Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

थकान और पेट में दर्द, क्या है इस बीमारी का इलाज?

हमें फॉलो करें थकान और पेट में दर्द, क्या है इस बीमारी का इलाज?
, गुरुवार, 12 जुलाई 2018 (12:04 IST)
लगातार थकान, पेट में दर्द या डायरिया की शिकायत? यह दर्द कई हफ्तों या महीनों तक भी जारी रहता है। ये क्रोंस बीमारी के लक्षण हो सकते हैं जिस पर लगातार रिसर्च की जा रही है।
 
 
क्रोंस ऐसी स्थिति है जिसमें पाचन तंत्र में सूजन पैदा हो जाती है। सूजन मुंह से लेकर अंतिम सिरे तक, पाचन तंत्र के किसी भी हिस्से को प्रभावित कर सकती है, लेकिन आम तौर पर यह छोटी आंत या बड़ी आंत के अंतिम हिस्से में होती है। इंफ्लेमेटरी बाउल डिजीज नाम की यह बीमारी लंबे समय तक रहती है। 
 
 
इम्यूनोलॉजी फॉर क्रोनिक इंफ्लेमेटरी बाउल डिजीज के प्रोफेसर राजा आत्रेय के मुताबिक, डॉक्टर सिर्फ इस बीमारी के लक्षण को कम कर सकते हैं, इसे जड़ से खत्म करने की कोई दवा नहीं है। हालांकि इस पर लगातार रिसर्च हो रही है। डॉयचे वेले से बातचीत में उन्होंने कहा, "हम इस बात का पता लगाने की कोशिश में हैं कि आंतों में सूजन किस प्रकार से पैदा होती है और वे कौन से मॉलिक्यूल है जो इसके लिए जिम्मेदार हैं। इस विषय पर काफी रिसर्च की जा रही है और उम्मीद है कि जल्द ही इसकी दवा भी बाजार में उपलब्ध हो सकेगी।"
 
 
क्रोंस बीमारी कई प्रकार की होती है। कई बार मरीजों को लक्षणों का पता नहीं चलता और न ही उन्हें कोई दिक्कत होती है। वहीं, ऐसे मरीज भी हैं जो लगातार दर्द से जूझ रहे होते हैं। कई बार दर्द असहनीय हो जाता है। बार-बार दस्त की शिकायत होने से मरीजों के शरीर में पानी की कमी हो जाती है और वह पस्त हो जाता है।
 
 
वह बताते हैं, "डायरिया की शिकायत होने पर हालत खराब हो जाती है। मरीज हर वक्त टॉयलेट के आसपास ही रहना चाहता है। क्रोंस बीमारी के मामले में कई बार दिन में 10 बार तक शौच के लिए जाना पड़ता है। यह बीमारी शरीर के साथ-साथ मानसिक स्तर पर भी असर डालती है। दोस्तों के साथ घूमना या मूवी देखने जाना दूभर हो जाता है। हम इसे यह सोच कर टाल देते हैं कि यह सामान्य डायरिया है जो कुछ दिनों में ठीक हो जाएगा, लेकिन असल में बीमारी कुछ और ही होती है। आम तौर पर 15 से 35 साल की उम्र में पहली बार इस बीमारी का पता चलता है। बुढ़ापे में इससे जूझने वाले मरीजों की संख्या अधिक होती है।
 
 
क्रोंस बीमारी की वजह से आंतों में सूजन पैदा होती है जिससे म्यूकस निकालने वाली झिल्ली पतली हो जाती है। इससे स्टेनोसेस की स्थिति पैदा हो जाती है और पाचन तंत्र कमजोर पड़ जाता है। सूजन की वजह से दस्त होना मुश्किल हो जाता है और फिर ऑपरेशन ही आखिरी विकल्प बचता है। सूजन की वजह से शरीर के अन्य हिस्से और त्वचा आदि प्रभावित होते हैं।
 
 
जर्मनी में एक हजार में हर पहला या दूसरा शख्स क्रोंस बीमारी से पीड़ित है। आत्रेय मानते हैं कि अब यह बीमारी वैश्विक स्तर पर पहुंच चुकी है। जिन देशों में इसके मरीज नहीं थे, अब वहां भी इसका फैलाव देखा जा रहा है। इसकी वजह पर्यावरण और अनुवांशिक बीमारियों का प्रभाव है।
 
 
क्रोंस से निपटने के लिए उन्होंने एक नया तरीका निकाला है जिससे मरीजों के बारे में यह मालूम किया सकेगा कि वे एंटी-टीएनएफ एंडीबॉ़डी थेरेपी के प्रति कैसा रिएक्शन देते हैं। इस थेरेपी से म्यूकोसा की कोशिकाओं के बारे में पता चलता है जो इस बीमारी के लिए जिम्मेदार हैं। 25 मरीजों पर स्टडी कर चुके आत्रेय बताते हैं कि इस थेरेपी से बीमारी का सटीक इलाज मालूम चल सकेगा। उनके इस शोध के लिए उन्हें पॉल इर्लिच और लुडविंग डार्मस्टेडर यंग टैलेंट अवॉर्ड भी मिल चुका है।
 
वीसी/एमजे
 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

जब देश का कर्ज़ उतारने के लिए लोगों ने दिया सोना