संयुक्त राष्ट्र। भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में कहा है कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई , किसी धर्म से टकराव नहीं है और वैश्विक शांति तथा सुरक्षा को सर्वाधिक गंभीर खतरा बनकर उभरी इस चुनौती से निपटने के लिए गहरे वैश्विक सहयोग की जरूरत है।
संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि सैयद अकबरूद्दीन ने कहा कि कोई खास विचारधारा आतंकवादी समूहों के लिए मार्गदर्शक का काम करती है और यह उनकी असली ताकत है। उन्होंने इस बात पर अफसोस जताया कि संकीर्ण हित उन प्रतिबंधों को लागू करने के मार्ग में बाधा पैदा करते हैं जो संभावित आतंकी खतरों को सीमित कर सकते हैं।
'आतंकवाद के विमर्श और उसकी विचारधाराओं से मुकाबला' विषय पर सुरक्षा परिषद में खुली बहस में अकबरूद्दीन ने कहा कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई किसी धर्म से टकराव नहीं है। यह मानवतावादी मूल्यों और बर्बर ताकतों के बीच संघर्ष है। यह एक ऐसी लड़ाई भी है जिसे हमारे मूल्यों की ताकत और धर्मो के वास्तविक संदेशों के जरिए जीता जाना चाहिए।
आतंकवाद को वैश्विक शांति और सुरक्षा के लिए सर्वाधिक गंभीर खतरों में से एक बताते हुए उन्होंने कहा कि आतंकवाद के विमशरे से मुकाबला एक दीर्घकालिक एहतियाती प्रयास है।
उन्होंने इस बात पर भी चिंता जताई कि संकीर्ण हितों ने भी अक्सर अंतरराष्ट्रीय सहयोग के कानूनी प्रारूप को तय करने में रूकावट पैदा की है। इसने उन प्रतिबंधों के प्रभावी क्रियान्वयन को भी बाधित किया है जिनसे संभावित खतरों को रोका जा सकता था।
भारतीय दूत ने इस बात पर भी अफसोस जताया कि सुरक्षा परिषद में सुधार की कोशिश की प्रक्रिया किसी अंजाम तक नहीं पहुंच पा रही है, जबकि विश्व आज ऐसी-ऐसी चुनौतियों का सामना कर रहा है जो 70 साल पहले विश्व निकाय के गठन के समय थी ही नहीं।
उन्होंने जोर देकर कहा कि वैश्विक शासन के ढांचों को वर्तमान खतरों और चुनौतियों से निपटने के लिए प्रतिनिधित्वपूर्ण बनना होगा, अन्यथा संयुक्त राष्ट्र के अप्रांसगिक हो जाने का खतरा है।
अकबरूद्दीन ने कहा कि एक तरफ प्रौद्योगिकी, सोशल मीडिया और फंड के तत्काल हस्तांतरण के अभूतपूर्व लाभ हैं, वहीं इन्हीं चीजों को अब चरमपंथी दुष्प्रचार, चरमपंथी विचाराओं के प्रसार, राष्ट्रीय सीमाओं से परे भर्ती तथा आतंकी नेटवर्कों के विस्तार के लिए, इस्तेमाल किया जा रहा है। (भाषा)