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प्रेरणादायी कहानी : आरुणि की गुरुभक्ति...

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पौराणिक कथा : गुरु भक्त आरुणि का गुरु प्रेम 
 
- सुरेन्द्र अंचल

यह महर्षि आयोदधौम्य का आश्रम है। पूरे आश्रम में म‍हर्षि की मंत्र वाणी गूंजती रहती है। गुरुजी प्रात: 4 बजे उठकर गंगा स्नान करके लौटते, तब तक शिष्यगण भी नहा-धोकर बगीची से फूल तोड़कर गुरु को प्रणाम कर उपस्थित हो जाते। आश्रम, पवित्र यज्ञ धूम्र से सुगंधित रहता। आश्रम में एक तरफ बगीचा था। बगीचे के सामने झोपड़ियों में अनेक शिष्य रहते थे।
 
गुरु के शिष्यों में तीन‍ शिष्य बहुत प्रसिद्ध हुए। वे परम गुरु भक्त थे। उनमें बालक आरुणि भी एक था।
 
एक दिन की बात है सायंकाल अचानक बादलों की गर्जना सुनाई देने लगी... घड़ड़ड़... घड़ड़ड़...। 
 
बादलों की गर्जन सुन मोर टहूके- पिऽऽ कोऽऽ क! पिकोऽ का! 
 
ताल-तलैया के किनारे उछलते-कूदते मेंढक टर्राए... टर्र... टर्र... ऽऽ।
 
गुरुजी ने आकाश की ओर देखा- अरे! वर्षा का मौसम तो बीत गया। अब अचानक उमड़-घुमड़कर बादल क्यों छा रहे हैं। लगता है वर्षा होगी।
 
तभी बड़ी-बड़ी बूंदें बरसने लगीं। देखते ही देखते मूसलधार वर्षा शुरू हो गई। 
 
 
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कुछ दूर गुरुजी के खेत थे। गुरुजी ने सोचा कि कहीं अपने धान के खेत की मेड़ अधिक पानी भरने से टूट न जाए। खेतों में से सब पानी बह जाएगा। मिट्टी कट जाएगी।
 
उन्होंने आवाज दी- आरुणि! बेटा आरुणिऽऽ!
 
उपस्थित हुआ गुरुदेवऽऽ!
 
बेटा आरुणि! वर्षा हो रही है। तुम खेत पर जाओ और देखो, कहीं मेड़ टूटकर खेत का पानी निकल न जाए।
 
जो आज्ञा गुरुदेव!
 
गुरु का आदेश पाकर आरुणि चल पड़ा खेत की ओर।
 
झमाझम पानी बरस रहा था।
 
बादल गरज रहे थे... घड़ड़ड़ऽऽऽ ... ऽऽऽ...। 
 
मोर मस्ती में भर वर्षा के स्वागत में टुहुक रहे थे- पि... केऽऽ क। पिऽऽ कोऽऽ का।
 
आरुणि भीगता हुआ भी दौड़ा जा रहा था। गुरुजी ने दूसरे शिष्यों की बजाए आरुणि को आदेश दिया इसलिए आरुणि खुशी से फूला नहीं समा रहा था।
 
उसके कानों में वर्षा की रिमझिम के स्थान पर गुरुजी की बताई शिक्षा गूंजने लगी-
 
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु:
गुरुर्देवो महेश्वर:।
 
 

आरुणि ने देखा कि खेत की मेड़ एक स्थान पर टूट गई है तथा वहां से बड़े जोर से पानी की धारा बहने लगी है। आरुणि ने टूटी मेड़ पर मिट्टी जमाकर पानी रोकना चाहा किंतु बहता पानी मिट्टी को बहा ले जाता।
 
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... हाय! यह तो सारी मेहनत ही बेकार हो गई। पानी तो ठहरता ही नहीं। क्या करूं?
 
