Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

कविता : भारत की पहचान

हमें फॉलो करें कविता : भारत की पहचान

सुशील कुमार शर्मा

सहिष्णुताओं की आधारशिला पर,
भारत भुवन-भास्कर चमके। 
त्याग, संकल्प, बलिदानों के दम,
शुभ्र ज्योत्स्ना-सी यह भूमि दमके। 
 
कई सहस्र वर्षों से भारत,
अविचल, अखंड, अशेष खड़ा है। 
कई संस्कृतियों को इस भारत, 
ने अपने हृदय विशाल में जड़ा है। 
 
सृष्टि अनामय शाश्वत,
अनादि, अपरिमेय अतिप्राचीन। 
सब सभ्यताओं का उद्भव,
किंतु हर पल सदा नवीन। 
 
सब धर्मों का पवित्र संगम,
धारित करता भारतवर्ष। 
हर संप्रदाय को पारित,
करता देता नवल उत्कर्ष। 
 
गीता, कुरान, बाइबिल को, 
एक समान मिलता सम्मान। 
हर पंथी को पूरी आजादी,
हर धर्म का मिलता ज्ञान। 
 
सब धर्मों की एक सीख है,
सुखमय मानवता उत्थान। 
राष्ट्रप्रेम की अलख जगाएं,
करें दुष्टता का अवसान। 
 
धर्म, सहिष्णुता, राष्ट्रभक्ति, 
जीवन मूल्यों को कर अवधारित। 
मस्तक को विस्तीर्ण बनाकर,
सद्गुण संग जीवन आचारित। 
 
एक राष्ट्र की परिकल्पनाएं,
हर मन में हो प्रतिकल्पित। 
सांप्रदायिक कलुष मिटे,
नव पल्लव प्रेम के हों संकल्पित। 
 
संविधान अनुरूप चलें हम,
सबको विकास का पथ देवें। 
अंतिम छोर पर खड़े गरीब को,
समग्र विकास का रथ देवें। 
 
भारत का इतिहास,
सहिष्णुता पर है आधारित। 
भारत में सब धर्म हमें,
बनाते हैं संस्कारित। 
 
सब धर्मों को लेकर चलना,
ही भारत की पहचान है। 
राष्ट्र एकता और सहिष्णुता,
भारत का अभिमान है। 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

लाजवाब पत्तागोभी विद ग्रैप्स का सलाद