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आज़ादी का तोहफ़ा

- पंकज जोशी

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मोहल्ले में लोग आज़ादी की 62वीं वर्षगाँठ की तैयारी में लगे हुए थे। बीच चौराहे पर चमकता-लहराता तिरंगा गाड़ दिया गया था। शर्माजी भी आज ही के दिन अपने 62 वर्ष पूरे कर रहे थे। उस 15 अगस्त को देश में आज़ादी आई और शर्माजी दुनिया में आए थे। इस बात की उन्हें बड़ी प्रसन्नता थी कि वे भारत के आज़ाद होने पर जन्मे हैं। आज़ाद भारत और उनका उदय साथ-साथ हुआ है। उनकी आँखों ने भारत को इन 62 वर्षों में बड़ा बनते और विकास करते देखा था।

ऐसे विशेष दिन पैदा होने पर घरवालों ने उन्हें ‘आज़ादी का तोहफ़ा’ कह दिया था। शिक्षा-दीक्षा और संस्कार अच्छे मिले। देश-प्रेम और राष्ट्रभावना तो बचपन से ही नस-नस में दौड़ती रही। पर ये सबकुछ अब प्रासंगिक नहीं था। उनके स्वतंत्र विचारों और समाजहित में किए कार्यों ने उनकी नई छवि बना दी थी। मोहल्ले में मौजूद देश के नौजवानों ने उन्हें ‘सनकी, सिरफिरा, आज का गाँधी’ जैसी पदवियाँ दे रखी थीं।

आज चौराहे पर लगे लाउडस्पीकरों से देशप्रेम के गाने निकल रहे थे। तय समय पर कुछ लाल-पीली बत्ती वाले लोग आ गए। उन्होंने तिरंगा लहराया और उत्साह और जोश में 5-10 नारे लगा मारे। बस फिर क्या, स्वतंत्रता, देशप्रेम, राष्ट्रसम्मान की भावना और स्वतंत्रता सैनानियों के बलिदान से लहूलुहान भाषण, कविताएँ, और अन्य कार्यक्रम प्रस्तुत किए गए।

जिसका असर था कि कार्यक्रम समाप्त होते ही पूरा ‘चौराहा तिरंगा’ हो गया। अब सारे झंडे सड़क पर पड़े हुए थे। शर्माजी को पहले तो लगा कि जाकर सब तिरंगों को ससम्मान उठा लें पर फिर अचानक कुछ सोचते हुए कोने में रुक गए।

एक नौजवान चौराहे पर आकर रुका। हवा के चलते एक तिरंगा उसके पैर तक आ गया। शर्माजी को कुछ उम्मीद जागीं, लेकिन लड़के ने इधर-उधर नज़रें घुमाईं और तिरंगा उठाकर अलग उड़ा दिया। उसने मोबाइल निकालकर शायद किसी को कॉल किया था। दो मिनट बाद ही एक सुंदर युवती आई और उसकी गाड़ी पर सवार हो गई। दोनों लड़का-लड़की अपनी-अपनी आज़ादी का उत्सव मनाने के लिए तेज़ गति से निकल गए।

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