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ये क्रिकेट की 'जंग' नहीं, शेर और बकरी की लड़ाई है...

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सीमान्त सुवीर

जिन क्रिकेट दीवानों ने बीते लगभग चार दशकों में क्लाइव लॉयड, विवियन रिचर्ड्‍स से लेकर ब्रायन लारा की धुंआधार बल्लेबाजी के दर्शन करने के अलावा सीमा रेखा के पास से रन अप शुरु करके तूफानी गेंद फेंकने वाले मैलकम मार्शल को देखा है या फिर कोर्टनी वॉल्श के जांबाज प्रदर्शन को देखकर खुद को धन्य समझा होगा, उन्हें आज की वेस्टइंडीज (विंडिज) टीम को यकीनन तरस आ रहा होगा। जिस वेस्टइंडीज टीम को 'महामानव' की टीम का रुतबा हासिल था, वही टीम आज टीम इंडिया के खिलाफ 'क्रिकेट जंग' नहीं बल्कि 'शेर और बकरी' की लड़ाई लड़ने पर मजबूर है।
 
 
वेस्टइंडीज ने राजकोट में पहला टेस्ट पारी और 272 रनों से हारा जबकि हैदराबाद उसने 10 विकेट से गंवाया। 2 टेस्ट बुरी तरह हारने के बाद मेहमान टीम को टीम इंडिया के खिलाफ 5 वनडे और 2 टी-20 मैच खेलने हैं। इन मैचों के परिणामों में कोई बहुत ज्यादा बदलाव होने वाले नहीं हैं। वनडे सीरीज 21 अक्टूबर से शुरू हो रही है और पहला मैच गुवाहाटी में खेला जाएगा। 
 
क्रिकेट लीग में मिलता है मुंह मांगा पैसा : इसका सबसे बड़ा कारण ये है कि विंडिज के क्रिकेटरों ने भी बीते कई सालों में देश के बजाय पैसों को तरजीद देनी शुरु कर दी है। कंगाल वेस्टइंडीज बोर्ड से वे कई बार उलझे भी हैं लेकिन जब मुंह मांगा पैसा विभिन्न देशों की लीग में मिल रहा है तो वह क्यों देश की तरफ से खेलेंगे? दक्षिण अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, श्रीलंका की तर्ज पर वेस्टइंडीज (विंडिज) की टीम भी बदलाव के दौर से गुजर रही है, जहां क्रिकेटरों का सिर्फ एक ही लक्ष्य अपने बड़े नाम को भुनाकर पैसा कमाना है। 
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कप्तान क्लाइव लॉयड के हाथों में विश्व कप (1975)
 
मसाला क्रिकेट ही कमाऊ पूत : इंडियन प्रीमियर लीग ने देशी ही नहीं विदेशी क्रिकेटरों को भी मालामाल कर दिया है। यही कारण है कि अफगानिस्तान जैसा क्रिकेट बिरादरी का अदना सा देश भी अपने यहां आईपीएल जैसी टी-20 लीग संयोजित कर रहा है। आज की भागती जिंदगी में खासकर युवाओं की खास पसंद बन चुके मसाला क्रिकेट पर सबकी निगाहें लगी हैं क्योंकि यह कमाऊ पूत न केवल स्टेडियमों को खचाखच भरता है बल्कि विभिन्न बोर्डो के साथ क्रिकेटरों पर भी धनवर्षा करता है।
 
क्रिकेट को व्यावसायिक बनाने के जनक रहे हैं डालमिया : जो असली क्रिकेट के जानकार हैं, उनकी क्रिकेट से दूरियां बढ़ती जा रही है क्योंकि वे अपनी आंखों में बसे रोमांचक, संघर्ष से भरे कलात्मक क्रिकेट को कभी दूर नहीं करना चाहते। 1987 के रिलायंस विश्व कप के बाद से जगमोहन डालमिया के दिमाग की उपज का ही परिणाम है कि न केवल क्रिकेट का शुद्ध व्यावसायिकरण हुआ बल्कि क्रिकेटरों की भी पौबारह हो गई। डालमिया के नजरिए ने ही क्रिकेट को न केवल प्रोफेशनल बनाया अलबत्ता क्रिकेट की सर्वोच्च संस्था आईसीसी को भी अपनी तिजोरियां भरने का रास्ता दिखा दिया।
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बनिया बुद्धि वाले उद्योगपति रहे जगमोहन डालमिया : आज भले ही लोग पूर्व कप्तान सौरव गांगुली के 'क्रिकेट आका' डालमिया को भूल गए हों लेकिन आज यदि दुनिया के नामी क्रिकेटर खेल और अन्य संसाधनों के जरिए अपने बैंक बैलेंस को करोड़ों तक पहुंचा रहे हैं तो उन्हें कोलकाता के इस बनिया बुद्धि वाले उद्योगपति रहे जगमोहन डालमिया का शुक्रिया अदा करना चाहिए। लेकिन डालमिया को यह कतई मालूम नहीं था कि आने वाले समय में पहले 60 और फिर 50-50 ओवरों का क्रिकेट टी-20 और अब टी-10 ओवरों के खेल के जरिए क्रिकेट का सत्यानाश होने रहा है।
 
