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बजट का अर्थ और संभावनाएं

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अब से कुछ वर्षों पहले तक बजट एक महत्वपूर्ण वार्षिक घटना हुआ करती थी जिससे सरकार की नीतियों और आम लोगों के सरोकार सीधे प्रभावित होते थे। चूंकि पहले यह घटना वर्ष में एक बार होती थी, इसलिए लोगों को इसका बहुत इंतजार होता था क्योंकि इसमें समाज और देश के प्रत्येक वर्ग और व्यक्ति के लिए कुछ ना होता था लेकिन अब ऐसा लगता है कि वार्षिक बजट की परिभाषा ही बदल गई है।

 
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पहले जो फैसले सरकार की ओर से आर्थिक मोर्चे पर किए जाते थे, वे अब प्रतिदिन की बात हो गई और ऐसा लगता है कि सरकार ने अपनी निर्णयक्षमता और फैसलों को बाजार की शक्तियों के हवाले कर दिया है।

अब डीजल, पेट्रोल की कीमतें साल, छह महीने में नहीं वरन हर सप्ताह और प्रतिदिन बढ़ती हैं ( क्योंकि बढ़ी हुई कीमतों के घटने का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता है)। इसका महत्वपूर्ण अर्थ यह है कि सरकार ने बहुत सारी वस्तुओं का मू्ल्य निर्धारण उन्हीं ताकतों के हाथों में सौंप दिया है जोकि पहले ‍इनके निर्धारण में बहुत सीमित भूमिका निभाते थे।

इसका एक अर्थ यह भी है कि पहले बजट का जो अर्थ होता था, वह अब परम्परागत अर्थ में ना होकर एक बाजारोन्मुखी प्रक्रिया हो गई है। नेहरू ने अपने कार्यकाल में जिस समाजवादी अर्थव्यवस्था का नींव रखी थी वह अब बीते दिनों की बात हो गई है क्योंकि ‍आर्थिक सुधारों के इस जमाने में अर्थव्यवस्था भी बाजारोन्मुखी हो गई है। इसलिए सारी बातें का दायरा मांग और पूर्ति के सिद्धांतों तक स‍ीमित होकर रह गया है। आज मोदी सरकार का पहला आम बजट पेश हो रहा है। पूरे देश को इंतजार है कि वित्त मंत्री अरुण जेटली के पहले बजट में क्या कुछ होगा? लोगों की कितनी राहत मिलेगी? कौन सी चीज होगी सस्ती क्या होगा महंगा?

नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भारत सरकार से उम्मीद है कि सरकार भारत की धीमी विकास दर को तेज़ करने के लिए कई कड़े फ़ैसले ले सकती है। उल्लेखनीय है कि
साल 2013-2014 के दौरान भारत की विकास दर 4.7 प्रतिशत रही। इससे एक साल पहले यह दर पांच प्रतिशत से कम रही थी। इसका सीधा सा अर्थ है कि हमारा बजट विकास दर को बढ़ाने के क्या-क्या उपाय करता नजर आएगा।

सत्ता संभालने के बाद प्रधानमंत्री मोदी 'महंगाई से त्रस्त' जनता को 'कड़वी गोली' लेने की बात कहते रहे हैं। आज उस कड़वी गोली को जानने का समय आ गया है। विदित हो कि जहां तक रेल बजट की बात है तो इससे पहले मोदी सरकार जहां रेल किरायों में वृद्धि कर चुकी है, वहीं डीज़ल और पेट्रोल के दाम भी बढ़ाए जा चुके हैं। अब यह देखना अहम होगा कि बजट में किसान, आम आदमी के लिए क्या होगा?

सवाल यह है कि क्या सरकार सरल कर नीति अपनाएगी? विदेशी निवेश को प्रोत्साहन और बड़ी कारोबारी परियोजनाओं को त्वरित मंजूरी देने संबंधित फ़ैसले ले सकती है। .
आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार साल 2014-15 के दौरान आर्थिक विकास दर 5.4 से 5.9 प्रतिशत के बीच रहने की उम्मीद है लेकिन ख़राब मॉनसून के कारण यह दर 5.4 प्रतिशत रह सकती है। इसलिए सरकार के फैसले इन संभावनाओं से प्रभावित होंगे।

हम उम्मीद करते हैं कि बजट में ये फ़ैसले लिए जा सकते हैं। नई सरकार के आम बजट में बढ़ती महंगाई पर नियंत्रण के लिए क़दम उठाए जा सकते हैं। यह बहुत जरूरी भी है क्योंकि अपने चुनावी भाषणों में प्रधान मंत्री मोदी ने महंगाई को बहुत बड़ा मुद्दा बनाया था। आर्थिक सर्वेक्षण संकेत देता है कि सरकार नया सामान्य बिक्री कर नियम ला सकती है।

पिछली सरकार ने राजकोषीय घाटा जीडीपी का 4.1 प्रतिशत तक रखने का लक्ष्य तय किया था लेकिन इस बार इसका स्तर बढ़ सकता है, यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है?
क्या सरकार खाद्य पदार्थों और उर्वरकों पर दी जाने वाली छूट को कम कर सकती है?
आयकर में छूट की सीमा बढ़ाई जा सकती है लेकिन कितनी? वस्तु एवं सेवा कर में बदलाव लाया जा सकता है लेकिन यह बदलाव कैसा और कितना होगा? भारी बहुमत से चुनाव जीत कर सत्ता में आए नरेंद्र मोदी ने चुनाव प्रचार के दौरान भारत की आर्थिक विकास को तेज़ करने और देश के लाखों बेरोजगारों के लिए रोजगार के अवसर तैयार करने का वादा किया था, इस बजट में बेरोजगारों के क्या है, यह बहुत महत्वपूर्ण और निर्णायक कदम हो सकता है।

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