Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia

आज के शुभ मुहूर्त

(अक्षय तृतीया)
  • तिथि- वैशाख शुक्ल तृतीया
  • शुभ समय- 7:30 से 10:45, 12:20 से 2:00 तक
  • व्रत/मुहूर्त-अक्षय तृतीया, परशुराम जयंती
  • राहुकाल-प्रात: 10:30 से 12:00 बजे तक
webdunia

Satudi Teej 2023: सातुड़ी/कजरी तीज व्रत कैसे करें, जानें महत्व, पूजन सामग्री, शुभ मुहूर्त एवं कथा

हमें फॉलो करें Satudi Teej 2023: सातुड़ी/कजरी तीज व्रत कैसे करें, जानें महत्व, पूजन सामग्री, शुभ मुहूर्त एवं कथा
Kajari Teej 2023 : इस बार शनिवार, 2 सितंबर 2023 को सातुड़ी, कजरी, कजली तथा कज्जली तीज का पर्व मनाया जा रहा है। हिन्दू धर्म में इस तीज का बहुत महत्व है। यह पर्व भाद्रपद कृष्ण की तृतीया तिथि पर मनाया जाता है। 
 
आइए यहां जानते हैं इस व्रत के बारे में विशेष जानकारी- 
 
महत्व : इस दिन यानी सातुड़ी तीज पर सवाया, जैसे सवा किलो या सवा पाव के सत्तू बनाने चाहिए। सत्तू अच्छी तिथि या वार देख कर बनाने चाहिए। मंगलवार और शनिवार को नहीं बनाए जाते हैं। तीज के एक दिन पहले या तीज वाले दिन भी बना सकते हैं। सत्तू को पिंड के रूप जमा लेते है। उस पर सूखे मेवे इलायची और चांदी के वर्क से सजाएं। बीच में लच्छा, एक सुपारी भी लगा सकते हैं।

पूजा के लिए एक छोटा लड्‍डू (तीज माता के लिए) बनाना चाहिए। कलपने के लिए सवा पाव या मोटा लड्‍डू बनना चाहिए व एक लड्‍डू पति के हाथ में झिलाने के लिए बनाना चाहिए। कुंवारी कन्या लड्‍डू अपने भाई को झिलाती है। सत्तू आप अपने सुविधा हिसाब से ज्यादा मात्रा में या कई प्रकार के बना सकते हैं। सत्तू चने, चावल, गेंहू, जौ आदि के बनते हैं। तीज के एक दिन पहले सिर धोकर हाथों व पैरों पर मेहंदी लगानी चाहिए।
 
सातुड़ी तीज पूजन सामग्री : 1 छोटा सातू का लडडू, नीमड़ी, दीपक, केला, अमरुद या सेब, ककड़ी, दूध मिश्रित जल, कच्चा दूध, नीबू, मोती की लड़/नथ के मोती, पूजा की थाली, जल कलश। 
 
सातुड़ी तीज पूजन की तैयारी : मिट्‍टी व गोबर से दीवार के सहारे एक छोटा-सा तालाब बनाकर (घी, गुड़ से पाल बांध कर) नीम वृक्ष की टहनी को रोप देते हैं। तालाब में कच्चा दूध मिश्रित जल भर देते हैं और किनारे पर एक दिया जला कर रख देते हैं। नीबू, ककड़ी, केला, सेब, सातु, रोली, मौली, अक्षत आदि थाली में रख लें। एक छोटे लोटे में कच्चा दूध लें।
 
कजली तीज के शुभ मुहूर्त : 
कजरी तीज : शनिवार, 2 सितंबर 2023 को 
भाद्रपद कृष्ण तृतीया का प्रारंभ- 1 सितंबर 2023 को 11.50 पी एम से शुरू होकर 2 सितंबर, 2023 को 08.49 पी एम पर तृतीया तिथि का समापन होगा। 
 
2 सितंबर : दिन का चौघड़िया
शुभ- 07.35 ए एम से 09.10 ए एम
चर- 12.21 पी एम से 01.56 पी एम
लाभ- 01.56 पी एम से 03.31 पी एम
अमृत- 03.31 पी एम से 05.07 पी एम
 