पूरी दुनिया पर रहा है वेस्टइंडीज का खौफ : बात, फिर से उस महान वेस्टइंडीज टीम की जिसका खौफ पूरी दुनिया पर रहा है। छोटे - छोटे द्वीप समूह से बनने वाली वेस्टइंडीज की टीम अपने अतीत पर इसलिए गर्व कर सकती है कि क्योंकि उसने विश्व कप क्रिकेट के 11 संस्करणों में से शुरुआत के लगातार 2 विश्व कप (1975, 1979) जीते जबकि 1983 में वेस्टइंडीज टीम फाइनल में भारत से नहीं हारती तो उसकी जीत की हैट्रिक पूरी हो जाती, वह भी महान कप्तान क्लाइव लॉयड के नेतृत्व में।

ऑस्ट्रेलिया से पिटने के बाद लॉयड ने सीखा था सबक : 1975-76 में वेस्टइंडीज टीम जब ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर गई थी, तब लिली-थॉमसन तूफानी गेंदबाज के आगे वेस्टइंडीज ने हथियार डाल दिए थे और ऑस्ट्रेलिया ने 6 टेस्ट मैचों की सीरीज में उसे 5-1 से बुरी तरह धुनकर रख दिया था। कप्तान लॉयड ने यहीं से सबक सीखा कि यदि बल्लेबाजों में खौफ पैदा करना है तो तेज आक्रमण को अस्त्र बनाना पड़ेगा। इसके बाद ही उन्होंने अपनी टीम में खतरनाक तेज गेंदबाजों की फौज खड़ी कर दी थी।
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कप्तान क्लाइव लॉयड के हाथों में विश्व कप (1979)
 
खौफ का दूसरा नाम थे ये दिग्गज क्रिकेटर्स : क्लाइव लॉयड के कप्तानी से हटने के बाद एक से बढ़कर एक सूरमा बल्लेबाज और तूफानी गेंदबाजों से लैस वेस्टइंडीज ने दुनियाभर की दिग्गज टीमों को हिलाकर रख दिया था। आप भी जब इन नामों को पढ़ेंगे तो जेहन में उनकी छवि अंकित हो जाएगी। मसलन विवियन रिचर्ड्‍स, रॉय फैड्रिक्स, कालीचरण, मैलकम मार्शल, कोर्टनी वॉल्श, कर्टले एम्ब्रोज, एंडी रॉबर्ट्‍स, रिची रिर्डसन, जैफ डूजॉन (विकेटकीपर), गार्डन ग्रीनिज, डेसमंड हैंस और ब्रायन लारा। 
 
बाद के खिलाड़ी अपने लिए खेले, देश के लिए नहीं : वेस्टइंडीज की टीम ने इन धुरंधरों के बाद जो दौर देखा, उसमें ज्यादातर खिलाड़ी अपना व्यक्तिगत खेल खेले न कि देश के लिए। गेल के बल्ले ने भले ही रनों की बरसात करके दर्शकों को आंदोलित किया हो लेकिन उनकी ऐसी एक भी पारी याद नहीं आती, जब उन्होंने अपने अकेले के दम पर वेस्टइंडीज को प्रतिस्पर्धात्मक क्रिकेट में बड़ी जीत दिलाई हो। गेल ही क्यों, किरोन पोलार्ड, चन्द्रपाल, ड्‍वेन ब्रावो जैसे खिलाड़ी भी आईपीएल के जरिए अपनी जेबें भरते रहे हैं। 
 
वेस्टइंडीज का स्वर्णिम दौर कभी नहीं लौटेगा : वेस्टइंडीज के पूर्व क्रिकेटर और वर्तमान दौरे में कॉमेंट्री कर रहे कार्ल हूपर भी मानते हैं कि जब से हमारे गरीब क्रिकेटरों ने पैसों की चमक के दर्शन किए हैं, उनकी आंखें चुंधिया गई है। यही कारण है कि हमारी टीम अब पहले जैसी ताकतवर नहीं रही। खिलाड़ियों में लड़ने का जस्बा ही खत्म हो गया है। जो नए खिलाड़ी आ रहे हैं, उनकी जिम्मेदारी है कि क्रिकेट के गौरव को वापस लौटाएं लेकिन मुझे नहीं लगता है कि हम फिर से दुनिया को कड़ी टक्कर देने वाली टीम कभी खड़ी कर पाएंगे और वेस्टइंडीज का स्वर्णिम दौर दोबारा लौटेगा।

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