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बाल गीत 'फल्ली मुनगा की'

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव

झूल रही ऊंचे तरुवर पर,
फल्ली मुनगा की।
 
इसे कहीं कहते हैं सहजन,
और कहीं सोजन।
 
गांवों में तो होता है यह,
मन भावन भोजन।
 
दादी हो या नानी घर की,
सबको यह भाती।
 
इसकी ढेर फल्लियां तरु पर,
दिखतीं, क्या कहने!
 
बैठीं हों बालाएं कानों,
में लटकन पहने।
 
इसकी छबि आंखों में बसकर,
मन को महकाती।
 
शक्कर की बीमारी में भी,
इसको खाते हैं।
 
प्रति ऑक्सी कारक डॉक्टर,
इसे बताते हैं।
 
रक्त चाप कम करने में यह,
बहुत काम आती।
 
कभी दाल में इसे पकाकर,
चूसा जाता है।
 
नमक मिर्च संग खाओ तो मन,
खुश हो जाता है।
 
यह फल्ली कमजोरों की तो,
है सच्ची साथी।
 
बनती अगर कढ़ी इसकी तो,
मन ललचाता है।
 
सारा ही घर चटकारे ले,
लेकर खाता है।
 
पोता मज़े-मज़े से खाता,
खाता है नाती।

(वेबदुनिया पर दिए किसी भी कंटेट के प्रकाशन के लिए लेखक/वेबदुनिया की अनुमति/स्वीकृति आवश्यक है, इसके बिना रचनाओं/लेखों का उपयोग वर्जित है...)

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