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होली रंग, रंगा बरसाना

- कैलाश यादव 'सनातन'

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मीरा के मनभावन माधव, रूक्मा राज किए संग कान्हा,
 
होली रंग रंगा बरसाना, पग-पग राधा पग-पग कान्हा।
 
नीला,पीला, हरा, गुलाबी, सतरंगी अंबर होली का,
 
आओ मिलकर खुशियां बांटें, कष्टों की जल जाए होलिका।
 
जिनकी सजनी छूट गई है, हर होली उनकी बदरंगी,
 
जिनकी सजनी रूठ गई है, होली उन बिछुड़ों की संगी।
 
पग-पग नफरत, पग-पग विषधर,
 
आस्तीन नहीं है जिनकी, उनको भी डस लेते विषधर,
 
आओ मिलकर प्रेमरंग से, सबके मन का जहर बुझाए
 
अमृत भर दें नख से शिख तक, हर चेहरे पर रंगत लाएं,
 
कष्ट मिटाएं मानवता का, आओ गीत फाग के गाएं
 
मिलजुल कर हर चौराहे, रंगों का यह पर्व मनाएं॥
 
कहीं पे राधा,कहीं पे मीरा, कहीं पे रूक्मा मिलती है,
 
होली की है छटा निराली, हमको हर घर मिले हैं कान्हा,
 
मीरा के मनभावन माधव, रूक्मा राज किए संग कान्हा,
 
होली रंग रंगा बरसाना, पग-पग राधा पग-पग कान्हा।
 
होली क्या आती है, मदमस्त हो जाती है, ब्रज-धरनी। ब्रज ललनाएं अंग-प्रत्यंग से मटक-मटक कर, सैनों से चटक-मटक-चटकारे लेती हुई गाने लग जाती हैं - 'ससुर मोय देवर सो लागे।' ब्रज के वैष्णव देवालयों में भी होली उत्सव पूरे माह चलते हैं जिसमें प्राचीन भारतवासियों के मन्मथपूजन, गायन-वादन एवं नृत्य के समस्त फागुन के उत्सव आज भी जीवित हैं।
 
(लेखक ब्रजभाषा के विद्वान और राजस्थान ब्रज भाषा अकादमी के पूर्व अध्यक्ष हैं)

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