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मैं अब खाली हो गया हूं, बिल्कुल खाली

- दिलीप मंडल

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भारतीय सूचना सेवा की वरिष्ठ अधिकारी और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के प्रकाशन विभाग में संपादक रहीं अनुराधा मंडल अब हमारे बीच नहीं हैं। कैंसर से ग्रस्त अनुराधा जी का 14 जून को निधन हो गया। उनके सबसे अच्छे दोस्त और पति दिलीप मंडल ने अपने जज्बातों को कुछ इस तरह साझा किया है

अब मैं अपनी सबसे प्रिय दोस्त के लिए पानी नहीं उबालता। उसके साथ में बिथोवन की सिंफनी नहीं सुनता। मोजार्ट को भी नहीं सुनाता। उसे ऑक्सीजन मास्क नहीं लगाता। उसे नेबुलाइज नहीं करता। उसे नहलाता नहीं। उसके बालों में कंघी नहीं करता। उसे पॉल रॉबसन के ओल्ड मैन रिवर और कर्ली हेडेड बेबी जैसे गाने नहीं सुनाता। गीता दत्त के गाने भी नहीं सुनाता। उसे नित्य कर्म नहीं कराता। उसे कपड़े नहीं पहनाता। उसे ह्वील चेयर पर नहीं घुमाता। उसे अपनी गोद में नहीं सुलाता। उसे हॉस्पीटल नहीं ले जाता। उसे हर घंटे कुछ खिलाने या पिलाने की अक्सर असफल और कभी-कभी सफल होने वाली कोशिशें भी अब मैं नहीं करता। उसकी खांसने की हर आवाज पर उठ बैठने की जरूरत अब नहीं रही। मैं अब उसका बल्ड प्रेशर चेक नहीं करता। उसे पल्स ऑक्सीमीटर और थर्मामीटर लगाने की भी जरूरत नहीं रही। मेरे पास अब कोई काम नहीं है। हर दिन नारियल पानी लाना नहीं है। फ्रेश जूस बनाना नहीं है। उसके लिए हर दिन लिम्फाप्रेस मशीन लगाने की जरूरत भी खत्म हुई।

यह सब करने में और उसके के साथ खड़े होने के लिए हमेशा जितने लोगों की जरूरत थी, उससे ज्यादा लोग मौजूद रहे। उसकी बहन गीता राव, मेरी बहन कल्याणी माझी और उसकी भाभी पद्मा राव से सीखना चाहिए कि ऐसे समय में अपने जीवन को कैसे किसी की जरूरत के मुताबिक ढाल लेना चाहिए। इस लिस्ट में मेरे बेट अरिंदम को छोड़कर आम तौर पर सिर्फ औरतें क्यों हैं? देश भर में फैली उसकी दोस्त मंडली ने इस मौके पर निजी प्राथमिकताओं को कई बार पीछे रख दिया।

यह अनुराधा के बारे में है, जो हमेशा और हर जगह, हर हाल में सिर्फ आर. अनुराधा थी। अनुराधा मंडल वह कभी नहीं थी। ठीक उसी तरह जैसे मैं कभी आर. दिलीप नहीं था। फेसबुक पर पता नहीं किस गलती या बेख्याली से यह अनुराधा मंडल नाम आ गया। अपनी स्वतंत्र सत्ता के लिए बला की हद तक जिद्दी आर. अनुराधा को अनुराधा मंडल कहना अन्याय है। ऐसा मत कीजिए।

