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शिकागो में हुआ था स्वामी विवेकानंद का ऐतिहासिक भाषण

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"उठो, जागो और तब तक मत रूको, जब तक लक्ष्‍य की प्राप्‍ती ना हो जाए।" स्‍वामी विवेकानंद के और भी कई संदेश है जो युवाओं को हर कदम पर आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं। आज भले ही वो इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन उनके सुविचार आज भी दोहराएं जाते हैं। उनके संदेश आज भी लोगों को आगे बढ़ने, कुछ करने की प्रेरणा देते हैं। स्‍वामी विवेकानंद का नाम आते ही स्‍म़ति पटेल पर तेजस्‍वी युवा संन्‍यासी की छवि उभर आती है। मात्र 39 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया था लेकिन इससे पहले वह विश्‍व प्रसिद्ध हो गए थे सिर्फ अपने एक भाषण से। जी हां, 11 सितंबर, 1893 को स्‍वामी विवेकानंद ने अमेरिका के शिकागो शहर में धर्म संसद में प्रसिद्ध भाषण दिया था। जिसमें उन सभी मुद्दों पर प्रकाश डाला था जिससे आज पूरी दुनिया जूझ रही है वो है 'धर्म की लड़ाई'। लेकिन स्‍वामी विवेकानंद जी ने भाषण में क्‍या कहा था उससे बहुत कम लोग परिचति है। ये थे स्‍वामी विवेकानंद के भाषण के अंश - 
 
1.अमरीकी भाइयों और बहनों, आपक इस स्‍नेहपूर्ण स्‍वागत से मेरा दिल भर आया है। इतने हर्ष के साथ मेरा स्वागत किया है उसके लिए दिल से आभार। मैं आपको दुनिया की सबसे पुरानी संत परंपरा की ओर से धन्‍यवाद देता हूं। और सभी धर्मों की जननी की तरफ़ से धन्यवाद देता हूं और सभी जातियों और संप्रदायों के लाखों-करोड़ों हिंदुओं की तरफ़ से आपका आभार व्यक्त करता हूं।
 
2. मैं इस मंच से कुछ उन वक्ताओं को भी धन्यवाद करना चाहता हूं जिन्होंने यह ज़ाहिर किया कि दुनिया में सहिष्णुता का विचार पूरब के देशों से फैला है। 
 
3. मुझे गर्व है कि मैं उस धर्म से हूं जिसने दुनिया को सहन‍शीलता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है। हम सिर्फ़ सार्वभौमिक सहिष्णुता में ही विश्वास नहीं करते बल्कि, हम सभी धर्मों को सत्‍य के रूप में स्वीकार करते हैं।
 
4. मुझे गर्व है कि, 'मैं ऐसे देश से हूं जिसने सभी धर्मों और सभी देशों के सताए गए लोगों को अपने यहां शरण दी।' मुझे यह बताते हुए गर्व है कि, 'हमने अपने ह्दय में इसराइल की वो पवित्र स्‍म़तियां संजोकर रखी हैं, जिनमें धर्मस्थलों को रोमन हमलावरों ने तहस-नहस कर दिया था और तब उन्होंने दक्षिण भारत में शरण ली।' 
 
5. मुझे गर्व है कि, 'मैं एक ऐसे धर्म से हूं जिसने पारसी धर्म के लोगों को शरण दी और अब भी उनकी मदद कर रहे हैं।'
 
6. भाइयों, मैं इस मौके पर वह श्लोक सुनाना चाहगा जो मैंने बचपन से याद किया और जिसे हर रोज़ करोड़ों लोग भी दोहराते हैं. ''जिस तरह अलग-अलग स्‍त्रोतों से निकली नदियां, अंत में समुद्र में जाकर मिलती हैं, ठीक उसी तरह मनुष्य अपनी इच्छा से अलग-अलग राह चुनता है. ये रास्ते देखने में भले ही अलग-अलग होते हैं, लेकिन ये सब ईश्वर तक ही जाते हैं।''
 
7. ये सम्मेलन जो कि आज तक की सबसे पवित्र सभाओं में से है, अपने आप में गीता में कहे गए इस उपदेश इसका प्रमाण है: ''जो भी मुझ तक आता है, चाहे कैसा भी हो, मैं उस तक पहुंचता हूं। लोग चाहे कोई भी रास्ते चुनते हैं, लेकिन आखिर में मुझ तक पहुंचते हैं।''
 
8. सांप्रदायिकता, कट्टरता और इसके भयानक वंशजों के हठधार्मिता ने लंबे समय से इस खूबसूरत पथ्‍वी को जकड़ रखा है। उन्होंने इस पथ्‍वी को हिंसा से भर दिया है और कितनी ही बार यह धरती खून से लाल हुई है। न जाने कितनी सभ्याताएं तबाह हुईं और कितने देश मिटा दिए गए।
 
9. यदि ये ख़ौफ़नाक राक्षस नहीं होते तो मानव समाज कहीं ज़्यादा सक्षम और उन्‍नत होता। लेकिन उनका वक़्त अब पूरा हो चुका है। मुझे उम्मीद है कि इस सम्मेलन का शंखनाद सभी तरह की कट्टरता, हठधर्मिता और दुर्भावनाओं का विनाश करने वाला होगा. चाहे वह तलवार से हो या फिर कलम से।

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