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करवा चौथ ही नहीं और भी हैं पति-पत्नी के संबंधों से जुड़े हिन्दू त्योहार

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अनिरुद्ध जोशी

हिन्दुओं के अधिकतर त्योहार मौसम, सेहत और संबंधों पर आधारित हैं, इनके पीछे जहां एक मनोवैज्ञानिक सोच है वहीं विज्ञान भी है। ऐसे ही त्योहारों में कुछ त्योहार संबंधों पर भी आधारित है जैसे कि रक्षा बंधन, भाईदूज, वसंत पंचमी, संतान सप्तमी आदि। उसी तरह कुछ त्योहार पति और पत्नी के रिश्तों को मजबूत बनाने के लिए भी हैं। आओ जानते हैं ऐसा कौन से त्योहार हैं।
 
 
1.करवा चौथ : 
कार्तिक कृष्ण चतुर्थी को मनाया जाने वाला करवा चौथ का व्रत पति और पत्नी के संबंध पर आधारित है। करवा चौथ के व्रत संबंध में कई लोककथाएं प्रचलित हैं। शंकरजी ने माता पार्वती को करवा चौथ का व्रत बतलाया। इस व्रत को करने से स्त्रियां अपने सुहाग की रक्षा हर आने वाले संकट से उसे बचा सकती हैं। इस व्रत को द्रोपदी ने पांडु पुत्र अर्जुन के लिए तब किया था जब वे तपस्या करने नीलगिरी नामक पर्वत पर चले गए थे। अत: यह व्रत परंपरा तभी से चली आ रही है। इस व्रत परंपरा का प्रचलन उत्तर भारत में अधिक है।
 
 
2.हड़तालीका व्रत : 
यह व्रत श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हस्त नक्षत्र के दिन होता है। इस दिन कुमारी और सौभाग्यवती स्त्रियां गौरी-शंकर की पूजा करती हैं। मान्यता अनुसार इस व्रत को कुमारी लड़कियां करती है तो उन्हें उत्तम वर की प्राप्ति होती है, जबकि सौभाग्यवती स्त्रियां करती हैं तो उनके पति की उम्र बढ़ती है।
 
 
दरअसल, भगवान शिव और पार्वती के पुर्नमिलाप के उपलक्ष्य में मनाए जाने वाले इस त्योहार के बारे में मान्यता है कि मां पार्वती ने 107 जन्म लिए थे, भगवान शंकर को पति के रूप में पाने के लिए।  अंततः मां पार्वती के कठोर तप और उनके 108वें जन्म में भगवान ने पार्वती जी को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया। तभी से ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने से मां पार्वती प्रसन्न होकर पतियों को दीर्घायु होने का आशीर्वाद देती हैं।
 
 
3.वट सावित्री : 
सुहागिन महिलाओं द्वारा हर साल ज्येष्ठ मास की अमावस्या को वट सावित्री व्रत रखा जाता है। वट वृक्ष का पूजन और सावित्री-सत्यवान की कथा का स्मरण करने के विधान के कारण ही यह व्रत वट सावित्री के नाम से प्रसिद्घ हुआ। इस व्रत में महिलाएं वट वृक्ष की पूजा करती हैं, सती सावित्री की कथा सुनने व वाचन करने से सौभाग्यवती महिलाओं की अखंड सौभाग्य की कामना पूरी होती है। इस व्रत को सभी प्रकार की स्त्रियां (कुमारी, विवाहिता, विधवा, कुपुत्रा, सुपुत्रा आदि) इसे करती हैं। इस व्रत को स्त्रियां अखंड सौभाग्यवती रहने की मंगलकामना से करती हैं।
 
 
पुराणों में यह स्पष्ट किया गया है कि वट में ब्रह्मा, विष्णु व महेश तीनों का वास है। मान्यता अनुसार इस व्रत को करने से पति की अकाल मृत्यु टल जाती है। वट अर्थात बरगद का वृक्ष आपकी हर तरह की मन्नत को पूर्ण करने की क्षमता रखता है। दार्शनिक दृष्टि से देखें तो वट वृक्ष दीर्घायु व अमरत्व के बोध के नाते भी स्वीकार किया जाता है। धार्मिक मान्यता है कि वट वृक्ष की पूजा लंबी आयु, सुख-समृद्घि और अखंड सौभाग्य देने के साथ ही हर तरह के कलह और संताप मिटाने वाली होती है।
 
 
4.मंगला गौरी व्रत : 
श्रावण माह के हर मंगलवार को मनने वाले इस व्रत को मंगला गौरी व्रत (पार्वतीजी) नाम से ही जाना जाता है। धार्मिक पुराणों के अनुसार इस व्रत को करने से सुहागिन महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। अत: इस दिन माता मंगला गौरी का पूजन करके मंगला गौरी की कथा सुनना फलादायी होता है।
 
 
ज्योतिषीयों के अनुसार जिन युवतियों और महिलाओं की कुंडली में वैवाहिक जीवन में कमी महसूस होती है अथवा शादी के बाद पति से अलग होने या तलाक हो जाने जैसे अशुभ योग निर्मित हो रहे हो, तो उन महिलाओं के लिए मंगला गौरी व्रत विशेष रूप से फलदायी है। अत: ऐसी महिलाओं को सोलह सोमवार के साथ-साथ मंगला गौरी का व्रत अवश्य रखना चाहिए।
 

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