मैं खुद ही क्यों नहीं टूटी मेड़ के स्थान पर सो जाऊं? हां, यही ठीक रहेगा।
 
और आरुणि सचमुच टूटी‍ मेड़ के स्थान पर सो गया। पानी का बहाव थम गया। 
 
रात पड़ गई। चारों ओर अंधकार ही अंधकार। बादलों की गर्जना... घड़ड़ड़... घड़ड़ड़...। 
 
गीदड़ों की... हुआऽऽ हुआऽऽ।
 
झमाझम बरसता पानी। कल-कल बहती धाराएं। सर्द हवाएं।
 
आरुणि का शरीर सर्दी से अकड़ने लगा किंतु उसे तो एक ही धुन... गुरु की आज्ञा का पालन। बहता हुआ पानी कल-कल करता मानो आरुणि को कहने लगा-
 
मैं वर्षा का बहता पानी, 
मेरी चाल बड़ी तूफानी।
उठ आरुणि अपने घर जा,
रास्ता दे दे, हट जा, हट जा।। 
 
मगर गुरु भक्त बालक आरुणि का उत्तर था- 
 
गुरुजी का आदेश मुझे है,
मैं रोकूंगा बहती धारा।
जय गुरु देवा, जय गुरु देवा,
आज्ञा पालन काम हमारा।।
 
रात बीतती रही। बादल गरजते रहे। गीदड़ चीखते रहे- हुआऽऽ हुआऽऽ। 
 
मेंढक टर्राते रहे- टर्र... टर्र... टर्र...।
 
एक घंटा... दो घंटे... तीन घंटे...। आरुणि रातभर खेत के सहारे सोता रहा। सर्दी में शरीर सुन्न पड़ गया। गुरुदेव के खेत से पानी बहने न पाए, इस विचार से वह न तो तनिक भी हिला और न ही उसने करवट बदली। शरीर भयंकर पीड़ा होते रहने पर भी सचमुच गुरु का स्मरण करते हुए पड़ रहा। 
 
चिड़िया चहकने लगी। मुर्गे ने सुबह होने की सूचना दी... कुकड़ूं कूंऽऽ। 
 
गुरुजी नहा-धोकर लौटे। सभी शिष्यगण सदैव की तरह गुरुजी को प्रणाम करने पहुंचा-
 
गुरुदेव प्रणाम!
 
प्रसन्न रहो उपमन्यु!
 
गुरुदेव प्रणाम!
 
प्रसन्न रहो बेटा वेद!
 
गुरु ने देखा कि आज आरुणि प्रणाम करने नहीं आया। उन्होंने दूसरे शिष्यों से पूछा- आज आरुणि नहीं दिख रहा है? 
 
एक शिष्य ने याद दिलाया- गुरुदेव! आरुणि कल संध्या समय खेत की मेड़ बांधने गया था, तब से अब तक नहीं लौटा।
 
अरे हां, याद आ गया। किंतु वह लौटा क्यों नहीं? कहां रह गया? चलो पता लगाएं।
 
महर्षि अपने शिष्यों की टोली के साथ आरुणि को ढूंढ़ने निकल पड़े। चलते-चलते वे खेत की मेड़ की तरफ जा पहूंचे। 
 
बेटा आरुणिऽऽ! कहां हो?
 
किंतु आरुणि का शरीर सर्दी से इतना अकड़ गया था कि न बोला जा रहा था, न हिल-डुल सकता था।
 
वह रहा। वह तो मेड़ के सहारे पानी के बहाव में मूर्छित पड़ा है- एक ने बताया।
 
सभी वहां पहुंचे। उन्होंने मरणासन्न आरुणि को उठाया। हाथ-पांवों की मालिश की। थोड़ी देर बाद उसे होश आ गया।
 
गुरुजी ने सब बातें सुनकर उसे हृदय से लगा लिया और आशीर्वाद दिया- बेटा आरुणि! तुम सच्चे गुरुभक्त हो। तुम्हें सब विद्याएं अपने आप ही आ जाएंगी। जगत में आरुणि की गुरुभक्ति सदा अमर रहेगी।
 
सभी बालकों ने आरुणि को कंधों पर उठा लिया। घोष होने लगा।
 
गुरु भक्त आरुणि, 
धन्य हो। धन्य हो।
गुरु भक्त आरुणि, 
धन्य हो। धन्य हो।

साभार - देवपुत्र 
 

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