Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

होली के रंग हजार

हमें फॉलो करें होली के रंग हजार
holi colour festival 
 

- हरीश सिंह
 
भारत का सबसे प्राचीन और सर्वाधिक लोकप्रिय त्योहार है होली। बसंत ऋतु में मनाया जाने वाला वसंतोत्सव जहाँ कवि, साहित्यकारों और उच्च वर्ग के लिए रिजर्व रहता है, वहीं होलिकोत्सव जनमानस का उत्सव है, त्योहार है, जिसे वे बड़े दिल से, उमंग से, उल्लास से मनाते हैं। फागुन की पूर्णिमा को होली दहन के पश्चात होली का आनंद छोटे से छोटा आदमी, बच्चे और महिलाएँ उठाते हैं।
 
होली के अगले दिन धुलेंडी को पानी में रंग मिलाकर होली खेली जाती है तो रंगपंचमी को सूखा रंग डालने की परंपरा रही है। पुराने समय में धुलेंडी के दिन टेसू के फूलों का रंग और रंगपंचमी को गुलाल डाला जाता था।
 
ब्रज में तो बरसाना और नंदगाँव की होली पूरे भारत में प्रसिद्ध है, जहाँ लठमार होली खेली जाती है। पुरुष, महिलाओं पर रंग फेंकते हैं तो बदले में उन्हें डंडे मिलते हैं। यह डंडों की मार भी पुरुष हँसते-हँसते झेलते हैं तथा जिन्हें डंडे नसीब नहीं होते वे अपने आपको महादुर्भाग्यशाली समझते हैं।
 
प्राचीन 'होली' का यह रूप आज अलग ढंग से देखने में आता है। होलिका दहन के लिए होली का डांडा गाढ़ने के लिए खूब मारामारी होती है। जितने मुहल्ले उतने होली के डांडिए। मुहल्ले में जितने भाई लोग उतने ही अलग-अलग डांडिए। उस पर भी तुर्रा यह कि अपनी-अपनी होली को दहन के पूर्व खूब सजाकर लाउड स्पीकर पर कैसेट लगा देते हैं। ये होली के गीत गाने के बजाय कुछ भी रेंकते रहते हैं। कुछ भी बजाओ मगर बजाओ जोर-जोर से।
 
भारत का सबसे प्राचीन और लोकप्रिय त्योहार है होली। होलिकोत्सव जनमानस का उत्सव है, त्योहार है, जिसे वे बड़े दिल से, उमंग से, उल्लास से मनाते हैं। फागुन की पूर्णिमा को होली दहन के पश्चात होली का आनंद छोटे से छोटा आदमी, बच्चे और महिलाएँ उठाते हैं।      
 
होली के लिए छोटे-छोटे गाँवों में, कस्बों में तो रातो-रात लोगों की लकड़ियाँ चुरा ली जाती हैं तो लोग दुश्मनी भुलाने के बजाय उसकी काष्ठ सामग्री होलिका के हवाले कर प्रसन्न होते हैं। किसी की कुर्सी, तो किसी की चारपाई, तो किसी का दरवाजा ही होली की भेंट यार लोग चढ़वा देते हैं।
 
होलिका दहन के पश्चात धुलेंडी पर जहाँ पानी और रंग का मेल होना चाहिए, वहाँ धुलेंडी का मतलब होली खेलने वाले धूल से लगाकर कीचड़, नाली और गंदे पानी में एक-दूसरे को डालने से लेते हैं। पिसा हुआ पत्थर मिला किरकिरी वाला गुलाल एक-दूसरे के माथे पर ऐसे मलते हैं कि लगता है माथे की लकीर ही मिटा डालेंगे। फुरसती लोग पूरे पाँच दिन रंगपंचमी तक अपने अरमान पूरे करते हैं तो रंगपंचमी को गुलाल रंग के अलावा और जितने भी रंग जैसे सिल्वर पेंट, कालिख, पेस्ट का रंग से अपनी भड़ास निकालते हैं।
 
