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  • व्रत/मुहूर्त-विनायकी चतुर्थी
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16 days mahalakshmi vrat vidhi : 16 दिन तक चलने वाले श्री महालक्ष्मी व्रत की पूजा विधि

हमें फॉलो करें 16 days mahalakshmi vrat vidhi : 16 दिन तक चलने वाले श्री महालक्ष्मी व्रत की पूजा विधि
mahalakshmi vrat 2023 : प्रतिवर्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से गजलक्ष्मी व्रत मनाया जाता है, जो कि 16 दिन तक चलता है। इस वर्ष यह व्रत 22 सितंबर 2023, दिन शुक्रवार से शुरू हो रहा है। इन दिनों धन की देवी मां महालक्ष्मी को प्रसन्न करके अपार और अखंड धन-संपदा का वरदान प्राप्त कर सकते हैं। 
 
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार श्री महालक्ष्मी व्रत सुख-समृद्धि के लिए रखा जाता है। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से प्रारंभ श्री गजलक्ष्मी व्रत का समापन आश्विन कृष्ण अष्टमी यानी श्राद्ध पक्ष की अष्टमी पर पूर्ण होता है। धन-वैभव, ऐश्वर्य और संपूर्ण सुखों को देने वाली धन की देवी माता महालक्ष्मी का यह गजलक्ष्मी व्रत 16 दिनों का जारी रहता है। 
 
आइए यहां जानें महालक्ष्मी व्रत की पूजा विधि- 
 
पूजन विधि-Pujan Vidhi  
 
• श्री महालक्ष्मी व्रत भादो शुक्ल अष्टमी से शुरू किया जाता है और इस दिन एक सकोरे में ज्वारे (गेहूं) बोये जाते हैं। 
• प्रतिदिन 16 दिनों तक इन्हें पानी से सींचा जाता है। 
• ज्वारे बोने के दिन ही कच्चे सूत (धागे) से 16 तार का एक डोरा बनाया जाता है। 
• इस डोरे की लंबाई आसानी से गले में पहन जा सके इतनी रखी जाती है। 
• इस डोरे में थोड़ी-थोड़ी दूरी पर 16 गांठें बांधकर हल्दी से इसे पीला करके पूजा के स्थान में रख दें।
• फिर प्रतिदिन 16 दूब और 16 गेहूं चढ़ाकर पूजन करें।
• आश्विन (क्वांर) मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन यानी पितृ पक्ष की अष्टमी पर उपवास रखकर श्रृंगार करके 18 मुट्ठी गेहूं के आटे से 18 मीठी पूड़ी बनाएं तथा आटे का एक दीपक बनाकर 16 पु‍ड़ियों के ऊपर रखें तथा दीपक में एक घी-बत्ती रखें, शेष दो पूड़ी महालक्ष्मी जी को चढ़ाने के लिए रखें।
• पूजन करते समय इस दीपक को जलाएं तथा कथा पूरी होने तक दीपक जलते रखना चाहिए। 
• अखंड ज्योति का एक और दीपक अलग से जलाकर रखें। 
• पूजन के पश्चात इन्हीं 16 पूड़ी को सिवैंया की खीर या मीठे दही से खाते हैं। 
• इस व्रत में नमक नहीं खाते हैं। 
• इन 16 पूड़ी को पति-पत्नी या पुत्र ही खाएं, अन्य किसी को नहीं दें। 
• मिट्टी का एक हाथी बनाएं या कुम्हार से बनवा लें जिस पर महालक्ष्मी जी की मूर्ति बैठी हो। 
• यह हाथी क्षमता के अनुसार सोने, चांदी, पीतल, कांसे या तांबे का भी हो सकता है। 
• सायंकाल जिस स्थान पर पूजन करना हो, उसे गोबर से लीपकर पवित्र करें। 
• रंगोली बनाकर बाजोट पर लाल वस्त्र बिछाकर हाथी को रखें। तांबे का एक कलश जल से भरकर पटे के सामने रखें। 
• एक थाली में पूजन की सामग्री (रोली, गुलाल, अबीर, अक्षत, आंटी (लाल धागा), मेहंदी, हल्दी, टीकी, सुरक्या, दोवड़ा, दोवड़ा, लौंग, इलायची, खारक, बादाम, पान, गोल सुपारी, बिछिया, वस्त्र, फूल, दूब, अगरबत्ती, कपूर, इत्र, मौसम का फल-फूल, पंचामृत, मावे का प्रसाद आदि) रखें। 
• केले के पत्तों से झांकी बनाएं। 
• संभव हो सके तो कमल के फूल भी चढ़ाएं। 
• पटिए पर 16 तार वाला डोरा एवं ज्वारे रखें। 
• विधिपूर्वक महालक्ष्मी जी का पूजन करें तथा कथा सुनें एवं आरती करें। 
• महालक्ष्मी पूजन के समय- 'महालक्ष्‍मी नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं सुरेश्वरि। हरि प्रिये नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं दयानिधे।।' मंत्र का जाप करें।
• इसके बाद डोरे को गले में पहनें अथवा भुजा से बांधें। 
• भोजन के पश्चात रात्र‍ि जागरण तथा भजन-कीर्तन करें। 
• दूसरे दिन प्रात:काल हाथी को जलाशय में विसर्जन करके सुहाग-सामग्री ब्राह्मण को दें।

अस्वीकरण (Disclaimer) : चिकित्सा, स्वास्थ्य संबंधी नुस्खे, योग, धर्म, ज्योतिष आदि विषयों पर वेबदुनिया में प्रकाशित/प्रसारित वीडियो, आलेख एवं समाचार सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं। वेबदुनिया इसकी पुष्टि नहीं करता है। इनसे संबंधित किसी भी प्रयोग से पहले विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।



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