Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia

आज के शुभ मुहूर्त

(दशमी तिथि)
  • तिथि- वैशाख कृष्ण दशमी
  • शुभ समय- 7:30 से 10:45, 12:20 से 2:00 तक
  • व्रत/मुहूर्त-भद्रा, प्रेस स्वतंत्रता दिवस
  • राहुकाल-प्रात: 10:30 से 12:00 बजे तक
webdunia
Advertiesment

शबरी माता के बारे में 5 रोचक जानकारी

हमें फॉलो करें mata shabari jayanti

WD Feature Desk

, शनिवार, 2 मार्च 2024 (18:14 IST)
Shabari jayanti 2024 : फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी को शबरी जयंती मनाई जाती है। इस बार 3 मार्च 2024 रविवार के दिन उनकी जयंती है। वाल्मीकि रामायण में प्रसंग आता है कि भगवान श्रीराम ने शबरी के झूठे बैर खाएं थे। शबरी का भक्ति साहित्य में एक विशिष्ट स्थान है। उन्होंने कई भजन लिखे हैं। आओ जानते हैं मां शबरी के बारे में 5 रोचक जानकारी।
1. माता शबरी कौंन थी, जाने उनकी कहानी:- 
पौराणिक संदर्भों के अनुसार शबरी जाति से भीलनी थीं और उनका नाम श्रमणा था। शबरी के पिता भीलों के मुखिया थे। श्रमणा का विवाह एक भील कुमार से तय हुआ था, विवाह से पहले कई सौ पशु बलि के लिए लाए गए। जिन्हें देख श्रमणा बड़ी आहत हुई.... यह कैसी परंपरा? ना जाने कितने बेजुबान और निर्दोष जानवरों की हत्या की जाएगी... इस कारण शबरी विवाह से 1 दिन पूर्व भाग गई और दंडकारण्य वन में पहुंच गई।
 
दंडकारण्य में मातंग ऋषि तपस्या किया करते थे, श्रमणा उनकी सेवा तो करना चाहती थी पर वह भील जाति की होने के कारण उसे अवसर ना मिलाने का अंदेशा था। फिर भी शाबर सुबह-सुबह ऋषियों के उठने से पहले उनके आश्रम से नदी तक का रास्ता साफ़ कर देती थीं, कांटे चुनकर रास्ते में साफ बालू बिछा देती थी। यह सब वे ऐसे करती थीं कि किसी को इसका पता नहीं चलता था। एक दिन ऋषि श्रेष्ठ को शबरी दिख गई और उनके सेवा से अति प्रसन्न हो गए और उन्होंने शबरी को अपने आश्रम में शरण दे दी।
 
जब मतंग का अंत समय आया तो उन्होंने शबरी से कहा कि वे अपने आश्रम में ही भगवान राम की प्रतीक्षा करें, वे उनसे मिलने जरूर आएंगे। मतंग ऋषि की मौत के बात शबरी का समय भगवान राम की प्रतीक्षा में बीतने लगा, वह अपना आश्रम एकदम साफ़ रखती थीं। रोज राम के लिए मीठे बेर तोड़कर लाती थी। बेर में कीड़े न हों और वह खट्टा न हो इसके लिए वह एक-एक बेर चखकर तोड़ती थी। ऐसा करते-करते कई साल बीत गए।
 
2. शबरी की कुटिया कहां थी?
शबरी का आश्रम छत्तीसगढ़ के शिवरीनारायण में महानदी, जोंक और शिवनाथ नदी के तट पर स्थित है। कुछ लोग मानते हैं कि कर्नाटक में पंपा सरोवर के पास स्थित मतंग ऋषि के आश्रम में एक कुटिया है जो कि उनका आश्रम है। हालांकि उनकी कुटिया मातंग ऋषि के आश्रम में थी और मातंग ऋषि का आश्रम कर्नाटक में पंपा सरोवार के पास ही था।
रामदुर्ग से 14 किलोमीटर उत्तर में गुन्नगा गांव के पास सुरेबान नाम का वन है जिसे शबरीवन का ही अपभ्रंश माना जाता है। आश्रम के आसपास बेरी वन है। यहां शबरी मां की पूजा वन शंकरी, आदि शक्ति तथा शाकम्भरी देवी के रूप में की जाती है। यहीं श्रीराम व शबरी की भेंट हुई थी। पम्पासरोवर हनुमान हल्ली ऋष्यमूक पर्वत चिंता मणि किष्कंधा द्वार प्रस्रवण पर्वत फटिक शिला सभी किष्किंधा में है इनमें आपसी दूरी अधिक नहीं है ये स्थल बिलारी तथा कोपल दो जिलों में आते हैं बीच में तुंगभद्रा नदी है।
webdunia
shabari jayanti
3. माता शबरी और श्रीराम : एक दिन शबरी को पता चला कि दो सुंदर युवक उन्हें ढूंढ रहे हैं, वे समझ गईं कि उनके प्रभु राम आ गए हैं.. .. उस समय तक वह वृद्ध हो चली थीं, लेकिन राम के आने की खबर सुनते ही उसमें चुस्ती आ गई और वह भागती हुई अपने राम के पास पहुंची और उन्हें घर लेकर आई और उनके पांव धोकर बैठाया। अपने तोड़े हुए मीठे बेर राम को दिए राम ने बड़े प्रेम से वे बेर खाए और लक्ष्मण को भी खाने को कहा। लक्ष्मण को जूठे बेर खाने में संकोच हो रहा था, राम का मन रखने के लिए उन्होंने बेर उठा तो लिए लेकिन खाए नहीं। इसका परिणाम यह हुआ कि राम-रावण युद्ध में जब शक्ति बाण का प्रयोग किया गया तो वे मूर्छित हो गए थे, तब इन्हीं बेर की बनी हुई संजीवनी बूटी उनके काम आयी थी।
  
4. शबरी का मंदिर : केरल का प्रसिद्ध 'सबरिमलय मंदिर' तीर्थ नदी के तट पर स्थित है। भारत के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है विश्‍व प्रसिद्ध सबरीमाला का मंदिर। यहां हर दिन लाखों लोग दर्शन करने के लिए आते हैं। यह मंदिर भगवान अयप्पा को समर्पित है जो भगवान शिव और मोहिनी के पुत्र हैं।
 
5. शबरी माता का मोक्ष : रामायण के अरण्यकांड में उल्लेख मिलता है कि शबरी के देह त्यागने के बाद राम और लक्ष्मण ने उनका अंतिम संस्कार किया और फिर वे पंपा सरोवर की ओर निकल पड़े।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

03 मार्च 2024 : आपका जन्मदिन