Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

जर्मनी क्यों बढ़ाना चाहता है भारत के साथ साझेदारी?

हमें फॉलो करें जर्मनी क्यों बढ़ाना चाहता है भारत के साथ साझेदारी?
webdunia

राम यादव

Indo German Defence Talks: भारत और जर्मनी के बीच कोई सैन्य सहयोग अब तक नहीं के बराबर ही रहा है। लेकिन, यूक्रेन पर रूस के आक्रमण, रूस और चीन के बीच की निकटता और चीन की बढ़ती सैन्य शक्ति से, यूरोप में विशेषकर जर्मनी को भारत के साथ रक्षा साझेदारी बढ़ाना पहले कभी की अपेक्षा अब कहीं अधिक आकर्षक लगने लगा है।
 
जर्मनी और भारत दो महाद्वीपों पर, एक-दूसरे से क़रीब 7 हज़ार किलोमीटर दूर स्थित देश हैं। दोनों किसी साझे सैन्य गठबंधन में शामिल नहीं हैं। जर्मनी संक्षेप में 'नाटो' कहलाने वाले अमेरिकी नेतृत्व के 'उत्तर अटलांटिक संधि संगठन' का सदस्य देश अवश्य है, पर गुटमुक्तता की नीति पर चलने वाला भारत न तो किसी सैन्य गुट का सदस्य है और न सदस्य बनना चाहता है। इस कारण भी जर्मनी ने भारत से अब तक एक दूरी-सी बना रखी थी।
बर्लिन में हुई बैठक : यूक्रेन के विरुद्ध चल रहा रूस का युद्ध अपने दूसरे साल में जर्मनी को एक ऐसे संकट का रूप लेता लग रहा है, जो उसे भारत के साथ निकटता बढ़ानें का इशारा कर रहा है। फ़रवरी के अंत में, दोनों देशों के रक्षा विभागों के राज्य सचिवों ने जर्मनी की राजधानी बर्लिन में मुलाकात की और उसके दौरान भावी रक्षा सहयोग, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा की स्थिति और इस क्षेत्र में संयुक्त युद्धाभ्यास आदि करने पर चर्चा की। 
 
जून 2023 में, जर्मन रक्षा मंत्री बोरिस पिस्टोरियुस की दिल्ली यात्रा के लगभग 8 महीने बाद, बर्लिन में हुई इस बैठक के दौरान दोनों पक्षों ने घनिष्ठ रक्षा सहयोग की अवश्यकता को रेखांकित किया। इस बैठक पर टिप्पणी करते हुए भारत में जर्मनी के राजदूत फिलिप अकरमान ने एक समाचारपत्र से कहा कि यह 'एक पहला बड़ा बदलाव' है। उन्होंने माना कि भारत की तरफ हाथ हाथ बढ़ाने से 'हम बहुत झिझकते थे'। लेकिन 'अब जर्मनी में साइबर सुरक्षा जैसे नए विषयों सहित सैन्य यात्राओं, साझे सैन्य अभ्यासों और (सैन्य सामग्रियों के) सह-उत्पादन सहित भारत के साथ रक्षा सहयोग को बढ़ाने की स्पष्ट राजनीतिक इच्छाशक्ति है।'  
अगस्त में होगा वायुसैनिक युद्धाभ्यास : जर्मन वायु सेना, फ्रांस और अमेरिका की वायु सेनाओं के साथ, इस साल अगस्त में भारतीय वायु सेना द्वारा आयोजित बहुपक्षीय अभ्यास में भाग लेगी। अक्टूबर में, जर्मन नौसेना का एक फ्रिगेट और एक अन्य जहाज भारत में गोवा का दौरा करेगा। 
 
पर्यवेक्षकों का कहना है कि जर्मनी, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत को अब अपने एक स्वाभाविक सहयोगी के रूप में देखने लगा है। नई दिल्ली के प्रति बर्लिन के रवैये में बदलाव को यूक्रेन के खिलाफ रूस के युद्ध और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के सैन्य दबाव से बढ़ावा मिल रहा है। भारत भी रूसी हथियारों पर अपनी दशकों पुरानी निर्भरता को कम करना और अपने हथियारों की खरीद को और अधिक विविधता प्रदान करना चाहता है। 
 
