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बाल कविता : ठंडा है मटके का पानी

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सुशील कुमार शर्मा

गरम धूप में शोर मचाएं
मुन्नू टिल्लू रोते आएं
मां नानी उनको पुचकारे
जोर-जोर से हंसती रानी
ठंडा है मटके का पानी
 
गई परीक्षा गर्मी आई
नानी ने मंगवाई मिठाई।
धमा चौकड़ी करते भाई।
नानी की न कोई सानी
ठंडा है मटके का पानी।
 
पुस्तक कॉपी कौन पढ़े अब।
बच्चों के पीछे हैं पड़े सब।
मौका ऐसा किसे मिले कब।
अब तो छुक-छुक रेल चलानी।
ठंडा है मटके का पानी।
 
शहर छोड़ नानी घर आए।
कूद नदी में खूब नहाए।
पत्थर मार आम गिराए।
नानी से सब सुनी कहानी।
ठंडा है मटके का पानी।
 
नानी का घर स्वर्ग के जैसा
मिलती मस्ती मिलता पैसा
नाना है तो अब डर कैसा।
नानी जैसा न कोई दानी।
ठंडा है मटके का पानी।

 


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