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कहीं पढ़ा था कि कुछ मौत चिड़िया के पंख की तरह हल्की होती है और कुछ मौत पहाड़ से भारी। अनुराधा की मृत्यु पर सामूहिक शोक का जो दृश्य लोदी रोड, शवदाह गृह और अन्यत्र दिखा, उससे यह तो स्पष्ट है कि अनुराधा ने हजारों लोगों के जीवन को सकारात्मक तरीके से छुआ था। वे कई तरह के लोग थे। वे कैंसर के मरीज थे जिनकी काउंसलिंग अनुराधा ने की थी, कैंसर मरीजों के रिश्तेदार थे, अनुराधा के सहकर्मी थे, सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता थे, प्रोफेसर थे, पत्रकार, डॉक्टर, अन्य प्रोफेशनल, पड़ोसी और रिश्तेदार थे। कुछ तो वहां ऐसे भी थे, जो क्यों थे, इसकी जानकारी मुझे नहीं है। लेकिन वे अनुराधा के लिए दुखी थे। किसी महानगर में किसी की मौत को आप इस बात से भी आंक सकते हैं कि उससे कितने लोग दुखी हुए। यहां किसी के पास दुखी होने के लिए फालतू का समय नहीं है।

अनुराधा बनना कोई बड़ी बात नहीं है।

आप भी आर. अनुराधा हैं। अगर आप अपनी जानलेवा बीमारी को अपनी ताकत बना लें और अपने जीवन से लोगों को जीने का सलीका बताएं। आप आर. अनुराधा हैं, अगर आपको पता हो कि आपकी मौत के अब कुछ ही हफ्ते या महीने बचे हैं और ऐसे समय में आप पीएचडी के लिए प्रपोजल लिखें और उसके रेफरेंस जुटाने के लिए किताबें खरीदें और जेएनयू जाकर इंटरव्यू भी दे आएं। यह सब तब जबकि आपको पता हो कि आपकी पीएचडी पूरी नहीं होगी। ऐसे समय में अगर आप अपना दूसरा एमए कर लें, यूजीसी नेट परीक्षा निकाल लें और किताबें लिख लें, तो आप आर. अनुराधा हैं।

दरवाजे खड़ी निश्चित मौत से अगर आप ऐसी भिड़ंत कर सकते हैं तो आप हैं आर. अनुराधा।

जब फेफड़ा जवाब दे रहा हो और तब अगर आप कविताएं लिख रहें हैं तो आप बेशक आर. अनुराधा हैं। आप आर. अनुराधा हैं, अगर कैंसर के एडवांस स्टेज में होते हुए भी आप प्रतिभाशाली आदिवासी लड़कियों को लैपटॉप देने के लिए स्कॉलरशिप शुरू करते हैं और रांची जाकर बकायदा लैपटॉप बांट भी आते हैं। अगर आप सुरेंद्र प्रताप सिंह रचना संचयन जैसी मुश्किल किताब लिखने के लिए महीनों लाइब्रेरीज की धूल फांक सकते हैं तो आप आर. अनुराधा हैं।

और हां, अगर आप कार चलाकर मुंबई से दिल्ली दो दिन से कम समय में आ सकते हैं तो आप आर. अनुराधा हैं। थकती हुई हड्डियों के साथ अगर आप टेनिस खेलते हैं और स्वीमिंग करते हैं तो आप हैं आर. अनुराधा। अगर महिला पत्रकारों का करियर के बीच में नौकरी छोड़ देना आपकी चिंताओं में हैं और यह आपके शोध का विषय है तो आप आर. अनुराधा हैं। अपना कष्ट भूल कर अगर कैंसर मरीजों की मदद करने के लिए आप अस्पतालों में उनके साथ समय बिता सकते हैं, उनको इलाज की उलझनों के बारे में समझा सकते हैं, उन मरीजों के लिए ब्लॉग और फेसबुक पेज बना और चला सकते हैं तो आप आर. अनुराधा हैं।

आप में से जो भी अनुराधा को जानता है, उसके लिए अनुराधा का अलग परिचय होगा। उसकी यादें आपके साथ होंगी। उन यादों की सकारात्मकता से ऊर्जा लीजिए।

अलविदा मेरी सबसे प्रिय दोस्त, मेरी मार्गदर्शक।
तुम्हारी मौत पहाड़ से भारी है..।

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