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कान फिल्म फेस्टिवल :‍ फिल्म LETO ने बटोरी तारीफ, 3 फेसेस का इंतजार

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प्रज्ञा मिश्रा

कला पर पाबंदी संभव नहीं है, नजरबंदी भी नहीं रोक सकी  फिल्मकारों को 

इस साल कान फिल्म फेस्टिवल में 2 फिल्में ऐसी हैं जिनके डायरेक्टर्स को अपने ही देश में नज़र बंदी में रखा हुआ है। रूस के फिल्म डायरेक्टर किरिल सेरेब्रेनिकोव को उनके ही घर में नज़र बंद रखा गया है। उन पर पैसों के गबन (करीब आठ लाख पाउंड्स) का मामला है जो साबित तो नहीं हुआ है लेकिन किरिल को अगले साल अक्टूबर तक यूं ही रहना होगा। उनके कुछ साथी 2017 से नज़रबंदी में हैं। 
 
किरिल की फिल्म LETO यानी गर्मी का मौसम, इस साल पाम डी'ओर अवार्ड की कॉम्पीटीशन में हैं। फिल्म 1980 के दौर की कहानी है, जब रूस में वेस्टर्न संगीत, यानी रॉक एंड रोल, पहुंच रहा था। और उस दौर के युवा बीटल्स, बॉब डिलन, डेविड बोइ, ब्लॉंडी , लेड जेप्लिन जैसे बैंड को न सिर्फ सुन रहे थे बल्कि खुद का संगीत भी तैयार कर रहे थे। ..ऐसे ही 3 लोगों, माइक, विक्टर और नताशा की कहानी है LETO, . ..संगीत इस कहानी में मुख्य किरदार है लेकिन इसके पीछे इन तीनों के जटिल रिश्तों की कहानी है.... इस फिल्म की स्क्रीनिंग के समय लोगों ने किरिल को छोड़ देने की मांग करते हुए पोस्टर भी दिखाए। किरिल के समर्थन में रूस के कई कलाकार और फिल्म दुनिया के लोग सामने आये हैं। कहा तो यह भी जा रहा है कि किरिल ने रूस की सरकार के खिलाफ जो बयान  दिए हैं, यह उसी का नतीजा है। किरिल ने सभी इल्ज़ामों को गलत बताया है। लेकिन कोर्ट का कोई फैसला नहीं आया है।
 
ईरान के फिल्म डायरेक्टर जफ़र पनाही की फिल्म 3 फेसेस भी कॉम्पीटीशन में है और जफ़र को भी अपना देश छोड़ने की इज़ाज़त नहीं है। पनाही को 2010 से देश छोड़ने की इज़ाज़त नहीं है लेकिन वो फिर भी लगातार फिल्में बना रहे हैं। पनाही की इस से पहले की दो  फिल्म closed curtain, और टैक्सी बर्लिन फिल्म फेस्टिवल में दिखाई गईं है। पनाही 1995 में अपनी पहली फिल्म व्हॉइट बैलून के लिए कान फिल्म फेस्टिवल में कैमरा डी'ओर का अवार्ड भी जीत चुके हैं। 3 फेसेस 13 मई को दिखाई जाएगी। 
ईरान के ही फिल्म डायरेक्टर असग़र फ़रहादी ने अपनी प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि ईरान की सरकार को ज़फर पनाही को कान फिल्म फेस्टिवल में आने की इज़ाज़त देना चाहिए क्योंकि वो यह तो जानते हैं कि लोग उन्हें और उनकी फिल्मों को कितना पसंद करते हैं लेकिन उन्हें देखने की और महसूस करने का हक़ है कि उनकी फिल्म को देखने के बाद लोगों की क्या प्रतिक्रिया थी।  
 
असग़र फ़रहादी ने अमेरिका की नीतियों के खिलाफ अपना विरोध दर्जा कराने के लिए ऑस्कर के समारोह का बहिष्कार किया था। और उनका ऑस्कर अवार्ड बाद में उन तक पहुंचाया गया।
 
सोशल मीडिया पर पनाही ने लिखा है कि मेरी ख्वाहिश है कि मेरी फिल्में ईरान से बाहर दूर दूर तक पहुंचे और इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल्स की मदद से ऐसा मुमकिन है। और इस साल 2 ईरानियन फिल्म डायरेक्टर कान फिल्म फेस्टिवल में मौजूद हैं, और यह साबित करता है कि सरकार कितनी भी पाबंदी लगा ले कला और फिल्मों पर रोक नहीं लगा सकती। 
 
एक और फिल्म है जो लगभग रोक ही दी गई थी लेकिन अब फ्रेंच कोर्ट के दखल के बाद फेस्टिवल में दिखाई जाएगी। इंग्लिश भाषा में बनी फिल्म 'the man who killed don quixote', जो कई देशों के कोप्रोडक्शन से बनी है। यह फिल्म पिछले 29 सालों से बनने की प्रक्रिया में है। फिल्म डायरेक्टर टेरी जिलियम इसे 1989 से बनाने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन हर बार यह फिल्म पैसों की कमी या ऐसे ही कारणों से टलती रही। अब जब आखिरकार यह फिल्म बन कर तैयार है और कान फेस्टिवल में दिखाई जाने वाली है, तो पुराने प्रोडूसर ने फिल्म की रिलीज रोकने के लिए कोर्ट में केस लगा दिया। खैर कोर्ट ने फिल्म को दिखाए जाने की अनुमति दे दी है क्योंकि ऐसा कोई सबूत नहीं मिला जिससे यह साबित हो यह फिल्म नहीं रिलीज किया जाना चाहिए डायरेक्टर टेरी गीलियम को इस फिल्म के तनाव में एक छोटा स्ट्रोक भी हुआ और अब वो अस्पताल से अपने लंदन के घर आ गए हैं और उम्मीद है कोर्ट का यह फैसला उन्हें कुछ सुकून देगा।  
 
आम तौर पर फिल्मों में जो राजनीतिक ड्रामा देखने को मिलता है वो इस साल के फेस्टिवल में फिल्मों से बाहर भी मौजूद है और किसी हद तक यह दुनिया भर के राजनीतिक दृश्य को ही पेश करता है। 


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