सविता व्यास
धरती की हल्की सी अंगड़ाई ने
कितने घरों को जमींदोज कर दिया है
कितने बेगुनाहों को जिंदा दफन कर दिया है
पर क्या सिर्फ घर टूटे हैं यहां?
क्या सिर्फ शरीर दफन हुए हैं यहां?
जिन्हें संजोया था उसने
अपने बच्चों के भविष्य संवारने के लिए
टूटे हैं सपने उस मां के
जिसने बच्चों को अच्छा इंसान बनाने का सोचा था
टूटे हैं सपने उन नन्हों के
जिन्होंने खुले आकाश में उड़ान भरने का सोचा था
टूटे हैं सपने दादा-दादी के
जिन्होंने नाती-पोतों को दुलारने की ख्वाहिश की थी
टूटे हैं विश्वास और आस्था के तार
जो हमने जोड़ रखे थे उससे
सौंप दी थी जिस पर हमने अपनी रक्षा की बागडोर
शर्मिंदा हैं हमारे
प्रार्थना के वह शब्द
जो हम अपनों की सलामती के लिए कहते थे
नम है हमारी श्रद्धा की आंखें
सपने, आस्था और विश्वास की कब्र देखकर...