रात्रि का चौघड़िया
लाभ- 06.42 पी एम से 08.07 पी एम
शुभ- 09.31 पी एम से 10.56 पी एम
अमृत- 10.56 पी एम से 3 सितंबर को 12.21 ए एम तक। 
चर- 12.21 ए एम से 3 सितंबर को 01.46 ए एम तक।
लाभ- 04.35 ए एम से 3 सितंबर को 06.00 ए एम तक।
 
पूजा विधि : 
 
• इस दिन पूरे दिन सिर्फ पानी पीकर उपवास किया जाता है।
• सुबह सूर्य उदय से पहले धमोली की जाती है, इसमें सुबह मिठाई, फल आदि का नाश्ता किया जाता है। सुबह नहा धोकर महिलाएं 16 बार झूला झूलती हैं, उसके बाद ही पानी पीती है।  
• सायंकाल के बाद महिलाएं 16 श्रृंगार कर तीज माता अथवा नीमड़ी माता की पूजा करती हैं। 
• सबसे पहले तीज माता को जल के छींटे दें। 
• रोली के छींटे दें व चावल चढ़ाएं। 
• नीमड़ी माता के पीछे दीवार पर मेहंदी, रोली व काजल की तेरह-तेरह बिंदिया अपनी अंगुली से लगाएं। 
• मेहंदी, रोली की बिंदी अनामिका अंगुली से लगानी चाहिए और काजल की बिंदी तर्जनी अंगुली से लगानी चाहिए। 
• नीमड़ी माता को मौली चढाएं। 
• मेहंदी, काजल और वस्त्र/ओढ़नी चढ़ाएं। 
• दीवार पर लगाई बिंदियों पर भी मेहंदी की सहायता से लच्छा चिपका दें। 
• नीमड़ी को कोई फल, सातु और दक्षिणा चढ़ाएं।
• पूजा के कलश पर रोली से तिलक करें और लच्छा बांधें। 
• किनारे रखे दीपक के प्रकाश में नीबू, ककड़ी, मोती की लड़, नीम की डाली, नाक की नथ, साड़ी का पल्ला, दीपक की लौ, सातु का लड्‍डू आदि का प्रतिबिंब देखें और दिखाई देने पर इस प्रकार बोलना चाहिए 'तलाई में नींबू दीखे, दीखे जैसा ही टूटे' इसी तरह बाकि सभी वस्तुओं के लिए एक-एक करके बोलना चाहिए। 
• इस तरह पूजन करने के बाद सातुड़ी तीज, नीमड़ी माता, श्री गणेश जी की कहानी और लपसी-तपसी की कहानी सुननी चाहिए। 
• रात को चंद्र उदय होने पर चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है। 
• गाय की पूजा- कजली, कजरी, सातुड़ी तीज के दिन गाय की पूजा की जाती है। गाय को रोटी व गुड़ चना खिलाकर महिलाएं अपना व्रत खोलती हैं।
 
कैसे दें चंद्रमा को अर्घ्य, पढ़ें विधि :
 
चंद्रमा को जल के छींटे देकर रोली, मौली, अक्षत चढ़ाएं। फिर चांद को भोग अर्पित करें व चांदी की अंगूठी और आंखें (गेहूं) हाथ में लेकर जल से अर्घ्य देना चाहिए। अर्घ्य देते समय थोड़ा-थोड़ा जल चंद्रमा की मुख की और करके गिराते रहें। चार बार एक ही जगह खड़े हुए घूमें। परिक्रमा लगाएं। अर्घ्य देते समय बोलें, 'सोने की सांकली, मोतियों का हार, चांद ने अरग देता, जीवो वीर भरतार' सत्तू के पिंडे पर तिलक करें व भाई / पति, पुत्र को तिलक करें। पिंडा पति / पुत्र से चांदी के सिक्के से बड़ा करवाएं। यानी जो आपने सत्तू का बड़ा सा केक बनाया है उसे चांदी के सिक्के से पुत्र या पति को तोड़ने के लिए कहें। इस क्रिया को पिंडा पासना कहते हैं। 
 
