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स्वराज्य आखिरी मंजिल नहीं

हमें फॉलो करें स्वराज्य आखिरी मंजिल नहीं
(1954 में लाल किले की प्राचीर से पं. नेहरू के भाषण का अंश)

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मुबारक हो आपको, नए भारत की सालगिरह को आज सात वर्ष हुए। इस नए भारत को पैदा हुए, हमारी आजादी को सात वर्ष हुए। हम हर साल यहाँ लाल किले की दीवारों के नीचे इस वर्षगाँठ को मनाते हैं, क्योंकि यह सालगिरह हम सबों की है, करोड़ों आदमियों की है, क्योंकि भारत में एक नई जिंदगी शुरू हुई। देश ने नई करवट ली और भारत की तवारीख में भी एक नया अध्याय शुरू हुआ। नया भारत सात वर्ष का एक बच्चा है। इन सात वर्षों में उसने क्या-क्या किया, किस तरह से बढ़ा, किधर देखता है, कहाँ जाएगा? ये बड़े सवाल आपके सामने हैं।

अगर आप अपने दिल को टटोलें तो आप देखेंगे कि हिन्दुस्तान में इस वक्त एक नई जिंदगी है, अपने ऊपर एक नया भरोसा है और हिन्दुस्तान के हजारों और लाखों देहातों में बिजली की तरह एक नया असर पैदा हुआ है। पुराने सोए हुए लोग जागे हैं। जो पुराने थे, जो जाहिल थे, वे भी काम कर रहे हैं और उनका शरीर और दिलो-दिमाग एक नई तरफ झुके हैं। तो यह आजकल के भारत का वायुमंडल है।

मैं जानता हूँ और आप जानते हैं कि हमारी काफी दिक्कतें हैं। हमारी काफी परेशानियाँ हैं। हमारे काफी बहन-भाई मुसीबत में हैं। लेकिन हम जानते हैं कि हम आप सब मिलकर इस बड़े सफर पर आगे बढ़ रहे हैं। सात वर्ष हुए हमारे मुल्क में आजादी आई। लेकिन स्वराज्य के माने क्या? स्वराज्य की यात्रा सफर की आखिरी मंजिल नहीं है। स्वराज्य के आने पर हमें खामोश नहीं बैठना चाहिए।

स्वराज्य आने से, मुल्क आजाद होने से, कोई जिम्मेदारी खत्म नहीं होती। वह तो एक मुल्क की तरक्की का पहला कदम होता है। एक नई यात्रा का कदम होता है। किसी मुल्क की आजादी स्वराज्य से कभी पूरी नहीं होती है और जो एक जिंदादिल कौम होती है, वह रुकती नहीं है।
  मुबारक हो आपको, नए भारत की सालगिरह को आज सात वर्ष हुए। इस नए भारत को पैदा हुए, हमारी आजादी को सात वर्ष हुए। हम हर साल यहाँ लाल किले की दीवारों के नीचे इस वर्षगाँठ को मनाते हैं, क्योंकि यह सालगिरह हम सबों की है।      


वह आगे बढ़ती जाती है। इसलिए हमारा मुल्क जो आजाद हुआ, पूरे तौर से, सियासी तौर से, सिवाए कुछ टुकड़ों के। वे छोटे टुकड़े कभी जरा दर्द पैदा कर देते हैं कभी ख्वामख्वा हमें याद दिलाते हैं उस पुराने जमाने की जबकि वह टुकड़ा और देशों के अधीन था। उन छोटे टुकड़ों से कुछ आपस की कश्मकश और फसाद की आवाजें आती हैं। लेकिन हम सियासी तौर से आजाद हुए और जो छोटे टुकड़े दो-एक रह गए हैं, वे भी यकीनन आजाद होंगे। क्योंकि यह हिन्दुस्तान का इरादा है।

भारत जो इरादा करता है, भारत के करोड़ों आदमी इस इरादे को पूरा करेंगे। लेकिन मैंने आपसे कहा कि हिन्दुस्तान की आजादी कहीं रुकती नहीं, बढ़ती है। आजादी खाली सियासी आजादी नहीं, खाली राजनीतिक आजादी नहीं। स्वराज्य और आजादी के माने और भी हैं, सामाजिक हैं, आर्थिक हैं।

अगर देश में कहीं गरीबी है, तो वहाँ तक आजादी नहीं पहुँची, यानी उनको आजादी नहीं मिली, जिससे वे गरीबी के फंदे में फँसे हैं। जो लोग फंदे में होते हैं, उनके लिए मानो स्वराज्य नहीं होता। वैसे वे गरीबी के फंदे में हैं। जो लोग गरीबी और दरिद्रता के शिकार हैं, वे पूरी तौर से आजाद नहीं हुए। उनको आजाद करना है। इसी तरह अगर हम आपस के झगड़ों में फँसे हुए हैं, आपस में बैर है, बीच में दीवारें हैं, हम एक-दूसरे से मिलकर नहीं रहते, तब भी हम पूरे तौर से आजाद नहीं हुए।

अगर हिन्दुस्तान को पूरे तौर से आजाद होना है, तो हमें बहुत कुछ बातें करनी हैं। हिन्दुस्तान को अपने उन करोड़ों आदमियों की बेरोजगारी दूर करनी है, गरीबी दूर करनी है। और याद रखिए हमारे बीच जो दीवारें हैं, मजहब के नाम से, जाति के नाम से या किसी प्रांत, सूबे या प्रदेश के नाम से, उन्हें भी दूर करना है। और जो एक-दूसरे के खिलाफ हमें जोश चढ़ता है, उससे जाहिर होता है कि हमारे दिल और दिमाग पूरी तौर से आजाद नहीं हुए हैं, चाहे ऊपर से नक्शा कितना ही बदल जाए।

इसी तरह की कई बातों से हमारी तंगख्याली जाहिर होती है। अगर हिन्दुस्तान के किसी गाँव में किसी हिन्दुस्तानी को चाहे वह किसी भी जाति का है, या अगर उसको हम चमार कहें, हरिजन कहें, अगर उसको खाने-पीने में, रहने-चलने में वहाँ कोई रुकावट है, तो वह गाँव अभी आजाद नहीं है, गिरा हुआ है।

हमें इस देश के एक-एक आदमी को आजाद करना है। देश की आजादी कुछ लोगों की खुशहाली से नहीं देखी जाती। देश की आजादी आम लोगों के रहन-सहन, आम लोगों को तरक्की का, बढ़ने का, क्या मौका मिलता है, आम लोगों को क्या तकलीफ और क्या आराम है, इन बातों से देखी जाती है। तो हम अभी आजादी के रास्ते पर हैं, यह न समझिए कि मंजिल पूरी हो गई। और वह मंजिल एक जिंदादिल देश के लिए जो आगे बढ़ती जाती है, अभी पूरी नहीं हुई।

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