जर्मनी ने ही दूरी बना रखी थी : अब तक स्थिति यह थी कि जर्मनी की रक्षानीति यूरोपीय संघ और अमेरिकी नेतृत्व वाले नाटों की उसकी सदस्य़ता पर ही केंद्रित एवं सीमित थी। रक्षा सामग्रियों के मामले में भारत भी मुख्य रूप से रूस, फ्रांस और इसराइल पर निर्भर था। भारत और जर्मनी एक-दूसरे से काफी दूर रहे हैं। इसका एक ही अपवाद तब देखने में आया था, जब भारत नें 1980 के दशक के अंत में जर्मनी से 4 पनडुब्बियां खरीदी थीं।
 
पिछले साल जून में जर्मन रक्षा मंत्री बोरिस पिस्टोरियुस की भारत यात्रा ने द्विपक्षीय रक्षा साझेदारी को नई गति प्रदान की। पिस्टोरियुस 2015 के बाद भारत का दौरा करने वाले पहले जर्मन रक्षा मंत्री थे। उन्होंने भारत को ऑस्ट्रेलिया या जापान जैसा ही रणनीतिक साझेदार मानकर उसके साथ रक्षा सहयोग और हथियारों के सौदे को सुविधाजनक बनाने की वकालत की।
 
रणनीतिक सहयोगी होने का दर्जा : प्रेक्षकों का मानना है कि भारत तो इस तरह के मेल-मिलाप का स्वागत ही करेगा। जर्मन इंजीनियरिंग और जर्मन तकनीक हमेशा से दुनिया में प्रसिद्ध रही है। कमी यह थी कि जर्मनी की प्राथमिकता यूरोपीय संघ और नाटो था। जर्मनी के कानून ऐसे देशों को हथियारों के निर्यात पर रोक-टोक लगाते हैं, जो यूरोपीय संघ या नाटों के सदस्य नहीं हैं। इस नीति का अपवाद हैं जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे उसके कुछेक गिने-चुने मनपंसद देश। किंतु जर्मनी अब भारत को भी जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसा ही रणनीतिक सहयोगी देश होने का दर्जा देने की सोच रहा है, ताकि भारत को भी उच्च कोटि के सैन्य उपकरण बेचे जा सकें।
जर्मन रक्षा मंत्री बोरिस पिस्टोरियुस की पिछले वर्ष की भारत यात्रा के दौरान, जर्मन और भारतीय कंपनियों ने छह अत्याधुनिक डीजल-इलेक्ट्रिक स्टील्थ पनडुब्बियों के निर्माण संबंधी एक समझौते के ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए। इससे संबंधित सरकारी समझौते पर बातचीत अभी भी जारी है। भारत के सामने स्पेन का भी एक ऐसा ही प्रस्ताव मेज़ पर है। भारत जो 6 पनडुब्बियां चाहता है, उनकी लागत पांच अरब यूरो से अधिक बतायी जा रही है। जर्मनी के सहयोग से वे भारत में ही बनेंगी।
 
अगस्त में होगा वायुसैनिक युद्धाभ्यास : भारत इस समय दुनिया में सैन्य उपकरणों का सबसे बड़ा आयातक है और जर्मनी सबसे बड़े निर्यातकों में से एक है। भारत को इस समय आधुनिकीकरण की और अपने हथियारों में विविधता लाने की जरूरत है। वह अतिरिक्त प्रौद्योगिकी की तलाश में भी है। भारत और जर्मनी बहुपक्षीय सैन्य अभ्यासों में भाग लेने के अलावा इस वर्ष अगस्त में होने वाले बहुपक्षीय वायुसैनिक अभ्यासों जैसे ही संयुक्त युद्धाभ्यास भी चाहते हैं। अगस्त में होने वाले अभ्यास में दर्जनों जर्मन विमान भाग लेंगे, जिनमें उसके टॉरनैडो जेट, यूरोफाइटर्स, आकाश में उड़ान के दौरान ही युद्धक विमानों में ईंधन भरने वाले विमान और सैन्य परिवहन विमान शामिल हैं।
 
भारतीय वायु सेना रूसी और पश्चिमी देशों के विमानों का उपयोग करती है। उसके पास रूस के सुखोई और मिग विमान हैं, तो फ्रांस के रफाल और मिराज भी हैं। भारत के अलावा दुनिया में और किसी देश की वायुसेना के पास रूसी और फ्रांसीसी युद्धक विमान एक साथ नहीं मिलेंगे। जर्मनी की वायुसेना इसे अपने लिए एक अतिरिक्त आकषर्ण मानती है। 
 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

Delhi : अरविंद केजरीवाल का जेल से विधायकों के नाम संदेश, पत्नी सुनीता ने पढ़कर सुनाया