पति पिंडे में से सात छोटे टुकड़े करते हैं, व्रत खोलने के लिए यही आपको सबसे पहले खाना है। पति बाहर हो तो सास या ननद पिंडा तोड़ सकती है। सातु पर ब्लाउज, रुपए रखकर बयाना निकाल कर सासुजी के चरण स्पर्श कर कर उन्हें देना चाहिए। सास न हो तो ननद को या ब्राह्मणी को दे सकते हैं।

आंकड़े के पत्ते पर सातु खाएं और अंत में आंकड़े के पत्ते के दोने में सात बार कच्चा दूध लेकर पिएं इसी तरह सात बार पानी पिएं। दूध पीकर इस प्रकार बोलें- 'दूध से धायी, सुहाग से कोनी धायी, इसी प्रकार पानी पीकर बोलते हैं- पानी से धायी, सुहाग से कोनी धायी' सुहाग से कोनी धायी का अर्थ है पति का साथ हमेशा चाहिए, उससे जी नहीं भरता। बाद में दोने के चार टुकड़े करके चारों दिशाओं में फेंक देना चाहिए। 
 
नोट : इस व्रत में गर्भवती स्त्री फलाहार कर सकती हैं। यह व्रत सिर्फ पानी पीकर किया जाता है। चांद उदय होते नहीं दिख पाए तो चांद निकलने का समय टालकर आसमान की ओर अर्घ्य देकर व्रत खोल सकते हैं। इस तरह तीज माता की पूजा संपन्न होती है।
 
सातुड़ी तीज, कजरी तीज, कजली तीज, बड़ी तीज के दिन जरूर पढ़ें यह पौराणिक व्रतकथा : 
 
कथा स एक साहूकार था उसके सात बेटे थे। उसका सबसे छोटा बेटा अपाहिज था। वह रोजाना एक वेश्या के पास जाता था। उसकी पत्नी बहुत पतिव्रता थी। खुद उसे कंधे पर बैठा कर वेश्या के यहां ले जाती थी। बहुत गरीब थी। जेठानियों के पास काम करके अपना गुजारा करती थी।
 
भाद्रपद के महीने में कजली तीज के दिन सभी ने तीज माता के व्रत और पूजा के लिए सातु बनाए। छोटी बहु गरीब थी उसकी सास ने उसके लिए भी एक सातु का छोटा पिंडा बनाया। शाम को पूजा करके जैसे ही वो सत्तू पासने लगी उसका पति बोला मुझे वेश्या के यहां छोड़ कर आ।
 
हर दिन की तरह उस दिन भी वह पति को कंधे पैर बैठा कर छोड़ने गई, लेकिन वो बोलना भूल गया, 'तुम जाओ।' वह बाहर ही उसका इंतजार करने लगी इतने में जोर से वर्षा आने लगी और बरसाती नदी में पानी बहने लगा। कुछ देर बाद नदी से आवाज आई... आवतारी जावतारी दोना खोल के पी, पिया प्यारी होय..., आवाज़ सुनकर उसने नदी की तरफ देखा तो दूध का दोना नदी में तैरता हुआ आता दिखाई दिया। उसने दोना उठाया और सात बार उसे पी कर दोने के चार टुकड़े किए और चारों दिशाओं में फेंक दिए।
 
उधर तीज माता की कृपा से वेश्या अपना सारा धन उसके पति को वापस देकर सदा के लिए वहां से चली गई। पति ने सारा धन लेकर घर आकर पत्नी को आवाज दी- दरवाज़ा खोल..., तो उसकी पत्नी ने कहा मैं दरवाज़ा नहीं खोलूंगी। तब उसने कहा कि अब मैं वापस नहीं जाऊंगा। दोनों मिलकर सातु पासेगें।
 
लेकिन उसकी पत्नी को विश्वास नहीं हुआ, उसने कहा मुझे वचन दो वापस वेश्या के पास नहीं जाओगे। पति ने पत्नी को वचन दिया तो उसने दरवाजा खोला और देखा उसका पति गहनों और धन माल सहित खड़ा था। उसने सारे गहने कपड़े अपनी पत्नी को दे दिए। फिर दोनों ने बैठकर सातु पासा।
 
