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जान बचाने के लिए भागते बब्बर शेर

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, सोमवार, 23 अप्रैल 2018 (19:02 IST)
कभी उनकी दहाड़ भारत से लेकर पूरे अफ्रीका में गूंजती थी। लेकिन आज शेर कुछ ही इलाकों तक सिमट गए हैं। ऐसा क्यों हुआ?
 
परिवार में रहने वाले जानवर
मैदानी इलाके में रहने वाले शेर आहार चक्र में शीर्ष पर रहते हैं। बिल्ली प्रजाति के बाकी जीवों के उलट शेर आम तौर पर बहुत ही परिवार प्रेमी होती हैं। मादाएं हमेशा एक साथ एक झुंड में रहती हैं। नरों को झुंड से अलग कर दिया जाता है। झुंड से निकाले गए नर भाई आम तौर पर साथ रहते हैं।
 
दर्जन भर देशों से गायब
शेरों के हर झुंड को शिकार करने के लिए एक बड़े इलाके की जरूरत पड़ती है। इलाका जितना बड़ा होगा, शेर उतने ही सुरक्षित रहेंगे। अफ्रीका में कभी शेर अल्जीरिया से लेसोथो तक फैले थे। आज वे सिर्फ सब सहारा अफ्रीका में पाए जाते हैं। 12 देशों से वह गायब हो चुके हैं। सिमटते इलाके के चलते झुंडों में आपस में टकराव होता है और कई शेर आपसी लड़ाई में ही मारे जाते हैं।
 
शेर खत्म हुए तो उजड़ जाएगा सिस्टम
बीते 21 साल में शेरों की संख्या 43 फीसदी कम हुई है। अब इन्हें खतरे का सामना कर रही प्रजातियों की सूची में डाल दिया गया है। वन्य जीव विशेषज्ञों के मुताबिक दुनिया भर में अब करीब 20,000 शेर बचे हैं। शेरों की घटती संख्या से घास के मैदानों का इकोसिस्टम बिगड़ रहा है।
 
प्रजनन और शिकार में मुश्किल
अफ्रीकी महाद्वीप की आबादी इस वक्त करीब 1.2 अरब है. जनसंख्या बढ़ती जा रही है और वन्य जीवों के इलाके सिकुड़ते जा रहे हैं। WWF के मुताबिक पूरे अफ्रीकी महाद्वीप में अब शेरों के पास सिर्फ आठ फीसदी इलाका है। सड़कों और शहरों के विस्तार के चलते शेर प्रजनन या शिकार के लिए दूसरे इलाकों में भी कम ही जा पा रहे हैं।
 
इंसान के साथ बढ़ता टकराव
इंसानी बस्तियों के विस्तार के साथ साथ शेरों और इंसानों का टकराव भी बढ़ा है। शेर मवेशियों को निशाना बनाते हैं। मवेशियों को बचाने के लिए किसान कई बार शेरों पर बंदूक चला देते हैं। मवेशियों की वजह से शेरों में कई बीमारियां भी फैल रही हैं।
 
बंदूक के सहारे मर्दानगी
शेर को कई संस्कृतियों में ताकत, वीरता और पौरुष का प्रतीक माना जाता है। शिकारी इन बड़ी बिल्लियों को मारकर अपनी बहादुरी साबित करने कोशिश करते हैं। कुछ जगहों पर पारंपरिक दवाओं में शेर की हड्डियों, पूंछ, दांत और मांस का इस्तेमाल होता है। इसके चलते भी शेर मुश्किल में हैं।
 
नन्ही सी आशा
इस बीच दक्षिण अफ्रीका, जिम्बाब्वे और भारत जैसे देशों में शेरों की संख्या बढ़ी है। वन्य जीव संरक्षण की कारगर कोशिशों के चलते अच्छे नतीजे मिले हैं। लेकिन शेरों की बढ़ी आबादी के लिए नए इलाके भी खोजने होंगे। ऐसी चुनौतियों के लिए दीर्घकालीन टिकाऊ कदमों की जरूरत है। (रिपोर्ट: जेनिफर कॉलिंस/ओएसजे)

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