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शिक्षित और बेरोजगार: भारत के युवा मतदाता हैं नाराज

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, मंगलवार, 16 अप्रैल 2024 (07:54 IST)
दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश भारत 19 अप्रैल से शुरू होने वाले आम चुनावों की तैयारी में व्यस्त है और भारतीय नेताओं को एक गंभीर सच्चाई का सामना करना पड़ रहा है। वह है, युवाओं में बेरोजगारी।
 
भारत की वित्तीय राजधानी मुंबई के उपनगरीय इलाके में एक नौकरी केंद्र में 27 साल के महेश भोपाले लाखों अन्य युवा बेरोजगार ग्रैजुएटों की तरह एक अच्छी तनख्वाह वाली सरकारी नौकरी का सपना देखते हैं।
 
भारत सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था है, लेकिन इसके शिक्षित युवाओं के लिए अभी भी पर्याप्त व्हाइटकॉलर नौकरियां नहीं हैं।
 
बॉयोलॉजी के ग्रैजुएट भोपाले कहते हैं, इस जीवन से बाहर निकलने का हमारा एक मात्र तरीका सरकारी नौकरी पाना और अच्छा लाभ प्राप्त करना है। वह कहते हैं, इससे हमें शादी करने और परिवार शुरू करने में मदद मिलेगी।
 
उन्होंने सिविल सेवा परीक्षाओं की तैयारी करते हुए एक दर्जी के हेल्पर से लेकर रात के समय सिक्योरिटी गार्ड तक की पार्ट टाइम नौकरी कर अपना गुजारा किया है। गांव से काम की तलाश में बड़े शहर में आने वाले भोपाले ने कहा कि प्राइवेट सेक्टर में अपने आवेदन को आगे बढ़ाने के लिए उनके पास संपर्कों की कमी है।
 
सरकारी नौकरी की चाहत
उन्होंने कहा, 'सरकारी नौकरी सबसे अच्छी नौकरी है। हमारे जैसे गांवों के शिक्षित लोगों को उच्च वेतन वाली निजी क्षेत्र की नौकरियां नहीं मिल सकती हैं।'
 
भोपाले अकेले नहीं हैं। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन का अनुमान है कि 2022 में देश में 29 प्रतिशत यूनिवर्सिटी ग्रैजुएट बेरोजगार थे। यह दर उन लोगों की तुलना में लगभग नौ गुना अधिक है जिनके पास कोई डिप्लोमा नहीं है और आमतौर पर कम वेतन वाली नौकरियों या कंस्ट्रक्शन सेक्टर में काम करते हैं।
 
आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक भारत की 1.4 अरब आबादी में से आधे से अधिक लोग 30 वर्ष से कम उम्र के हैं।
 
नौकरियां कम, आवेदक ज्यादा
मुंबई के टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज के विकास अर्थशास्त्री आर रामकुमार कहते हैं, 'नौकरियां उतनी तेजी से नहीं बढ़ रही हैं, जितनी तेजी से जनसंख्या की संभावित कार्यबल बढ़ रही है।'
 
उन्होंने कहा कि कृषि क्षेत्र में कई नई नौकरियां पैदा हो रही हैं। रामकुमार ने कहा, 'यही कारण है कि आप कम संख्या में सरकारी नौकरियों के लिए बड़ी संख्या में आवेदकों को देखते हैं।'
 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिनके आगामी चुनावों में तीसरा कार्यकाल जीतने की संभावना है, वो एप्पल और डेल जैसे वैश्विक टेक दिग्गजों को देश में दफ्तर खोलने के लिए मनाने में अपनी सफलता का हवाला देते हैं। लेकिन आलोचकों का कहना है कि इससे मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में लाखों नौकरियां पैदा करने में सफलता नहीं मिली है।
 
वर्ल्ड बैंक ने इस महीने चेतावनी दी थी कि भारत अन्य दक्षिण एशियाई देशों की तरह, 'अपनी तेजी से बढ़ती कामकाजी उम्र की आबादी के साथ तालमेल बिठाने के लिए नौकरियां पैदा नहीं कर रहा है।' इसलिए उनके पास सरकारी नौकरियों की दौड़ में शामिल होने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।
 
बेरोजगार युवा सरकारी नौकरी को उचित वेतन, सामाजिक लाभ और स्थिरता के लिए महत्व देते हैं, लेकिन इन सरकारी नौकरियों को पाने के लिए प्रतिस्पर्धा बहुत कड़ी है।
 
उदाहरण के लिए भारतीय रेलवे को सैकड़ों हजारों मध्यम या निचले स्तर की नौकरियों के लिए लाखों आवेदन मिलते हैं। 34 साल के गणेश गोरे का कहना है कि उन्होंने सिविल सेवा परीक्षा पास करने के लिए पांच बार कोशिश की और असफल रहे।
 
गोरे ने कहा, 'कोई भी पार्टी या राजनेता हमारी मदद नहीं करता है। वे वहां बैठकर पैसे खा रहे हैं।'
 
2022 में जब केंद्र ने अग्निपथ योजना की शुरुआत की तो इसके खिलाफ हिंसक विरोध प्रदर्शन हुए।
 
नौकरी के लिए खतरा उठाने को तैयार
इस साल की शुरुआत में गजा में फिलिस्तीनी आतंकवादियों के खिलाफ युद्ध के कारण श्रमिकों की कमी के बाद हजारों भारतीयों को इस्राएल में नौकरियों के लिए आवेदन जमा करने के लिए लंबी कतारों में खड़े देखा गया था। हरियाणा जैसे राज्यों में कैंप लगाए गए थे और लोगों ने इस्राएल जाने के लिए आवेदन किया।
 
भारत 2022 में ब्रिटेन को पछाड़कर दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया था। लेकिन कई युवाओं का कहना है कि वे अवसरों की कमी से निराश हैं। लेकिन यह साफ नहीं है कि बेरोजगारी पर गुस्सा बीजेपी के चुनावी प्रदर्शन को कितना प्रभावित करेगा।
 
दिल्ली स्थित लोक नीति-सीएसडीएस रिसर्च सेंटर के मुताबिक मार्च में दिल्ली में छात्रों पर किए गए सर्वेक्षण में केवल 30 प्रतिशत प्रतिभागियों ने उच्च बेरोजगारी दर के लिए मोदी सरकार को जिम्मेदार ठहराया था।
एए/वीके (एएफपी)

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