सुबह जब जेठानी के यहां काम करने नहीं गई तो बच्चे बुलाने आए, काकी चलो सारा काम पड़ा है। उसने कहा अब तो मुझ पर तीज माता की पूरी कृपा है अब मैं काम करने नहीं आऊंगी। बच्चों ने जाकर मां को बताया, आज से काकी काम करने नहीं आएगी उन पर तीज माता की कृपा हुई है, वह नए-नए कपड़े गहने पहन कर बैठी हैं और काका जी भी घर पर बैठे हैं। सभी लोग बहुत खुश हुए। हे तीज माता !!! जैसे आप उस पर प्रसन्न हुई वैसे ही सब पर प्रसन्न होना, सब के दुःख दूर करना।
 
हर व्रत कथा के साथ पढ़ी और सुनी जाती है लपसी-तपसी की यह कथा : 
 
एक पौराणिक लोककथा के अनुसार एक लपसी था, एक तपसी था। तपसी हमेशा भगवान की तपस्या में लीन रहता था। लपसी रोजाना सवा सेर की लापसी बनाकर भगवान का भोग लगा कर जीम लेता था। 
 
एक दिन दोनों लड़ने लगे। तपसी बोला मैं रोज भगवान की तपस्या करता हूं इसलिए मै बड़ा हूं। लपसी बोला मैं रोज भगवान को सवा सेर लापसी का भोग लगाता हूं इसलिए मैं बड़ा। नारद जी वहां से गुजर रहे थे। दोनों को लड़ता देखकर उनसे पूछा कि तुम क्यों लड़ रहे हो? तपसी ने खुद के बड़ा होने का कारण बताया और लपसी ने अपना कारण बताया।
 
नारद जी बोले तुम्हारा फैसला मैं कर दूंगा। दूसरे दिन लपसी और तपसी नहा कर अपनी रोज की भक्ति करने आए तो नारद जी ने छुप कर सवा करोड़ की एक-एक अंगूठी उन दोनों के आगे रख दी। तपसी की नजर जब अंगूठी पर पड़ी तो उसने चुपचाप अंगूठी उठा कर अपने नीचे दबा ली। लपसी की नजर अंगूठी पर पड़ी लेकिन उसने ध्यान नहीं दिया भगवान को भोग लगाकर लापसी खाने लगा।
 
नारद जी सामने आए तो दोनों ने पूछा कि कौन बड़ा? तो नारद जी ने तपसी से खड़ा होने को कहा। वो खड़ा हुआ तो उसके नीचे दबी अंगूठी दिखाई पड़ी। नारद जी ने तपसी से कहा, तपस्या करने के बाद भी तुम्हारी चोरी करने की आदत नहीं गई। इसलिए लपसी बड़ा है। और तुम्हें तुम्हारी तपस्या का कोई फल भी नहीं मिलेगा। तपसी शर्मिंदा होकर माफी मांगने लगा।
 
उसने नारद जी से पूछा मुझे मेरी तपस्या का फल कैसे मिलेगा? नारद जी ने कहा यदि कोई गाय और कुत्ते की रोटी नहीं बनाएगा तो फल तुझे मिलेगा। यदि कोई ब्राह्मण को भोजन करवा कर दक्षिणा नहीं देगा तो फल तुझे मिलेगा। यदि कोई साड़ी के साथ ब्लाउज नहीं देगा तो फल तुझे मिलेगा। यदि कोई दीये से दीया जलाएगा तो फल तुझे मिलेगा। यदि कोई सारी कहानी सुने लेकिन तुम्हारी कहानी नहीं सुने तो फल तुझे मिलेगा। उसी दिन से हर व्रत कथा कहानी के साथ लपसी तपसी की कहानी भी सुनी और कही जाती है।
 
अस्वीकरण (Disclaimer) : चिकित्सा, स्वास्थ्य संबंधी नुस्खे, योग, धर्म, ज्योतिष आदि विषयों पर वेबदुनिया में प्रकाशित/प्रसारित वीडियो, आलेख एवं समाचार सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं। इनसे संबंधित किसी भी प्रयोग से पहले विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।


37
Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

Aaj Ka Rashifal: कैसा रहेगा आज आपका दिन, जानें ग्रहों की चाल से अपना दैनिक राशिफल | 2 September 2023