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हिन्दी कविता : ईमानदार...

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राकेशधर द्विवेदी

मैं ईमानदार हूं


 
वर्तमान में मैं
नहीं रह गया
दमदार हूं।
 
टूटते हुए मूल्य
दम टूटते हुए संस्कार
कराह-कराह कर ये
कह रहे हैं पुकार के
ईमानदारी और नैतिकता
गुजरे जमाने की चीजें हैं
वर्तमान में ये बन गईं
आउटडेटेड चीजें कमीजें हैं।
 
जीवन के ये अनामित चित्र
रह गया है न कोई हमारा मित्र
सिहर-सिहर कर सिमट-सिमटकर
तिल-‍तिल में घुट-घुटकर
यह यह कथा सुनाता हूं
वर्तमान युग में मूल्यों के
अवमूल्यन की गाथा गाता हूं।
 
 

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