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बीसीसीआई की विशेष आम बैठक स्थगित

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, मंगलवार, 11 जुलाई 2017 (19:26 IST)
नई दिल्ली। भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) की मंगलवार को होने वाली विशेष आम बैठक छह राज्य क्रिकेट संघों के विरोध के कारण स्थगित कर दी गई। राजीव शुक्ला की अध्यक्षता वाली सात सदस्यीय समिति ने गत आठ जुलाई को अपनी बैठक की थी और चार बिंदुओं को लेकर सदस्यों की आपत्ति को उच्चतम न्यायालय के सामने रखने का फैसला हुआ था। 
          
लोढा समिति की सिफारिशों को लागू करने को लेकर सात सदस्यीय समिति की रिपोर्ट पर चर्चा करने के लिए एसजीएम बुलाई गई थी, ताकि सिफारिशों को मंजूरी दी जा सके। राजीव शुक्ला की अध्यक्षता वाली सात सदस्यीय समिति ने गत आठ जुलाई को अपनी बैठक की थी और चार बिंदुओं को लेकर सदस्यों की आपत्ति को उच्चतम न्यायालय के सामने रखने का फैसला हुआ था। 
         
बीसीसीआई के कार्यवाहक अध्यक्ष सीके खन्ना ने एसजीएम बुलाई थी, लेकिन छह राज्यों तमिलनाडु, हरियाणा, गोवा, सौराष्ट्र, केरल और कर्नाटक ने यह कहते हुए एसजीएम का विरोध किया कि इतने कम समय में बैठक बुलाना बीसीसीआई के नियमों के खिलाफ है और ऐसी बैठक बुलाने के लिए कम से कम 10 दिन का समय दिया जाना चाहिए।
         
बोर्ड को आखिर एसजीएम स्थगित करने के लिए मजबूर होना पड़ा। बीसीसीआई अब एसजीएम की अगली तारीख के लिए 15 दिन का नोटिस देगी। दरअसल गत 26 जून को लोढा समिति की सिफारिशों को लागू करने को लेकर सात सदस्यीय समिति का गठन किया गया था जिसने आठ जुलाई को जाकर अपनी बैठक की और अपनी रिपोर्ट कार्यवाहक अध्यक्ष खन्ना को सौंपी। खन्ना के पास इतने कम समय में एसजीएम बुलाने के अलावा कोई विकल्प नहीं रह गया क्योंकि इस मामले पर 14 जुलाई को उच्चतम न्यायालय में सुनवाई होनी है। 
 
बीसीसीआई के एक अधिकारी के अनुसार, एसजीएम में विलंब से विशेष समिति द्वारा लिए गए फैसलों पर कोई असर नहीं पड़ेगा। अधिकारी ने कहा, विशेष समिति ने दो बार अपनी बैठक की और तीन चार बिंदुओं को चुना। यह सब कुछ प्रशासकों की समिति को बताया जा चुका है, जो उच्चतम न्यायालय में स्थिति रिपोर्ट दायर करेगी।
         
मंगलवार की बैठक स्थगित होना इस बात का एक और उदाहरण है कि लोढा समिति की सिफारिशों को लागू करने के खिलाफ बीसीसीआई का एक वर्ग किस तरह विलंब करने के तरीके अपना रहा है। इन सिफारिशों को लागू करने का आदेश उच्चतम न्यायालय ने 18 जुलाई 2016 को दिया था और उसके बाद से एक साल पूरे होने वाले हैं, लेकिन सिफारिशें पूरी तरह लागू नहीं हुई हैं।
        
छह राज्य संघों ने यह कहते हुए एसजीएम का विरोध किया कि इतने कम समय में बैठक नहीं बुलाई जा सकती है। इसके लिए 10 दिन का नेाटिस दिया जाना चाहिए। हालांकि इससे पहले भी 2002 और 2016 में कम समय के नोटिस पर बैठक बुलाई गई थी, लेकिन तब उसके लिए सभी सदस्यों की सहमति थी। सूत्रों के अनुसार, तमिलनाडु ने तो यहां तक कहा कि यदि एसजीएम बुलाई जाती है तो वह राज्य में केस दायर कर सकते हैं।
        
सात सदस्यीय समिति का गठन 26 जून को किया गया था। यदि यह समिति अपनी बैठक जल्द कर रिपोर्ट कार्यवाहक अध्यक्ष खन्ना को सौंप देती तो उनके पास एसजीएम बुलाने के लिए पर्याप्त समय होता, लेकिन उसकी बैठक आठ जुलाई को होने और उच्चतम न्यायालय में 14 जुलाई की सुनवाई को देखते हुए एसजीएम 11 जुलाई को बुलाई गई थी और इसके लिए सदस्यों की स्वीकृति की जरूरत थी।
        
बीसीसीआई के पूर्व अध्यक्ष और तमिलनाडु क्रिकेट संघ के अध्यक्ष एन श्रीनिवासन इन सिफारिशों को लागू करने के पक्ष में नहीं है और 27 जून की एसजीएम में वह अपने राज्य क्रिकेट संघ के प्रतिनिधि के तौर पर मौजूद थे। 
         
तमिलनाडु ने सबसे पहले दो दिन के नोटिस पर एसजीएम बुलाने का विरोध किया था। उसके सचिव आर आई पलानी ने इसे अवैध बताया था। उन्होंने कहा था कि यदि 11 जुलाई को बैठक होती है तो यह अवैध होगी और इसमें लिए गए फैसलों का कोई महत्व नहीं होगा। 
       
पलानी के अनुसार सभी सदस्यों के पास सिफारिशों पर चर्चा करने और उन्हें लागू करने से होने वाले प्रभावों पर विचार करने के लिए पर्याप्त समय होना चाहिए। पलानी का मानना है कि इस तरह की प्रक्रिया बीसीसीआई के लोकतांत्रिक सिद्धांतों के खिलाफ है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि एसजीएम रद्द होने के बाद 14 जुलाई को उच्चतम न्यायालय में जो सुनवाई होती है उसमें सिफारिशों को लेकर सर्वोच्‍च अदालत का क्या रुख रहता है। (वार्ता)


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