नहीं मिलता है।
 
 
जर्मनी पत्रिका डेय श्पीगल में छपे लेख के अनुसार, अब तक जर्मनी में भी प्राइवेट स्कूलों को सरकारी से बेहतर माना जाता रहा है। यह धारणा इसलिए बनी क्योंकि नब्बे के दशक से प्राइवेट स्कूलों की तारीफ में बहुत कुछ लिखा जाता रहा है।


कौन सा स्कूल बेहतर है, इसे नापने का एक ही पैमाना रहा है और वह है परीक्षा में बच्चों के अंक। लेकिन ताजा शोध में अन्य बातों पर भी ध्यान दिया गया है, जैसे बच्चे किस पृष्ठभूमि से आते हैं, उनके माता पिता जर्मन हैं या विदेशी, लड़कों की तुलना में लड़कियों का स्तर क्या है। इस शोध में एक जैसे परिवारों से आने वाले बच्चों की तुलना की गई है और नतीजा यह निकला है कि प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे सरकारी स्सेकूलों के बच्चों से बेहतर नहीं होते।
 
रिपोर्ट ईशा भाटिया

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