आम आदमी जहाँ होली खुशी-खुशी खेलता है, वहीं उच्च वर्ग इससे परहेज करने की कोशिश करता है। कुछ अपनी चमड़ी को बदनाम करते हैं कि रंग पड़ने से उन्हें स्किन डिसीज हो जाती है, इसलिए नहीं खेलते हैं। कुछ रंगों से एलर्जी का बहाना बना लेते हैं। कुछ को रंगों से ही चिढ़ होती है तो कुछ तो शायद नहाने से डर लगता है। कुछ लोगों को यह घबराहट रहती है कि साथी लोग कहीं कपड़े न फाड़ दें और बेवजह नंगई पर न उतर आएँ। खूँसट किस्म के बॉस होली पर घर से ही बाहर निकल जाते हैं और दूर-दराज कहीं पिकनिक मनाने चले जाते हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि सालभर का गुस्सा कहीं बाबू लोगों ने निकाल लिया तो वे कहीं के नहीं रहेंगे।
 
प्रेमी-प्रेमिकाओं के लिए होली पर मिलना-जुलना, रंग डालना, अब उत्सुकता, आतुरता या मिलने पर शर्माने का विषय ही नहीं रहा, क्योंकि ये काम तो वे वर्ष में कभी भी वेलेंटाइन डे आदि पर ही कर चुके होते हैं। भीड़ में दोस्तों के बीच रिस्क क्यों ली जाए, क्योंकि दोस्त भी आजकल भरोसे के नहीं रहे। देवर-भाभी के लिए होली संबंधों में मिठास का काम करती थी, मगर देवरानियों ने अपने पतियों की ऐसी चोटी टाइट की है कि वे भाभी से होली खेलने में परहेज करते हैं।
 
होली पर नई फसल का आना दुल्हन की तरह माना जाता था। किसान लोग फसलों के पकने का इंतजार करते थे। गेहूँ, चना, अरहर को होली की ज्वाला में सेंककर खाने का जो आनंद है, वह ईश्वर के प्रसाद का रूप माना जाता है। मगर प्रकृति ने यहाँ भी गड़बड़ कर दी और किसान कभी सूखे की मार झेलते हैं तो कभी ओलावृष्टि की। वे अपनी फसलों को होली में सेंककर नहीं खा पा रहे हैं।

अलबत्ता गाँव का पटवारी और शहर के अधिकारी जरूर खुश है कि इस सूखे में उन्हें सेककर खाने को मिल जाएगा, क्योंकि सरकार ने पूरे इलाके को सूखा प्रभावित घोषित कर दिया है। 
 
प्रेम, प्यार और भाईचारे के त्योहार होली को वर्तमान में अलग अंदाज में लिया जाता है। होली के बहाने आप किसी के साथ बेहूदा मजाक, बद्तमीजी या बदसलूकी कर सकते हैं। होली में एक-दूसरे का विश्वास कुर्बान कर सकते हैं। होली का इंतजार बंधुत्व बढ़ाने के लिए नहीं किया जाता, बल्कि बंधुत्व को मिटाने के लिए कभी भी होली मना ली जाती है, इसीलिए आजकल अपने देश में धर्मांध रेलें जलाकर होली का आनंद ले रहे हैं तो कुछ उनके घर, दुकान जलाकर वोटों की फसल सेंककर अगले चुनाव की तैयारी कर रहे हैं।
 
एक-दूसरे की आस्थाओं के धर्म स्थलों को हवन कुंड बना रहे हैं और जीते जागते, गूंगे-बहरे समाज को उसमें झोंककर खूनी होली खेल रहे हैं। और वो जो कल तक एक-दूसरे को फूटी आँख नहीं सुहाते थे, एक-दूसरे के विरुद्ध चुनाव लड़े अब मुस्कुराकर एक-दूसरे पर गुलाल फेंककर होली का आनंद ले रहे हैं, असल में सरकार बनाने की तैयारी में है। होली के रंग हजार।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi